उत्तराखंड के बागेश्वर की नाशपाती पूरी दुनिया में मशहूर है और इसकी क्वालिटी की वजह से इसे लोग ज्यादा तरजीह देते हैं. लेकिन इन सबके बावजूद बागेश्वर के स्थानीय किसान कम कीमतों की समस्या से जूझ रहे हैं. 50 पैसे प्रति किलोग्राम की कीमत ने किसानों को आर्थिक संकट में डाल दिया है क्योंकि यह उत्पादन लागत से भी कम हो गई है. किसानों को समझ नहीं आ रहा है कि अब वो इस समस्या का समाधान कैसे निकलेगा.
टाइम्स ऑफ इंडिया ने स्थानीय किसान शेखर चंद्रा के हवाले से लिखा है कि पहले, नाशपाती की अच्छी कीमत मिलती थी क्योंकि ठेकेदार एडवांस पेमेंट कर देते थे और फसल ले लेते थे. उन्होंने कहा कि इस साल ठेकेदार 40 किलो के बैग के लिए केवल 20 रुपये दे रहे हैं, जिससे मुश्किल से ही खर्च निकल पाता है. बताया जा रहा है कि कई किसानों को अब नाशपाती की खेती में कोई रुचि नहीं है. यहां तक कि वो अपने नाशपाती के पेड़ों को उखाड़ने की हद तक चले गए.
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गागरीगोले की एक किसान रीना पाठक भी इस बार काफी निराश हैं. उन्होंने कहा, 'इस साल, हमारे पास अच्छी फसल थी क्योंकि ओलावृष्टि नहीं हुई थी. मुझे उम्मीद थी कि नाशपाती की फसल बेचकर मैं अपने बच्चों की कॉलेज फीस और अन्य घरेलू खर्च पूरा कर पाऊंगी.' इस क्षेत्र के एक्सपर्ट्स कहते हैं कि पहाड़ी नाशपाती के लिए स्कीम बनाने और न्यूनतम मूल्य निर्धारित करने में सरकार की अक्षमता फलों और किसानों दोनों के लिए सबसे अधिक हानिकारक रही है. ऐसे में किसानों की उदासीनता साफ नजर आ रही है.
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स्थानीय निवासी पूरन सिंह ने बताया कि बागेश्वर में नाशपाती बेस्ड इंडस्ट्री लगाने की मांग लंबे समय से की जा रही है. उन्होंने कहा कि प्रतिनिधियों ने ऐसा इंडस्ट्री लगाने का वादा किया है, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई है. दूर-दराज के पहाड़ों में फलों के दाम ज्यादा नहीं मिल रहे हैं. वो बाजार से दूर हैं और ठेकेदार को वहां तक सामान पहुंचाने के लिए बहुत ज्यादा पैसे देने पड़ते हैं.
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