महाराष्ट्र के इस इलाक़े में चौपट हो गई अनार की खेती, कम बारिश और बीमारी बनी वजह

महाराष्ट्र के इस इलाक़े में चौपट हो गई अनार की खेती, कम बारिश और बीमारी बनी वजह

35 वर्षीय किसान दत्तात्रेय कोलावले ने कहा कि बहुत से लोगों ने तालाब खोदने, पाइपलाइन बिछाने, बंगले बनाने और एसयूवी खरीदने के लिए इस उम्मीद से कर्ज लिया कि उन्हें अच्छा रिटर्न मिलेगा, जो हर साल संभव नहीं होता है. ऐसे मार्च से मई का महीना अनार की खेती का मौसम होता है.

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महाराष्ट्र के इस इलाक़े में चौपट हो गई अनार की खेती, कम बारिश और बीमारी बनी वजहअनार के बाग में लगा रोग. (सांकेतिक फोटो)

महाराष्ट्र के सोलापुर जिला पूरे देश में अनार की खेती के लिए फेमस है. यहां से अनार की सप्लाई देश ही नहीं विदेशों में भी होती है. लेकिन इस साल अनार के बगान में रोग लगने की वजह से किसानों को काफी नुकसान उठाना पड़ रहा है. कहा जा रहा है कि रोग लगने की वजह से अनार के फल भी संक्रमित हो गए हैं. ऐसे में पेड़ पर लगे हुए अनार के फल सड़ रहे हैं. इसके चलते किसानों को रोग से संक्रमित पेड़ों को बागान से उखाड़ना पड़ रहा है.

द टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, यहां के सांगोला तहसील के अजनाले गांव एक दशक पहले अनार उगाने वाले किसानों के कारण सुर्खियों में आया था. यहां के कई किसान अनार की खेती से अमीर बन गए. लेकिन किसानों के लिए पहले जैसी स्थिति नहीं रही. अनार के बागानों में संक्रमण फैल गया है. ऐसे में संक्रमण जनित रोगों ने किसानों को पेड़ों को उखाड़ने के लिए मजबूर कर दिया है. इसके चलते अनार के पेड़ों की गिनती पांच लाख से घटकर एक लाख रह गई है. पिछले साल मॉनसून में कम बारिश के कारण पानी की कमी ने भी उनकी चिंताएं बढ़ा दी हैं. उत्पादन में गिरावट के कारण कई किसान कर्ज से जूझ रहे हैं.

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टैंकर से होती है पानी की सप्लाई

अजनाले गांव के किसान विष्णु देशमुख ने कहा कि पिछले साल बारिश नहीं हुई थी. इसके चलते तालाबों में पानी नहीं बचा है. हाल ही में, जिन किसानों ने मैन नदी से गांव तक 10 किमी की दूरी पर पाइपलाइन बिछाई थी, वे खेत के तालाबों को फिर से भरने के लिए कुछ पानी ला सकते थे. मैंने बीमारियों के कारण अनार के पेड़ खो दिए. अब, मैंने एक बार फिर से अनार की खेती की है, जिसमें फल आने में लगभग डेढ़ साल लगेंगे. उन्होंने कहा कि अजनाले गांव में पानी का कोई प्राकृतिक स्रोत नहीं है. नहर मान नदी से पानी तभी लाती है जब बांधों से पानी छोड़ा जाता है. भौगोलिक दृष्टि से यह गांव समुद्र तल से ऊपर स्थित है. गांव के सरपंच चंद्रकांत कोलावले ने कहा कि गांव के बोरवेल से एक दिन में सिर्फ 200 लीटर पानी मिल पाता है. गांव में पीने का पानी टैंकरों से आता है.

अनार की खेती बर्बाद

कोलावाले ने कहा कि फिलहाल हमारे गांव में पीने के लिए पानी की सप्लाई एक टैंकर से हो रही है. लेकिन हमने प्रशासन से एक और टैंकर तैनात करने का अनुरोध किया है, क्योंकि लगभग 4,500 लोगों की आबादी पानी की कमी का सामना कर रही है. उन्होंने कहा कि सिंचाई की कमी की वजह से अनार उगाने वाले अधिकांश खेतों में अनार के बागान ख़त्म हो गए हैं. अब हमें अपनी खपत के लिए अनार कस्बों और शहरों से खरीदना पड़ता है. पिछले 10-15 सालों में ऐसा एक बार भी नहीं हुआ.

सरपंच चंद्रकांत की माने तो कई किसान अपना कर्ज चुकाने में असमर्थ हैं. कृषि के विस्तार, बंगले बनाने और एसयूवी खरीदने के लिए, लिए गए ऋण की वसूली के लिए बैंकों के प्रतिनिधि गांव का दौरा करते रहते हैं. कुछ महीने पहले, कुछ किसानों ने ऋण पर ब्याज माफ करने के लिए एक निजी साहूकार को पत्र लिखा था.

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क्या कहते हैं किसान

35 वर्षीय किसान दत्तात्रेय कोलावले ने कहा कि बहुत से लोगों ने तालाब खोदने, पाइपलाइन बिछाने, बंगले बनाने और एसयूवी खरीदने के लिए इस उम्मीद से कर्ज लिया कि उन्हें अच्छा रिटर्न मिलेगा, जो हर साल संभव नहीं होता है. मार्च से मई फसल का मौसम है. अधिकांश किसानों की जेब खाली है और बहुत कम व्यापारी विदेशों में बेचने के लिए हमारी उपज खरीदने आए हैं. उन्होंने कहा कि मुझे 100-150 रुपये प्रति किलोग्राम की कीमत मिल रही है, जो पिछले कुछ वर्षों की तुलना में बेहतर है. 

 

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