बासमती की इस वैरायटी के विरोध में उतरे किसान और वैज्ञानिक, खेती पर रोक लगाने की उठाई मांग  

बासमती की इस वैरायटी के विरोध में उतरे किसान और वैज्ञानिक, खेती पर रोक लगाने की उठाई मांग  

किसानों और वैज्ञानिकों का एक समूह इस समय बासमती चावल की दो किस्‍मों के खिलाफ खड़ा हो गया है. इन्‍होंने सरकार के वैज्ञानिकों की तरफ से जारी की गई दो हर्बसाइड-टॉलरेंट बासमती चावल की किस्मों की कमर्शियल खेती का विरोध किया है. उनका कहना है कि  इससे खरपतवार पैदा हो सकती है जिससे बासमती के निर्यात पर असर पड़ सकता है.

Advertisement
बासमती की इस वैरायटी के विरोध में उतरे किसान और वैज्ञानिक, खेती पर रोक लगाने की उठाई मांग  बासमती चावल की दो किस्‍मों के विरोध में वैज्ञानिक

किसानों और वैज्ञानिकों का एक समूह इस समय बासमती चावल की दो किस्‍मों के खिलाफ खड़ा हो गया है. इन्‍होंने सरकार के वैज्ञानिकों की तरफ से जारी की गई दो हर्बसाइड-टॉलरेंट बासमती चावल की किस्मों की कमर्शियल खेती का विरोध किया है. उनका कहना है कि  इससे खरपतवार पैदा हो सकती है जिससे बासमती के निर्यात पर असर पड़ सकता है. इस वजह से किसानों को भी नुकसान उठाना पड़ सकता है. किसानों का प्रतिनिधित्व करने वाले 100 से अधिक प्‍लांट साइंटिस्‍ट्स और हेल्‍थ एक्टिविस्‍ट्स ने सोमवार को केंद्रीय कृषि मंत्रालय से भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) की तरफ से पिछले महीने लांच की गई दो हर्बसाइड-टॉलरेंट चावल किस्मों के डिस्‍ट्रीब्‍यूशन को रोकने की मांग की है.

बाजार से वापस लेने की मांग  

अखबार द टेलीग्राफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार इनकी तरफ से एक चिट्ठी कृषि मंत्रालय को लिखी गई है और उस पर साइन भी किए गए हैं. इस चिट्ठी में लिखा है, 'किसानों और कंज्‍यूमर्स की ओर से इसका कड़ा विरोध किया जाएगा. अगर इन हर्बसाइड-टॉलरें किस्मों को तुरंत बाजार से वापस नहीं लिया गया, तो आईसीएआर को जनता के विरोध का सामना करना पड़ेगा.' इसमें यह भी कहा गया है कि पीआईएल के जरिये भी इन किस्‍मों का विरोध किया जाएगा क्‍योंकि जनहित के कई मामलों को नजरअंदाज किया जा रहा है. दरअसल चावल की से दोनों ही किस्में इमेजेथापायर नामक खरपतवार नाशक के सीधे छिड़काव को सहन कर सकती हैं. 

यह भी पढ़ें-बाजरा की खेती में होता है फड़का और सफेद लट का अटैक, इस तरह करें बचाव

क्‍या है सरकार का पक्ष 

यह हर्बसाइड धान के साथ उगने वाले खरपतवारों को खत्म कर सकती हैं.  दोनों ही किस्मों को किसान सीधे खेत में उगा सकते हैं. इसके लिए उन्हें नर्सरी से पौधे रोपने की जरूरत नहीं पड़ती.  भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई) जो कि आईसीएआर से ही जुड़ा एक संस्थान है, उसके वैज्ञानिकों ने कहा है कि सीधे बोए गए चावल में रोपे गए चावल की तुलना में पानी की खपत में काफी कमी आती है. इससे कुल पानी की जरूरत का 33 फीसदी बचता है. लेकिन खरपतवार सीधे बोए गए चावल के लिए एक बड़ी चुनौती पेश करते हैं.  

यह भी पढ़ें-सरकार ने किसानों के लिए एक भी मंडी नहीं बनाई, संसद में बरसे अखिलेश 

 

क्‍या कहते हैं वैज्ञानिक 

आईएआरआई के वैज्ञानिकों का कहना है कि दो हर्बसाइड टॉलरेंट बासमती किस्मों का मकसद इस चिंता को दूर करना है.  लेकिन विरोधियों ने मंत्रालय को लिखी अपनी चिट्ठी में सुपरवीड्स के पैदा होने को लेकर चिंता व्‍यक्‍त की है. उनका मानना है कि इसके लिए सुपरवीड्स कंट्रोल टेक्‍नोलॉजी के तौर पर ज्‍यादा से ज्‍यादा केमिकल का प्रयोग करना पड़ेगा. ऐसे में कंज्‍यूमर्स के पास जो फूड प्रॉडक्‍ट्स पहुंचेंगे वो केमिकल से लैस होंगे. वहीं रासायनिक छिड़काव वाले खेतों में काम करने वाले किसानों और खेती के काम में लगे मजदूरों की हेल्‍थ पर भी बुरा असर पड़ने की आशंका है.

यह भी पढ़ें-पाक‍िस्तानी विरोध के बाद भी एग्री एक्सपोर्ट का 'ब‍िग बॉस' बना बासमती 

चिट्ठी में साइन करने वाले व्‍यक्तियों की मानें तो इमेजेथापायर को भारत के कीटनाशकों के लिए किसी रेगुलेटर के तहत धान में प्रयोग के लिए कानूनी तौर पर रजिस्‍टर नहीं किया गया है. इसे सिर्फ सोयाबीन, मूंगफली, काला चना, हरा चना और लाल चना पर ही प्रयोग के लिए रजिस्‍ट्रेशन मिला हुआ है. 

POST A COMMENT