खेतों में सड़ रही टमाटर फसल, किसान नहीं कर रहे तैयार उपज की तुड़ाई, जानें वजह

खेतों में सड़ रही टमाटर फसल, किसान नहीं कर रहे तैयार उपज की तुड़ाई, जानें वजह

वायरस से प्रभावित टमाटरों की शेल्फ लाइफ उन टमाटरों की तुलना में कम होती है जो प्रभावित नहीं होते. जब तक किसान टमाटर की कटाई करके उन्हें दूसरी जगहों पर ले जाते हैं, जिसमें लगभग पांच से छह दिन लगते हैं, तब तक उपज अपनी गुणवत्ता खो देती है.

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खेतों में सड़ रही टमाटर फसल, किसान नहीं कर रहे तैयार उपज की तुड़ाई, जानें वजहटमाटर की कीमत में भारी गिरावट. (सांकेतिक फोटो)

कर्नाटक में टमाटर किसान काफी परेशान हैं. कीमतों में गिरावट के चलते किसान फायदा तो दूर लागत भी नहीं निकाल पा रहे हैं. ऐसे में त्यौहारी सीजन में किसानों को काफी आर्थिक नुकसान उठाना पड़ रहा है. कहा जा रहा है कि जो टमाटर कुछ दिनों पहले तक 1000 रुपये में 15 किलो बिक रहा था, अब उसकी कीमत गिरकर 250 से 400 रुपये रह गई है. वहीं, कई किसान तो घाटा लगने के चलते टमाटर की तुड़ाई ही नहीं कर रहे हैं. इससे खेतों में ही टमाटर सड़ जा रहे हैं. वहीं, व्यापारियों का कहना है कि आने वाले दिनों में कीमतों में और गिरावट आ सकती है. इससे किसानों का आर्थिक नुकसान और बढ़ जाएगा.

द हिन्दू की रिपोर्ट के मुताबिक, कर्नाटक के कोलार में पिछले महीने टमाटर की कीमतों में भारी गिरावट आई है. इससे किसानों का काफी नुकसान हो रहा है. हालांकि, व्यापारियों का कहना है कि टमाटर की कीमतों में गिरावट तीन कारणों से आई है. जिसमें अधिक उत्पादन, फसल पर वायरस के हमले के कारण शेल्फ लाइफ में कमी और बांग्लादेश को निर्यात में कमी शामिल है. इसके चलते कोलार और चिकबल्लापुर जिले में टमाटर काफी सस्ता हो गया.

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मंडी में आ रहे 10 लाख डिब्बे टमाटर

हालांकि, कुछ हफ़्ते पहले कोलार में कृषि उपज बाज़ार समिति (APMC) में केवल 3 लाख डिब्बे टमाटर आते थे. अब, उत्पादन बढ़ने के कारण लगभग 10 लाख डिब्बे आ रहे हैं. कोलार के एक टमाटर किसान वेंकट रेड्डी ने कहा कि पड़ोसी जिलों के अलावा, आंध्र प्रदेश से भी टमाटर कोलार आ रहे हैं. इससे भी टमाटर की कीमतों में गिरावट आई है. उन्होंने कहा कि हर राज्य में अब अपनी ही आपूर्ति बेची जा रही है. आंध्र प्रदेश में आपूर्ति इतनी है कि यह कर्नाटक में आ रही है. जबकि कर्नाटक पिछले तीन वर्षों से टमाटर को प्रभावित करने वाले वायरस से जूझ रहा है, उन्हें यह समस्या नहीं है. इसलिए उनका स्टॉक कर्नाटक के स्टॉक से अधिक कीमत पर बिक रहा है.

जल्दी खराब हो जा रहे हैं टमाटर

दरअसल, वायरस से प्रभावित टमाटरों की शेल्फ लाइफ उन टमाटरों की तुलना में कम होती है जो प्रभावित नहीं होते. जब तक किसान टमाटर की कटाई करके उन्हें दूसरी जगहों पर ले जाते हैं, जिसमें लगभग पांच से छह दिन लगते हैं, तब तक उपज अपनी गुणवत्ता खो देती है. कई किसानों ने यह भी बताया कि कीमतों में गिरावट के कारण उन्होंने अपने खेतों में टमाटर की कटाई भी नहीं की है. उनमें से कुछ तो अपनी उपज सड़कों पर फेंक रहे हैं. जब हम इसे बाजार में ले जाते हैं तो भी हम लागत नहीं निकाल पाते, तो मजदूरी और परिवहन के लिए भुगतान करने का क्या मतलब है? 

इस वजह से कीमतों में आई गिरावट

किसानों ने यह भी कहा कि बांग्लादेश में चल रही राजनीतिक अशांति ने कोलार में टमाटर की बिक्री को 30 फीसदी तक प्रभावित किया है. कोलार के एक अन्य किसान मंजूनाथ ने कहा कि हर दिन, यहां से पश्चिम बंगाल में लगभग 5,000 से 10,000 क्रेट टमाटर जाते थे, जहां से उन्हें बांग्लादेश निर्यात किया जाता था. पिछले कुछ दिनों में, एक या दो क्रेट भी वहां नहीं जा रहे हैं. इसलिए उस स्टॉक को भी स्थानीय बाज़ारों में बेचना पड़ रहा है, जिससे टमाटर की अधिकता हो गई है. कीमतों में गिरावट का आलम यह है कि जो टमाटर पहले 100 रुपये प्रति किलोग्राम से अधिक की दर से बिक रहा था, अब बेंगलुरु के बाज़ारों में टमाटर 20 से 30 रुपये प्रति किलोग्राम के बीच बिक रहा है. अगले कुछ महीनों में टमाटर की कीमत इसी तरह जारी रहने की उम्मीद है. 

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