भारत में मुख्य रूप से धान और गेहूं की खेती की जाती है. खाद्य सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए ये दोनों फसलें बहुत महत्वपूर्ण हैं. यही कारण है कि यहां के किसान भी हर साल अधिक से अधिक धान और गेहूं की खेती करना पसंद करते हैं. धान की खेती लगभग पूरी हो चुकी है. ऐसे में धान की कटाई की तैयारी की जा रही है. इसके बाद गेहूं की फसल के लिए खेतों को तैयार किया जाएगा. कुछ किसान गेहूं की अगेती किस्म की बुआई की तैयारी में जुटे हैं. गेहूं की किस्मों की बात करें तो आज के समय में कई किस्में तैयार हो चुकी हैं जो हर परिस्थिति में बेहतर पैदावार देने में सक्षम हैं. ऐसे में आइए जानते हैं गेहूं की उन्नत किस्म DBW-327, इसकी खासियत और उपजाऊ क्षमता के बारे में.
कृषि में उत्पादन बढ़ाने के लिए किसानों और वैज्ञानिकों द्वारा प्रयास किए जा रहे हैं. इसी क्रम में वैज्ञानिकों ने गेहूं की एक नई किस्म विकसित की है जिसकी उपज प्रति एकड़ 35 क्विंटल (80 क्विंटल प्रति हेक्टेयर) हो सकती है. खास बात यह है कि गेहूं की इस किस्म DBW-327 गेहूं की किस्म पर मौसम जैसे अधिक धूप, कम बारिश, कम ठंड आदि का कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा. इसका उत्पादन सभी परिस्थितियों में एक समान रहेगा. DBW-327 को पकने यानी तैयार होने में आमतौर पर लगभग 130-140 दिन का समय लगता है.
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आपको बता दें कि DBW गेहूं की इस किस्म का नाम DBW- 327 है. DBW 327 गेहूं की सबसे अच्छी किस्म बताई जा रही है. यह किस्म रोगों से प्रभावित नहीं होती. अगर प्रति हेक्टेयर इसकी उपज की बात करें तो इस किस्म से 80 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक उपज प्राप्त की जा सकती है, जो कि गेहूं की किसी भी अन्य DBW गेहूं किस्म से अधिक है. गेहूं की इस किस्म को भारतीय गेहूं अनुसंधान संस्थान, करनाल के वैज्ञानिकों ने विकसित किया है. इसके साथ ही अन्य प्रौद्योगिकियों के विकास के लिए राष्ट्रीय गेहूं एवं जौ अनुसंधान संस्थान, करनाल को राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया है.
इस किस्म को विभिन्न बीमारियों से लड़ने के लिए विकसित किया गया है जो आमतौर पर गेहूं की फसलों को प्रभावित करती हैं. इन बीमारियों में ब्लास्ट और बैक्टीरियल लीफ ब्लाइट आदि के नाम हैं. रोग प्रतिरोधक क्षमता रासायनिक कीटनाशकों की आवश्यकता को कम करने में मदद करती है, जिससे यह अधिक पर्यावरण के अनुकूल बन जाता है.
DBW- 327 DBW गेहूं की किस्म एक रोग प्रतिरोधी किस्म है. इसलिए गेहूं की फसल पर कीटनाशकों के छिड़काव की लागत कम हो जाएगी. इसके अलावा चूंकि यह किस्म मौसम से प्रभावित नहीं होती है, इसलिए किसानों को इसकी ज्यादा देखभाल की जरूरत नहीं पड़ेगी. इस किस्म से किसानों को अधिक उत्पादन मिलेगा. इससे किसानों की आय में वृद्धि होगी, यानी इस किस्म से किसान कम मेहनत में अधिक मुनाफा प्राप्त कर सकेंगे.
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DBW-327 की खेती गेहूं उगाने वाले प्रमुख राज्यों में की जाती है. खासकर पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश जैसे उत्तरी राज्यों में इसकी खेती सफलतापूर्वक की जा सकती है. इन राज्यों की कृषि-जलवायु परिस्थितियों के प्रति इसकी उपजाऊ क्षमता ने इसकी लोकप्रियता को और बढ़ा दिया है.
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