उत्पादन में कमी के बीच तूर दाल यानी अरहर का दाम बढ़ने लगा है. देश के दूसरे सबसे बड़े अरहर उत्पादक महाराष्ट्र में इसका भाव एमएसपी के मुकाबले 2500 रुपये प्रति क्विंटल तक ज्यादा हो गया है. उम्मीद है कि इसमें और वृद्धि होगी, क्योंकि इसकी मांग और आपूर्ति में लगभग 11 लाख टन का भारी अंतर है, जिसे पूरा करने के लिए सरकार को इसका आयात करना पड़ेगा. इसलिए बाजार विशेषज्ञों का कहना है कि अरहर का दाम इस साल 10000 रुपये प्रति क्विंटल को पार कर सकता है. केंद्र सरकार ने अरहर उत्पादक किसानों के नेफेड में रजिस्ट्रेशन के जरिए एमएसपी पर इसकी 100 फीसदी खरीद करने की गारंटी दी है, इसलिए भी ओपन मार्केट में इसके दाम में तेजी का रुख है.
केंद्र सरकार के ऑनलाइन मंडी प्लेटफॉर्म राष्ट्रीय कृषि बाजार (e-NAM) के अनुसार औरंगाबाद की लासुर स्टेशन मंडी में 18 मार्च को अरहर का न्यूनतम दाम 9,516 और अधिकतम भाव 9,611 रुपये प्रति क्विंटल रहा. इसी प्रकार अमरावती जिले के अंजनगांव सुरजी में अरहर का न्यूनतम दाम 9,335 और अधिकतम 9,880 रुपये प्रति क्विंटल रहा. जबकि नागपुर की काटोल मंडी में अधिकतम दाम 9,911 रुपये क्विंटल रहा.
इसे भी पढ़ें: Onion Price: देश में बढ़ेगा प्याज का संकट, आसमान पर पहुंचेगा दाम
केंद्र सरकार ने 2023-24 के लिए 400 रुपये की वृद्धि करके अरहर (तुअर) का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) 7000 रुपये प्रति क्विंटल तय कर रखा है. सरकार के अनुसार देश में इसकी औसत लागत 4444 रुपये प्रति क्विंटल आती है. लागत पर 58 फीसदी का मार्जिन देकर एमएसपी तय की गई है. हालांकि उत्पादन में भारी गिरावट के बीच दाम एमएसपी से ज्यादा चल रहा है.
भारत में अरहर की सालाना मांग लगभग 45 लाख टन की है, जबकि उत्पादन 34 लाख टन ही रह गया है. इस साल उत्पादन 33.39 लाख टन होगा, जो पिछले से मामूली ही अधिक है. लेकिन 2021-22 में हुए 42.20 लाख टन से काफी कम है. अरहर दाल की खपत और उत्पादन में लगभग 11 लाख टन है. इसकी पूर्ति आयात से करनी होगी, इसलिए दाम में तेजी कायम रहने का अनुमान है. भारत हर साल 16 से 18 हजार करोड़ रुपये की दालें आयात कर रहा है.
भारत दलहन फसलों का सबसे बड़ा उत्पादक, उपभोक्ता और आयातक तीनों है. दुनिया का 25 फीसदी दलहन उत्पादन भारत में होता है. लेकिन विश्व की 27 से 28 फीसदी खपत भी यहीं होती है. इसका मतलब यह है कि डिमांड और सप्लाई में तीन फीसदी का अंतर है. इसलिए हम दालों के बड़े आयातक भी हैं.
बढ़ती जनसंख्या की जरूरतों को पूरा करने के लिए दलहन फसलों की जितनी खेती बढ़नी चाहिए थी उतनी नहीं बढ़ी. गेहूं-धान पर ज्यादा जोर दिया गया. जिससे आज हम दलहन के आयोजक हैं. आजादी के बाद 1951 में भारत में प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष दालों की उपलब्धता 22.1 किलोग्राम थी, जो 2021 में घटकर सिर्फ 16.4 किलोग्राम ही रह गई है.
इसे भी पढ़ें: जैविक और प्राकृतिक खेती के नारे के बीच बढ़ गई रासायनिक उर्वरकों की बिक्री, आयात में आई कमी
Copyright©2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today