बीकानेर कृषि विश्वविद्यालय के चार प्रोफेसरों और एक छात्र ने एक ऐसी एग्रीकल्चर मशीन डिजाइन की है, जिससे पराली को प्रबंधन करना आसान हो गया है. इस मशीन को 'स्टबल चॉपर-कम-स्प्रेडर मशीन' नाम दिया गया है. खास बात यह है कि इस मशीन को यूनाइटेड किंगडम (यूके) से पेटेंट भी मिल गया है. ऐसे में उम्मीद की जा रही है कि इस मशीन से किसानों को पराली प्रबंधन में काफी मदद मिलेगी. सस्ती होने के चलते किसान महंगे विकल्पों को छोड़कर 'स्टबल चॉपर-कम-स्प्रेडर मशीन' को ही खरीदेंगे. इससे उन्हें पैसों की भी बचत होगी.
द टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, यह मशीन किसानों को काफी कम लागत पर पराली का प्रबंधन करने में मदद करेगी और स्थानीय स्तर पर मंजूरी मिलने के बाद यह भारतीय बाजार में 40,000-60,000 रुपये के बीच उपलब्ध होगी. आमतौर पर ऐसी मशीनों की कीमत 2 से 3 लाख रुपये के बीच होती है. स्वामी केशवानंद राजस्थान कृषि विश्वविद्यालय (एसकेआरएयू) के वैज्ञानिकों, जिनमें कुलपति डॉ अरुण कुमार भी शामिल हैं, को फसल अवशेष प्रबंधन मशीन 'स्टबल-चॉपर-कम-स्प्रेडर' के लिए यूके से पेटेंट प्राप्त हुआ है.
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इस प्रोजेक्ट पर डॉ. अरुण कुमार के अलावा डॉ. मनमीत कौर, डॉ. योगेन्द्र कुमार सिंह, डॉ. प्रमोद कुमार यादव और कृषि विश्वविद्यालय के छात्र शौर्य सिंह ने काम किया है. टीओआई ने इस उपलब्धि पर कुलपति डॉ. अरुण कुमार से बात की तो उन्होंने कहा कि फसल अवशेष प्रबंधन के लिए वर्तमान में उपलब्ध मशीनें सब्सिडी के बाद भी काफी महंगी हैं. एक आम किसान इसे नहीं खरीद सकता. लेकिन हमारी मशीन लगभग चार गुना कम कीमत पर उपलब्ध होगी.
उन्होंने कहा कि हमारे वैज्ञानिकों द्वारा किए गए अनुसंधान और परियोजनाओं ने विश्वविद्यालय को वैश्विक स्तर पर प्रसिद्ध बना दिया है. पिछले साल की शुरुआत में, एसकेआरएयू को जर्मनी के संघीय गणराज्य से बाजरा बिस्किट के लिए पेटेंट मिला था. परियोजना का हिस्सा रहे विश्वविद्यालय के डीन डॉ.पी के यादव ने कहा कि फसल अवशेष प्रबंधन लंबे समय से देश में एक ज्वलंत समस्या रही है. हमारी कम लागत वाली मशीन भविष्य में बड़ा प्रभाव डालेगी.
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डॉ. वाई के सिंह ने कहा कि जहां यूके से पेटेंट प्राप्त करने में लगभग पांच से छह महीने लग गए, वहीं इस मशीन का पेटेंट एक महीने में मिल गया. सिंह ने कहा कि काटने के बाद पराली भी जैविक खाद बन जाएगी. सहायक प्रोफेसर डॉ. मनमीत कौर के अनुसार, भारत में हर साल लगभग 650 मिलियन टन फसल अवशेष पैदा होता है. उन्होंने कहा कि चूंकि किसान अधिक फसल पैदा करना चाहते हैं, इसलिए त्वरित निपटान के लिए फसल अवशेषों को जलाना आम बात हो गई है. यह मशीन एक बड़ा बदलाव लाएगी.
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