रबी की फसलों की कटाई का सिलसिला शुरू हो गया है. कुछ हफ्ते बाद इसकी प्रमुख फसल गेहूं भी कटने लगेगी. इसी नाते योगी सरकार ने एक अप्रैल से गेहूं खरीद की भी घोषणा भी कर रखी है. अगर आप गेहूं की कटाई के बाद जायद या खरीफ की फसल की तैयारी के लिए गेहूं की पराली जलाने की सोच रहे हैं तो रुकिए और सोचिए. आप सिर्फ खेत नहीं उसके साथ अपनी किस्मत खाक करने जा रहे हैं. क्योंकि, पराली के साथ फसल के लिए सर्वाधिक जरूरी पोषक तत्व नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश (एनपीके) के साथ अरबों की संख्या में भूमि के मित्र बैक्टीरिया और फफूंद भी जल जाते हैं.
किसान ऐसा न करें, इसके लिए योगी सरकार किसानों को पराली जलाने से होने वाले नुकसान और जलाने की बजाय उनकी कम्पोस्टिंग करने के बाबत लगातार जागरूक कर रही है. कृषि प्रसार में लगे अधिकारी और कर्मचारी लगातार किसानों को पराली जलाने से होने वाले पर्यावरण और खेत की उर्वरा शक्ति को होने ही वाले क्षति के बाबत जागरूक कर रहे हैं. पराली की खेत में ही कम्पोस्टिंग से होने वाले लाभ और इसके तैयार करने के तरीके के बारे में भी बता रहे हैं.
योगी सरकार का प्रयास तो चक्रण के जरिये इसे किसानों के लिए आर्थिक रूप से उपयोगी बनाने का है. इसके लिए हर जिले में बायो कंप्रेस्ड गैस (सीबीजी) कई जगह बन गए हैं. कुछ जगह बन भी रहे हैं. साथ ही पराली जलाने पर 15 हजार रुपये जुर्माने का प्रावधान भी है. किसानों को जागरूक करने का यह सिलसिला इस सीजन में भी जारी है.
इफको के एरिया मैनेजर डॉ. डीके सिंह भी मानते हैं कि पराली जलाने की घटनाओं को रोकने में किसानों का जागरूक होना सबसे महत्वपूर्ण है. किसानों को पराली जलाने से होने वाली व्यापक क्षति के बाबत जागरूक करना होगा. साथ ही इसके निस्तारण के सस्ते और प्रभावी तरीकों को बताना होगा. उनको समझाना होगा कि पराली एक ऑर्गेनिक उत्पाद है. इस रूप में यह खेत की आत्मा है. चक्रण के जरिए इसका उपयोग कंपोस्ट खाद, कागज, बिजली या कंप्रेस्ड बायो गैस (सीबीजी) बनाने में संभव है.
पराली जलाकर आप न केवल पर्यावरण को क्षति पहुंचा रहे हैं बल्कि खुद की बेशकीमती चीज को भी खाक कर रहे हैं. एनबीआरआई ने एक स्ट्रा फैक्टर बनाया है. इसमें मौजूद फंगस एवं बैक्टीरिया धान की पराली की सिर्फ 10 दिन में कम्पोस्टिंग कर देता है. प्रति हेक्टेयर 20 लीटर की जरूरत. कीमत मात्र 100 रुपये. ऐसे नवाचारों को प्रोत्साहित करने के साथ इनको ग्रासरूट पर समय से पहुंचाना होगा.
शोधों से साबित हुआ है कि बचे डंठलों में एनपीके की मात्रा क्रमश: 0.5, 0.6 और 1.5 फीसद होती है. जलाने की बजाय अगर खेत में ही इनकी कम्पोस्टिंग कर दी जाय तो मिट्टी को यह खाद उपलब्ध हो जाएगी. इससे अगली फसल में करीब 25 फीसद उर्वरकों की बचत से खेती की लागत में इतनी ही कमी आएगी और लाभ इतना ही बढ़ जाएगा.
भूमि के कार्बनिक तत्वों, बैक्टिरिया फफूंद का बचना, पर्यावरण संरक्षण और ग्लोबल वार्मिग में कमी बोनस होगा. गोरखपुर एनवायरमेंटल एक्शन ग्रुप के एक अध्ययन के अनुसार प्रति एकड़ डंठल जलाने पर पोषक तत्वों के अलावा 400 किग्रा उपयोगी कार्बन, प्रतिग्राम मिट्टी में मौजूद 10-40 करोड़ बैक्टीरिया और 1-2 लाख फफूंद जल जाते हैं.
फसल अवशेष से ढकी मिट्टी का तापमान नम होने से इसमें सूक्ष्मजीवों की सक्रियता बढ़ जाती है, जो अगली फसल के लिए सूक्ष्म पोषक तत्व मुहैया कराते हैं. इतना ही नहीं, अवशेष से ढकी मिट्टी की नमी संरक्षित रहने से भूमि के जल धारण की क्षमता भी बढ़ती है. इससे सिंचाई में कम पानी लगने से इसकी लागत घटती है. साथ ही दुर्लभ जल भी बचता है.
डंठल जलाने की बजाय उसे गहरी जोताई कर खेत में पलट कर सिंचाई कर दें. शीघ्र सड़न के लिए सिंचाई के पहले प्रति एकड़ 5 किग्रा यूरिया का छिड़काव कर सकते हैं. इसके लिए कल्चर भी उपलब्ध है.
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