प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तीसरी बार वाराणसी से जीत के लिए कमर कस चुके हैं. पीएम मोदी ने यहां से साल 2014 और 2019 में हुए लोकसभा चुनावों में जीत हासिल की थी. अब वह यहां पर हैट्रिक लगाने की तरफ हैं. बताया जा रहा है कि पीएम मोदी 12 से 14 मई के बीच वाराणसी में नामांकन के लिए पहुंच सकते हैं. एक जून को यहां पर वोटिंग होनी है यानी वाराणसी में सातवें और आखिरी राउंड में होने वाली वोटिंग चुनावों में दिलचस्पी बरकरार रखेगी. भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के एक स्थानीय नेता की मानें तो इस बार वाराणसी से रिकॉर्ड 10 लाख वोटों से जिताने के लिए पूरी ताकत झोंक दी गई है. आइए आपको इस संसदीय क्षेत्र की कुछ खास बातों के बारे में बताते हैं.
साल 2014 में जब पीएम मोदी ने यहां पर चुनाव लड़ा था तो उनके सामने कांग्रेस के अजय राय और आम आदमी पार्टी (आप) के मुखिया अरविंद केजरीवाल थे. पीएम मोदी ने तब तीन लाख से ज्यादा वोटों से जीत हासिल की और एक इतिहास रच दिया था. साल 2019 में पीएम मोदी ने 4,79, 505 वोटों से जीत हासिल की. उन्हें कुल 6,74,664 वोट मिले थे. वाराणसी सीट सन् 1957 में अस्तित्व में आई थी. तब से लेकर काफी समय तक यहां पर कम्युनिस्ट और कांग्रेस पार्टी का दबदबा रहा.
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साल 1991 में बीजेपी ने इस संसदीय क्षेत्र को अपने नाम करना शुरू कर दिया था. हालांकि साल 2004 में बीजेपी ने यह सीट कांग्रेस के हाथों गंवा दी थी. उस समय 15 साल के बाद कांग्रेस को वाराणसी में जीत मिली थी. लेकिन साल 2009 से यह सीट फिर से बीजेपी के खाते में है. 2009 में मुरली मनोहर जोशी ने यहां पर चुनाव जीता और उसके बाद से पीएम मोदी यहां से जीतते आ रहे हैं. वाराणसी निर्वाचन क्षेत्र में पांच विधानसभा सीटें हैं. सन् 1957 के बाद से बीजेपी ने सात बार और कांग्रेस ने छह बार इस सीट पर जीत हासिल की है.
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वाराणसी पीएम मोदी के अलावा पूर्व पीएम चंद्रशेखर का भी पसंदीदा संसदीय क्षेत्र रहा है. चंद्रशेखर ने सन् 1977 में 47.9 फीसदी वोटों के भारी अंतर से यहां पर जीत हासिल की थी. वहीं अभी तक वाराणसी में समाजवादी पार्टी (एसपी) और बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) ने लोकसभा चुनावों में खाता नहीं खोला है. वाराणसी संसदीय क्षेत्र की कुल आबादी में 75 फीसदी हिंदू हैं जबकि 20 फीसदी मुसलमान और पांच फीसदी बाकी धर्मों के लोग हैं. यहां की 65 फीसदी आबादी शहर में रहती है तो बाकी 35 फीसदी गांवों में रहती है.
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