उत्तर प्रदेश में सूरजमुखी की खेती को पहले मुनाफा देने वाली फसल माना जाता था लेकिन समय के साथ-साथ इस खेती में हो रहे नुकसान के चलते अब किसान ने अपने कदम पीछे खींच लिए हैं.प्रदेश में सूरजमुखी की खेती फायदेमंद होने के बावजूद भी किसान अब इस फसल को उगाने में दिलचस्पी नहीं दिखा रहे हैं.वहीं कृषि विभाग भी सूरजमुखी की खेती के लिए किसानों को प्रेरित नहीं कर पा रही है.विभाग के द्वारा सरसों , तोरिया,अलसी की खेती करने के लिए प्रोत्साहन दिया जा रहा है .उत्तर प्रदेश में रबी के फसल के अंतर्गत बोई जाने वाली तिलहन की फसलों में इस बार सरसों, तोरिया और अलसी की मुफ्त किट का भी वितरण किया गया. कृषि विशेषज्ञ की माने तो प्रति हेक्टेयर में सूरजमुखी की खेती से किसानों को ₹100000 तक मुनाफा हो सकता है.
उत्तर प्रदेश में सूरजमुखी की खेती कभी फायदे का सौदा होती थी लेकिन वर्तमान में इसकी खेती के प्रति किसानों का रुझान कम हुआ है . सूरजमुखी की खेती में फायदा होने के बावजूद भी किसान चिड़ियों से होने के नुकसान के चलते अब इसकी खेती नहीं करना चाहते हैं. उत्तर प्रदेश में तिलहन के प्रदेश प्रभारी अधिकारी डॉ सुरेश बहादुर सिंह ने बताया कि सरकार के द्वारा वर्तमान रबी सीजन में सरसों ,तोरिया और अलसी फसलों की बुवाई का लक्ष्य निर्धारित किया गया है.वही किसानों को मुफ्त में इन फसलों की किट उपलब्ध कराई गई है.जबकि सूरजमुखी की कोई किट नहीं दी गई है.विभाग के पास सूरजमुखी की खेती के रकबे का भी कोई रिकॉर्ड नहीं है।
उत्तर प्रदेश में वर्ष 2022-23 में सरसों 8.2 लाख हेक्टेयर भूमि पर बुवाई का लक्ष्य है .जबकि तोरिया 4.50 लाख हेक्टेयर भूमि पर बुवाई का लक्ष्य निर्धारित किया गया है.इसके अलावा अलसी 50000 हेक्टेयर भूमि पर बोये जाने का लक्ष्य रखा गया है. छुट्टा पशुओं से रबी की फसलों को बड़े नुकसान के चलते अब किसान बड़ी संख्या में तिलहन की फसलों की बुवाई में दिलचस्पी दिखा रहे हैं जिससे प्रदेश में सरसों की बुवाई का क्षेत्रफल बढ़ने की संभावना है.
सूरजमुखी का तेल स्वास्थ्य के लिए काफी ज्यादा उपयोगी है.बाजार में इसकी मांग भी ज्यादा रहती है .फरवरी से लेकर मार्च महीने में इसकी बुवाई सबसे ज्यादा होती है.वही सूरजमुखी की खेती में अच्छे उत्पादन के चलते किसानों को मुनाफे की ज्यादा संभावना भी होती है.
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