Purple Revolution: सेब, धान, मक्का छोड़कर लैवेंडर की खेती की तरफ क्यों बढ़ रहे कश्मीर के किसान

Purple Revolution: सेब, धान, मक्का छोड़कर लैवेंडर की खेती की तरफ क्यों बढ़ रहे कश्मीर के किसान

सरकारी आंकड़ों के अनुसार, जम्मू-कश्मीर में लैवेंडर की खेती को बढ़ावा देने के लिए केंद्र सरकार ने CSIR-अरोमा मिशन के तहत ‘पर्पल रिवॉल्यूशन’ की शुरुआत की. इस मिशन के अंतर्गत किसानों को मुफ्त पौधे, तकनीकी प्रशिक्षण और डिस्टिलेशन यूनिट्स की सुविधा दी गई. CSIR के मुताबिक, वर्तमान में जम्मू-कश्मीर में 200 एकड़ से अधिक क्षेत्र में लैवेंडर की खेती की जा रही है.

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Purple Revolution: सेब, धान, मक्का छोड़कर लैवेंडर की खेती की तरफ क्यों बढ़ रहे कश्मीर के किसान

कश्मीर की खेती परंपरागत रूप से सेब, धान और मक्का जैसी फसलों पर निर्भर रही है. लेकिन पिछले कुछ वर्षों में घाटी के किसानों के बीच लैवेंडर की खेती तेजी से लोकप्रिय हो रही है. इस बदलाव के पीछे जलवायु अनुकूलता, बेहतर आमदनी, कम लागत और सरकारी समर्थन जैसे कई अहम कारण हैं. लैवेंडर एक खुशबूदार और मेडिसिनल प्‍लांट है. इसका प्रयोग इत्र, कॉस्मेटिक्स, दवाइयों, अरोमा थेरेपी और परफ्यूम इंडस्ट्री में किया जाता है. इसकी बाजार में लगातार बढ़ती मांग किसानों के लिए इसे एक फायदेमंद ऑप्‍शन बना रही है. पारंपरिक फसलों की तुलना में लैवेंडर से मिलने वाली आमदनी अधिक और स्थिर मानी जा रही है.

200 एकड़ जमीन पर खेती 

सरकारी आंकड़ों के अनुसार, जम्मू-कश्मीर में लैवेंडर की खेती को बढ़ावा देने के लिए केंद्र सरकार ने CSIR-अरोमा मिशन के तहत ‘पर्पल रिवॉल्यूशन’ की शुरुआत की. इस मिशन के अंतर्गत किसानों को मुफ्त पौधे, तकनीकी प्रशिक्षण और डिस्टिलेशन यूनिट्स की सुविधा दी गई. CSIR के मुताबिक, वर्तमान में जम्मू-कश्मीर में 200 एकड़ से अधिक क्षेत्र में लैवेंडर की खेती की जा रही है, जिसमें करीब 5000 किसान और उद्यमी जुड़े हुए हैं.

पांच गुना ज्‍यादा तक इनकम 

लैवेंडर की खेती का सबसे बड़ा फायदा यह है कि यह फसल कम पानी में भी अच्छी पैदावार देती है. धान जैसी फसलों को जहां अधिक सिंचाई की जरूरत होती है, वहीं लैवेंडर सीमित जल संसाधनों में भी उगाया जा सकता है. कश्मीर की ठंडी जलवायु और ढलान वाली जमीन इस फसल के लिए बेहद उपयुक्त मानी जाती है. आर्थिक दृष्टि से भी लैवेंडर किसानों के लिए फायदेमंद साबित हो रहा है. सरकार और दूसरे रिसर्च इंस्‍टीट्यूट्स के आंकड़ों के अनुसार, एक एकड़ में लैवेंडर की खेती से किसानों को पारंपरिक फसलों की तुलना में चार से पांच गुना तक ज्‍यादा इनकम हो सकती है. 

लैवेंडर ऑयल है बहुत महंगा 

लैवेंडर के फूलों से निकाला गया तेल अंतरराष्‍ट्रीय बाजार में ऊंचे दामों पर बिकता है. इसके अलावा सूखे फूल, लैवेंडर वॉटर और अन्य वैल्यू-एडेड उत्पाद भी अतिरिक्त कमाई का जरिया बन रहे हैं. सेब, धान और मक्का की खेती में मौसम की मार और बाजार में उतार-चढ़ाव का जोखिम ज्‍यादा रहता है. जलवायु परिवर्तन के चलते सेब उत्पादन में अनिश्चितता बढ़ी है. वहीं धान और मक्का में लागत अधिक और मुनाफा सीमित होता है. इसके मुकाबले लैवेंडर एक अपेक्षाकृत सुरक्षित फसल मानी जा रही है जिसमें रोग और कीटों का प्रकोप भी कम होता है.

मिलता है रोजगार भी 

लैवेंडर की खेती से स्थानीय स्तर पर रोजगार के नए अवसर भी पैदा हो रहे हैं. आधिकारिक रिपोर्ट्स के मुताबिक, घाटी में लैवेंडर से जुड़े कामों में हजारों ग्रामीण युवाओं को रोजगार मिल रहा है. खेतों में काम के अलावा प्रोसेसिंग, पैकेजिंग और मार्केटिंग से जुड़े कार्यों में भी लोगों की भागीदारी बढ़ी है. इसके साथ ही लैवेंडर के खेत अब कश्मीर में एक नए पर्यटन आकर्षण के रूप में भी उभर रहे हैं. खिलते हुए बैंगनी फूलों के खेत देश-विदेश से आने वाले पर्यटकों को आकर्षित कर रहे हैं, जिससे ग्रामीण पर्यटन और स्थानीय अर्थव्यवस्था को भी फायदा मिल रहा है.

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