प्राकृतिक एवं जैविक खेती को किसान, ज्यादा से ज्यादा संख्या में अपनाएं, इसके लिए केंद्र और राज्य सरकारों की तरफ से किसानों को खेत में तकनीकी सहयोग से लेकर बाजार में वित्तीय मदद पहुंचाने तक, तमाम उपाय किए जा रहे हैं. इसके बावजूद किसान अभी भी खाद, बीज और बाजार जैसी समस्याओं का हवाला देकर Traditional Farming अपनाने से हिचक रहे हैं. केंद्र सरकार की परंपरागत कृषि विकास योजना के अंतर्गत Organic and Natural Farming से जीव जगत को कितना भी फायदा क्यों न हो, मगर, आर्थिक लाभ की गारंटी के बिना किसानों द्वारा इसे सीमित तौर पर ही अपनाया जा रहा है. इसके पीछे प्राकृतिक एवं जैविक उत्पादों का बाजार बहुत सीमित होना बड़ी वजह है. बाजार के सीमित दायरे के पीछे उपभोक्ताओं में Organic Products के प्रति विश्वास का अभाव मूल वजह है.
यूपी में अयोध्या के कुमारगंज स्थित आचार्य नरेंद्र देव कृषि विश्वविद्यालय में केंद्र और यूपी सरकार द्वारा जैविक एवं प्राकृतिक खेती कर रहे किसानों की National Workshop का आयोजन किया गया. इसमें देश के तमाम हिस्सों से आए किसानों ने अपने जैविक उत्पादों को पेश करते हुए प्राकृतिक खेती से जुड़े अपने अनुभव भी साझा किए.
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पिछले 3 साल से 50 किसानों के समूह में प्राकृतिक खेती कर रहे वर्मा ने बताया कि आज के दौर में प्राकृतिक खेती के बारे में बात करना जितना आसान है, इस खेती को करना उतना आसान नहीं है. उन्होंने कहा कि सरकार द्वारा पंजीकरण कराए जाने के बाद उनके साथ के 50 किसानों को जीवामृत, घनजीवामृत और नीमास्त्र आदि को बनाने की विधि सीखने में 3 साल लगा है.
बुजुर्ग किसान वर्मा ने अपने अनुभव से बताया कि रासायनिक खेती का दौर आने से पहले वह परंपरागत तरीके से ही खेती करते थे, लेकिन आज प्राकृतिक खेती की जिस तकनीक को उन्हें सिखाया गया है, उसमें और खेती की पुरानी पद्धति में बहुत अंतर है. इसमें गोबर और गोमूत्र के अलावा प्रकृति प्रदत्त अन्य तत्वों से जिन दवाओं का इस्तेमाल किया जाता है, वह सही मायने में Soil Health और मनुष्य की सेहत को बेहतर करता है.
वर्मा ने बताया कि पिछले 5 दशकों में रासायनिक खेती करने के अभ्यस्त हो चुके किसानों को अब रेडीमेड तरीके से खेती करने की आदत पड़ चुकी है. वहीं, प्राकृतिक खेती में Market Interference नहीं है. पूरी तरह से गोवंश पर आधारित प्राकृतिक खेती की पहली शर्त किसान के लिए पशुपालन करना है. बाजार के दबाव में पशुपालन से दूर हो चुके मौजूदा दौर के किसानों की समस्या यहीं से शुरू होती है.
उन्होंने कहा कि पशुपालन ही इस खेती की यही पहली व्यवहारिक दिक्कत है. जो सही मायने में समस्या नहीं बल्कि आय बढ़ाने की लड़ाई लड़ रहे किसानों के लिए समाधान है. वर्मा ने आय के बारे में कहा कि सरकार ने Farmers Income दोगुना करने की बात कही थी. देश के किसानों ने समझ लिया कि सरकार एमएसपी बढ़ाकर आय को बढ़ाएगी, जबकि सरकार लागत काे कम करके आय बढ़ाने की बात कह रही है. हमें यह बात प्राकृतिक खेती करके समझ में आई कि इस पद्धति से लागत काे सही मायने में बहुत कम किया जा सकता है. इसमें खेती की लागत से जुड़ी खाद, बीज, दवा आदि की खरीद बाजार से नहीं करनी पड़ती है.
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वर्मा ने कहा कि सब कुछ बाजार से खरीद कर अपनी जरूरतें पूरी करने में यकीन कर रही नई पीढ़ी को प्राकृतिक खेती रास नहीं आ रही है. इसकी मूल वजह प्राकृतिक खेती के उत्पादों को उचित बाजार न मिल पाना है. उन्होंने कहा कि Marketing Crisis होने के कारण उनके उत्पादों की सही कीमत नहीं मिल पाती है.
उन्होंने इसका उदाहरण देत हुए बताया कि एक जिला एक उत्पाद (ODOP) योजना में लखनऊ और वाराणसी जैसे बड़े जिलों के उत्पादों को सही बाजार मिल जाता है. लेकिन अयोध्या के ODOP Product के रूप में गुड़ को बना रहे हमारे जैसे किसानों को झोला में गुड़ लेकर जगह जगह जाकर बेचना पड़ता है. इसलिए सरकार को चाहिए कि Natural Farming Products को भी मंडी की सुविधा मिले.
वर्मा ने कहा कि अभी धनी लोग ही प्राकृतिक खेती के उत्पाद खरीदते हैं. लेकिन खाने पीने की तमाम उपभोक्ता वस्तुओं में जिस तरह से मिलावट की समस्या विकराल हो रही है, उसे देखते हुए हर व्यक्ति को शुद्ध खाने की जरूरत है और इस जरूरत काे प्राकृतिक खेती कर रहे किसान ही पूरा कर सकते हैं. उन्होंने कहा कि सरकार को समय की मांग को देखते हुए अब जैविक उत्पादों के लिए बाजार की सुविधा मुहैया कराने पर जोर देना चाहिए. तभी किसानों और उपभोक्ताओं को इसका सही लाभ मिल पाएगा.
वर्मा ने कहा कि दूसरी व्यवहारिक दिक्कत जैविक उत्पादों के प्रति विश्वास की है. उन्होंने कहा कि प्राकृतिक या जैविक खेती से उपजे उत्पादों की गुणवत्ता के प्रति जब तक लोगों में विश्वास पैदा नहीं होगा, तब तक किसानों को इसका सही लाभ नहीं मिलेगा.
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