प्याज की निर्यात बंदी के तीन महीने पूरे हो चुके हैं. अभी तक सरकार ने दोबारा से इस फैसले को रिव्यू नहीं किया है कि बैन 31 मार्च को हटा दिया जाएगा या नहीं. इससे किसान असमंजस में हैं कि वो क्या करें. जब से निर्यात बंदी हुई है तब से किसानों का लाखों का नुकसान हो चुका है. इसलिए उनमें सरकार के खिलाफ गुस्सा है.महाराष्ट्र कांदा उत्पादक संगठन के अध्यक्ष भारत दिघोले का कहना है कि पिछले 6 महीने से प्याज पर बढ़ते सरकारी हस्तक्षेप की वजह से किसानों का करीब 10 हजार करोड़ रुपये का नुकसान हो चुका है. किसानों को आर्थिक नुकसान पहुंचाने वालों को इसकी कीमत चुनाव में चुकानी पड़ेगी.
दिघोले ने कहा कि लगातार घाटे की वजह से प्याज उत्पादक किसान बहुत दुखी हैं. परेशान होकर के काफी लोगों ने इसकी खेती भी छोड़ी है. इसलिए अब चुनाव में वह खेती को नुकसान पहुंचाने वालों को सबक सिखाने की तैयारी कर रहे हैं. हम नहीं कह रहे हैं कि किस पार्टी को वोट देना है लेकिन हम इतना जरूर बोल रहे हैं कि जिन्होंने किसानों को आर्थिक चोट पहुंचाई है उन्हें वोट की चोट देना है.
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दिघोले ने कहा कि अगस्त 2023 से सरकार प्याज किसानों के पीछे पड़ी हुई है. पहले एक्सपोर्ट पर 40% ड्यूटी लगाई. उसके बाद 800 डॉलर प्रति टन का मिनिमम एक्सपोर्ट प्राइस फिक्स किया. उसके बाद 7 दिसंबर की देर रात एक्सपोर्ट पर पूरी तरह से बैन लगा दिया. इस फैसले ने किसानों को तोड़ दिया. अगस्त से अब तक सरकारी नीतियों के कारण हर किसान का करीब 4 से 5 लाख रुपये का नुकसान हो चुका है. महाराष्ट्र में हरा किसान औसतन 200 क्विंटल ब्याज एक सीजन में पैदा कर लेता है. सरकारी हस्तक्षेप की वजह से उसके दो सीजन खराब हो चुके हैं.
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