सरसों और गेहूं दोनों का दाम इस समय न्यूनतम समर्थन मूल्य से अधिक है. ऐसे में दोनों का ध्यान रखना बहुत जरूरी है, वरना इन पर लगने वाले रोग आपकी उम्मीदों पर पानी फेर देंगे. कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि माहू रोग सिर्फ सरसों की ही फसल पर नहीं लगता बल्कि इसका प्रकोप गेहूं पर भी होता है. फसलों की बढ़वार के समय पत्तियों में रस भरा होता है. जिससे आकर्षित होकर कई प्रकार के रस चूसने वाले कीट उसे नुकसान पहुंचाते हैं. इनमें से ही एक है माहू कीट. जनवरी से लेकर फरवरी तक इस कीट के आक्रमण का समय होता है. यह कीट हल्के काले रंग का होता है.
भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान में प्लांट ब्रीडिंग के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. राजबीर यादव गेहूं में भी माहू लगता है, लेकिन सरसों के मुकाबले कम लगता है. रोगर इंसेक्टिसाइड का स्प्रे करके इससे मुक्ति पाई जा सकती है. कुछ कृषि वैज्ञानिकों का कहना हैकि एक लीटर नीम तेल प्रति एकड़ 200 लीटर पानी में घोल बनाकर स्प्रे करने से भी इस पर काबू पाया जा सकता है. भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान ने कहा है कि गेहूं की खेती में दीमक और माहू का प्रकोप बढ़ रहा है. यदि माहू की संख्या प्रति पौधा 10 से अधिक हो जाए तो इमिडाक्लोप्रिड की 20 ग्राम मात्रा को 300 लीटर पानी में घोल कर खेत में छिड़काव करें.
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कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि माहू कीट गेहूं की फसल में पत्तियों के अंदर छिपकर रहता है और रस चूस लेता है. इससे पत्तियों में नमी की कमी हो जाती है. पत्तियां आपस में लिपटने लगती हैं. प्रकोप ज्यादा समय रहे तो गेहूं की बालियां निकलने में दिक्कत होती है. जिससे उत्पादन प्रभावित होता है. दूसरी ओर, अगर दीमक का प्रकोप है तो प्रारंभिक अवस्था में इसके नियंत्रण के लिए क्लोरपाइरीफास की 3 लीटर प्रति हैक्टेयर मात्रा को 300 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें. गेहूं में रतुआ और करनाल बंट का प्रकोप भी बड़े पैमाने पर होता है.
यह पीला, भूरा व काले रंग के रतुआ के नाम से जाना जाता है. इनमें पत्तियां तथा तनों पर रतुआ की किस्म के आधार पर उसी रंग के धब्बे बन जाते हैं. इसकी रोकथाम के लिए नई एवं अवरोधी प्रजातियां ही बोनी चाहिए. जिनेब या डाइथेन एम-45 का 0.2 प्रतिशत घोल बनाकर छिड़काव करने से इन बीमारियों से होने वाली हानि को कम किया जा सकता है.
इस रोग से बालियों में दानों की जगह काला चूर्ण भर जाता है. इसकी रोकथाम के लिए वीटावैक्स या कारबेन्डाजीम 2.5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज अथवा टेबूकोनाजोल 1.25 ग्राम प्रति किलोग्राम की दर से बीज को उपचारित करना चाहिए.
भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान ने बताया है कि यह एक कवकजनित रोग है. इससे पत्तियां सूखने के बाद पूरा पौधा सूख जाता है. अधिक आर्द्रता एवं तापमान होने पर इस रोग का प्रकोप अधिक होता है. इस बीमारी से बचाव के लिए नई प्रजातियों को ही प्रयोग में लाना चाहिए.
इस बीमारी से गेहूं का दाना काला पड़ जाता है, जिससे बाजार में उचित भाव नहीं मिल पाता है. इसके बचाव के लिए गेहूं की नई और रोगरोधी किस्मों का ही प्रयोग करना चाहिए. इसके बचाव के लिए थायरम 2.5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचार करना चाहिए. कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि उचित देखभाल करके गेहूं की फसल से अधिक उपज व शुद्ध लाभ प्राप्त किया जा सकता है.
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