गाय-भैंस को इस बड़ी बीमारी से बचाएगी ये मशीन, 10 रुपये में कर सकेंगे जांच, पशुपालकों को मिलेगी बड़ी राहत

गाय-भैंस को इस बड़ी बीमारी से बचाएगी ये मशीन, 10 रुपये में कर सकेंगे जांच, पशुपालकों को मिलेगी बड़ी राहत

आईआईटी कानपुर के निदेशक प्रो. मणीन्द्र अग्रवाल ने बताया कि 'आईआईटी कानपुर व्यावहारिक तकनीक बनाने के लिए समर्पित है जो बड़े पैमाने पर समाज को लाभ पहुंचाती है, और मेरा मानना है कि हमारी मस्टाइटिस डिटेक्शन तकनीक कृषि क्षेत्र में महत्वपूर्ण मुद्दों को संबोधित कर सकती है.

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गाय-भैंस को इस बड़ी बीमारी से बचाएगी ये मशीन, 10 रुपये में कर सकेंगे जांच, पशुपालकों को मिलेगी बड़ी राहतमास्टिटिस एक ऐसी बीमारी है जो दुधारू पशुओं में पाई जाती है. (Photo-Kisan Tak)

Cattle Farmers Story: गाय और भैंस दूध से करोड़ों परिवारों का घर चलता है. डेयरी बिजनेस देश में बहुत बड़ा रेवेन्यू जेनरेट करते हैं. इसी कड़ी में कानपुर के भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) के प्रोफेसर सिद्धार्थ पांडा ने दुधारू पशु स्वास्थ्य के क्षेत्र में एक क्रांतिकारी तकनीक तैयार की है. इस तकनीक से दुधारू पशुओं में होने वाली मास्टिटिस बीमारी का आसानी से समय रहते पता लगाया जा सकता है. आईआईटी कानपुर के वैज्ञानिक प्रो. सिद्धार्थ पांडा ने बताया कि इसके लिए लेटरल फ्लो इम्यूनोएसे स्ट्रिप एंड मेथड का प्रयोग किया गया है. अब तक इस बीमारी की पहचान के लिए कोई खास तकनीक नहीं थी.

दुधारू पशु का पूरा थन हो जाता है खराब

पशुपालकों को इसके बारे में तब पता चलता था जब पशु इस बीमारी से ग्रसित हो जाते थे. लेकिन अब इस खास तकनीक के जरिए पशुओं में बीमारी लगने से पहले ही पता लगाया जा सकता है. प्रो. पांडा के मुताबिक, पशुओं में होने वाली इस बीमारी का असर कुल दुग्ध उत्पादन पर भी पड़ता है. अगर समय रहते इस बीमारी की पहचान नहीं हुई तो दुधारू पशु का पूरा थन खराब हो जाता है और वह दूध देना बंद कर देती है. ऐसे में पशुपालकों को भी बड़ा झटका लगता है.

दवा कंपनी के अधिकारियों को तकनीक ट्रांसफर करते आईआईटी कानपुर के वैज्ञानिक प्रो. सिद्धार्थ पांडा
दवा कंपनी के अधिकारियों को तकनीक ट्रांसफर करते आईआईटी कानपुर के वैज्ञानिक प्रो. सिद्धार्थ पांडा

ऐसे में अब इसकी जांच आसान हो जाएगी. हमने पशुओं की जांच के लिए एक स्ट्रिप तैयार की है. ये एक नवीन पॉलीक्लोनल एंटीबॉडी और नए डिजाइन का उपयोग करके तैयार किया गया है. इसके जरिए पशुपालक समय रहते पता लगा सकेंगे कि उनके पशु में मास्टिटिस नामक बीमारी तो नहीं लग रही है.

तीव्र संक्रमण के चलते पशुओं की जा सकती है जान 

उन्होंने बताया कि सूक्ष्मजीव प्रजातियों का एक बड़ा समूह है जो मास्टिटिस का कारण बनने के लिए जाना जाता है. इनमें वायरस, माइकोप्लाज्मा, कवक और बैक्टीरिया शामिल हैं. इसके अलावा पशु के स्तन क्षेत्र में शारीरिक चोट, गंदगी के चलते भी मास्टिटिस हो सकता है. वहीं मास्टिटिस टॉक्सीमिया या बैक्टेरिमिया में बदल सकता है और तीव्र संक्रमण के चलते पशु की जान भी जा सकती है. 

10 रुपये में पशुपालकों को मिल जाएगी स्ट्रिप 

आईआईटी कानपुर के वैज्ञानिक प्रो. सिद्धार्थ पांडा ने बताया कि स्ट्रिप तैयार करने के लिए आईआईटी कानपुर ने प्रॉम्प्ट इक्विपमेंट्स प्राइवेट लिमिटेड को ये टेक्नोलॉजी हैंडओवर कर दी है. ये कंपनी पशु चिकित्सा के क्षेत्र में काम करती है. कंपनी अगले दो से तीन महीने के अंदर इस स्ट्रिप की करीब 10 लाख यूनिट्स तैयार करेगी. इसके बाद ये बाजार में आ जाएगा. पशुपालकों की सहूलियत के लिए इसकी कीमत काफी कम होगी. ये महज 10 रुपये में पशुपालकों को मिल जाएगा.

किसानों को मिलेगी बड़ी सहूलियत

आईआईटी कानपुर के निदेशक प्रो. मणीन्द्र अग्रवाल ने बताया कि 'आईआईटी कानपुर व्यावहारिक तकनीक बनाने के लिए समर्पित है जो बड़े पैमाने पर समाज को लाभ पहुंचाती है, और मेरा मानना है कि हमारी मस्टाइटिस डिटेक्शन तकनीक कृषि क्षेत्र में महत्वपूर्ण मुद्दों को संबोधित कर सकती है, किसानों की आजीविका और डेयरी उत्पादों की गुणवत्ता में सुधार कर सकती है.'

क्या हैं मास्टिटिस बीमारी के लक्षण?

1- थन में सूजन है जो लाल और कठोर हो जाती है. 
2- सूजी हुई स्तन ग्रंथि का गर्म होना.
3- थन छूने से जब पशु को दर्द होने लगे, ऐसी स्थिति में पशु थन को छूने की अनुमति नहीं देते हैं, यहां तक कि दूध निकालने से रोकते हैं. 
4- अगर दूध निकाल जाता है तो उसमें आमतौर पर रक्त के थक्के मिलते हैं या बदबूदार भूरे रंग के स्राव होते हैं.
5- मास्टिटिस में पशु दूध देना पूरी तरह से बंद कर देती है. वहीं पशु के शरीर का तापमान बढ़ जाता है.
6- भूख की कमी, आंखें धंसी हुईं, पाचन संबंधी विकार और दस्त भी इसके प्रारंभिक लक्षण होते हैं. 
7- संक्रमित मवेशी का वजन कम होने लगता है. 
8- गंभीर संक्रमण के मामलों में संक्रमित थन में मवाद बनता है.

 

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