गेहूं की फसल में रोग और पहचानभारत में रबी सीजन की सबसे ज़रूरी फसल गेहूं की खेती मानी जाती है. रबी मौसम शुरू होते ही खेतों में नई उम्मीदें भी अंकुरित होने लगती हैं. गेहूं की बुवाई के साथ किसान भरपूर पैदावार और अच्छे मुनाफे का सपना सजोते हैं. लेकिन फसल पर अगर रोग या कीटों का हमला हो जाए, तो मेहनत और उम्मीद दोनों पर पानी फिर सकता है. ऐसे में जरूरी है कि किसान समय रहते गेहूं में लगने वाले प्रमुख रोगों को पहचानें और सही कदम उठाकर अपनी फसल को सुरक्षित रखें.
लक्षण: इस रोग में गेहूं की पत्तियों पर छोटे-छोटे नारंगी या भूरे रंग के धब्बे दिखाई देते हैं. ये धब्बे पत्तियों की दोनों सतहों पर फैलते हैं और फसल बढ़ने के साथ इनका प्रकोप तेजी से बढ़ता है. यह रोग ज्यादातर पंजाब, बिहार, उत्तर प्रदेश जैसे उत्तर और पूर्वी क्षेत्रों में देखा जाता है.
रोकथाम:
लक्षण: इस रोग में तनों पर भूरे-काले धब्बे बन जाते हैं और बाद में ये पत्तियों तक फैलते हैं. तना कमजोर हो जाता है जिससे दाने छोटे और हल्के बनते हैं. यह रोग मुख्य रूप से दक्षिणी पहाड़ी क्षेत्रों और मध्य भारत में अधिक पाया जाता है.
रोकथाम:
लक्षण: पत्तियों पर पीली धारियां बन जाती हैं और इन्हें हाथ से छूने पर पीला चूर्ण निकलता है. यह रोग ठंडे और पहाड़ी क्षेत्रों जैसे हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर में ज्यादा देखा जाता है.
रोकथाम:
लक्षण: एफिड छोटे हरे रंग के कीट होते हैं जो पत्तियों और बालियों का रस चूस लेते हैं. इनके वजह से काली फफूंद भी लग जाती है, जिससे पौधा कमजोर हो जाता है और दाने अच्छे से नहीं बन पाते.
रोकथाम:
लक्षण: दीमक पौधों की जड़ों को कुतरकर नुकसान पहुँचाती है. सूखी मिट्टी और नमी की कमी वाले क्षेत्रों में इनका प्रकोप ज्यादा होता है. प्रभावित पौधे पीले पड़ने लगते हैं और ऊपर से गिरते हुए दिखाई देते हैं.
रोकथाम:
अगर किसान गेहूं की फसल में होने वाले इन रोगों और कीटों की जल्दी पहचान कर लें और समय पर सही उपचार करें, तो फसल को होने वाला नुकसान काफी हद तक रोका जा सकता है. सही प्रबंधन और नियमित निगरानी से किसान अपनी उपज बढ़ाकर बेहतर मुनाफा कमा सकते हैं.
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