Kalanamak Rice: काला नमक धान की खेती किसानों के लिए आमदनी के लिहाज से वरदान साबित हो रही है. धान की यह किस्म, पूर्वांचल की एक नई पहचान बनकर उभरी है. काला नमक धान (Kalanamak Paddy) धान की एक पारंपरिक फसलों की ही एक पुरानी किस्म है. लेकिन ज्यादा लागत, कम उत्पादन और मजदूरों की अनुपलब्धता की वजह से कुछ दशकों पहले काला नमक धान की खेती (Kalanamak Paddy Farming) की तरफ से किसानों का रुझान कम हो गया. नतीजतन इस ऐतिहासिक धान के रकबे में भी ऐतिहासिक गिरावट हुई. लेकिन, बीते एक दशक में काला नमक चावल की तकदीर बदली है. काला नमक चावल को जीआई टैग (GI Tag) मिलने के बाद यूपी सरकार इसकी खेती को बढ़ावा दे रही है. जिसके बाद काला नमक चावल के रकबे में बीते एक दशक के अंदर 35 गुना बढ़ाेतरी हुई है.
काला नमक चावल के रकबे में बीते एक दशक में हुई बढ़ोतरी की जानकारी देते हुए डॉ रामचेत चौधरी कहते हैं कि एक दशक पहले तक यूपी में काला नमक चावल का रकबा लगभग 2 हजार हेक्टेयर था. लेकिन, चावल को जीआई टैग मिलने और यूपी सरकार के प्रयासों के बाद काला नमक चावल का रकबा मौजूदा समय में 75 हजार हेक्टेयर के पार पहुंच गया है. सीधे तौर पर इसका फायदा किसानों को मिल रहा है.
यूपी के काला नमक चावल को जीआई टैग मिला है. जिससे काला नमक चावल को अंतरराष्ट्रीय पहचान मिली है. यूपी के जिन 11 जिलों के काला नमक चावल को जीआई टैग मिला है. उसमें पूर्वांचल के महाराजगंज, गोरखपुर, सिद्धार्थ नगर, संत कबीरनगर, बलरामपुर, बहराइच, बस्ती, कुशीनगर, गोंडा, बाराबंकी, देवरिया और गोंडा शामिल हैं.
काले रंग के धान की वजह से इस चावल का नाम काला नमक चावल रखा गया है. हालांकि, इसका चावल सफेद रंग का ही होता है. इस चावल का इतिहास बुद्ध काल से है. वहीं, काला नमक चावल को महात्मा गौतम बुद्ध का महाप्रसाद भी कहा जाता है. प्राचीन काल में इस चावल की खेती मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश और नेपाल के तराई क्षेत्र में की जाती थी, लेकिन मौजूदा वक़्त में गोरखपुर, सिद्धार्थ नगर, संत कबीरनगर, बलरामपुर, बहराइच, बस्ती, कुशीनगर, गोंडा, बाराबंकी, देवरिया और गोंडा आदि जिलों में प्रमुख रूप से होती है.
काला नमक धान, बासमती धान की तुलना में अधिक सुगंधित व अधिक पैदावार देता है. एक हेक्टेयर में बासमती की उपज जहां लगभग 20 से 25 क्विंटल तक होती है. वहीं, काला नमक धान की उपज (Yield of Kalanamak Paddy) प्रति हेक्टेयर लगभग 35 से 40 क्विंटल तक होती है. इसके अलावा, काला नमक चावल की खुशबू बासमती की सभी तरह की किस्मों से भी अच्छी होती है.साथ ही अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में भी सबसे अच्छे चावलों की गुणवत्ता मापने के जो मानक होते हैं, ये चावल उन सभी मानकों पर खरा उतरता है.
यूपी सरकार अपनी एक जिला एक उत्पाद (ODOP) योजना के तहत काला नमक चावल के उत्पादन को बढ़ावा दे रही है. इस योजना के तहत उत्तर प्रदेश सरकार ने काला नमक धान के उत्पाकदन को बढ़ावा देने के लिए तैयार परियोजना के तहत 12.00 करोड़ रुपये स्वीकृत किए हैं. इसके अलावा, काला नमक चावल को उन्नत करने के प्रयास जारी हैं. जिसको लेकर भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR), भारतीय चावल अनुसंधान संस्थान (IIRR) हैदराबाद, राष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान (NRRI) कटक और भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) नई दिल्ली उत्तर प्रदेश सरकार के सहयोग से काला नमक चावल पर अनुसंधान कर रहे हैं.
चावल की इस विशेष किस्म में शुगर नहीं होता है, लेकिन प्रोटीन, आयरन और जिंक जैसे पोषक तत्व भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं. इसमें जहां जिंक चार गुना, आयरन तीन गुना और प्रोटीन दो गुना अन्य किस्मों की तुलना में अधिक पाया जाता है. यही वजह है कि मौजूदा वक़्त में इसकी खुशबू अब म्यांमार, थाईलैंड, जापान, श्रीलंका और भूटान सहित बौद्ध धर्म के मानने वाले कई देशों तक पहुंच गई है.
इसके अलावा भारत सरकार ने कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (APEDA) के जरिए काला नमक चावल को बढ़ावा देने के लिए कई पहल किया है. काला नमक चावल को बढ़ावा देने के लिए ‘काला नमक महोत्सव’ का भी आयोजन किया गया था. वहीं किसान उत्पादक संगठनों (FPO) का गठन और चावल निर्यातकों और किसानों के बीच समन्वय स्थापित किया गया है.
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