तूर यानी अरहर दाल की बढ़ती कीमतों ने सरकार पर बाजार में उपलब्धता बनाए रखने का दबाव बढ़ा दिया है. तूर दाल बीते साल की तुलना में प्रति किलो 46 रुपये महंगी हो गई है. लगातार तूर, चना और मूंग दाल की कीमतों में बढ़ोतरी के कारण बीते अक्टूबर में दालों की खुदरा मुद्रास्फीति बढ़कर 18.79% पहुंच गई. कीमतें नियंत्रित करने के लिए सरकार करीब 10 लाख मीट्रिक टन तूर दाल की खरीद सीधे किसानों से करेगी. माना जा रहा है कि इससे तूर बुवाई का रकबा बढ़ाने के लिए किसान प्रोत्साहित होंगे, जिससे उत्पादन बढ़ेगा और विदेशी बाजार से तूर खरीद निर्भरता घटेगी.
सरकारी आंकड़ों के अनुसार तूर दाल की अखिल भारतीय खुदरा कीमत पिछले साल के 112 रुपये प्रति किलोग्राम से 40 फीसदी बढ़कर इस साल 158 रुपये प्रति किलोग्राम हो गई है. मुख्य रूप से अरहर, चना और मूंग की कीमतों में तेज बढ़ोतरी के कारण अक्टूबर में दालों की रिटेल इनफ्लेशन बढ़कर 18.79% हो गई, जबकि इसी महीने में खाद्य मुद्रास्फीति 6.61 फीसदी दर्ज की गई थी. यह स्थिति मार्च में तूर दाल आयात शुल्क को समाप्त करके अफ्रीकी देशों और बर्मा से आयात बढ़ाने के प्रयास के बाद है.
सरकार ने तूर दाल की खरीद को कुछ मीट्रिक टन से बढ़ाकर लगभग 8-10 लाख मीट्रिक टन (LMT) करने की योजना बनाई है. ताकि एक साल में कमोडिटी की कीमतों को नियंत्रण में रखा जा सके, क्योंकि दाल का रकबा कम हो गया है और उत्पादन में कमी की आशंका है. इकनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार मामले से जुड़े वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि तूर दाल की खरीद मूल्य स्थिरीकरण कोष (Price Stabilization Fund (PSF)) के जरिए बाजार दरों पर होगी, जो न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) से काफी अधिक है.
सरकार तूर दाल की खरीद नेशनल एग्रीकल्चरल कोऑपरेटिव मार्केटिंग फेडरेशन ऑफ इंडिया (NAFED) और नेशनल कोऑपरेटिव कंज्यूमर्स फेडरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (NCCF) के माध्यम से सीधे किसानों से करेगी. सीजन की शुरुआत में ही खरीदारी शुरू हो जाएगी. फसल के बाजार में आने की शुरुआत हो चुकी है.अक्टूबर में कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय के अग्रिम अनुमान के अनुसार तूर का उत्पादन 34.21 लाख मीट्रिक टन है, जो पिछले साल के उत्पादन से थोड़ा कम है.इससे किसानों को यह संदेश जाएगा कि बाजार में निश्चित खरीदार है, जिससे उन्हें आने वाले वर्षों में अधिक अरहर की खेती करने के लिए प्रोत्साहन मिलेगा. वहीं, आयात निर्भरता कम करने में मदद करेगी.
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रिपोर्ट के अनुसार तूर दाल आयात पर भारी निर्भरता के कारण मोजांबिक और बर्मा जैसे देश शर्तें तय कर रहे हैं, जिससे दाल की आपूर्ति में बाधा आ रही है. खरीफ सीजन के दौरान तूर का रकबा कम हो गया, जिससे उत्पादन में कमी आई, जिसके चलते पिछले कुछ महीनों में खाद्य मुद्रास्फीति बढ़ गई. सरकारी आंकड़ों के अनुसार तूर का क्षेत्रफल 29 सितंबर 2022 को 46.13 लाख हेक्टेयर से घटकर 29 सितंबर 2023 को 43.87 लाख हेक्टेयर हो गया है.
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