क्या आप एवोकैडो फल के बारे में जानते हैं. इसकी लोकप्रियता बढ़ रही है. इस फल में पर्याप्त मात्रा में पोषक तत्व होते हैं. इसमें प्रोटीन 4 और वसा 30 प्रतिशत होता है. लेकिन इसमें कार्बोहाइड्रेट कम होता है. कई विटामिनों का भंडार होने के अलावा एवोकैड़ो में किसी भी फल की तुलना में ज्यादा ऊर्जा होती है. इसके 100 ग्राम में 245 कैलोरी होती है. भारत में, इसे वर्ष 1906 और 1914 के बीच बेंगलुरु में लगाया गया था. पसंदीदा किस्मों के पौधे भी कभी-कभी अमेरिकी मिशनरियों द्वारा अपने देश से लाए जाते थे जो 1912 और 1940 के दौरान भारत में समय- समय पर प्रवास के लिए आए थे.
वोकैडो (पर्शिया अमेरिकाना) उष्ण- कटिबंधीय अमेरिका का मूल वृक्ष है. इसकी उत्पत्ति संभवतया एक से अधिक जंगली प्रजातियों से मैक्सिको और मध्य अमेरिका में हुई थी. यही कारण है कि इस क्षेत्र के कई हिस्सों और पहाड़ी क्षेत्रों, जैसे नीलगिरी के पास कल्लार, कोडाइकनाल की पलानी पहाड़ियां, यरकौड की श्रेवराय पहाड़ियां, कूर्ग आदि में एवोकैडो की एक दर्जन से अधिक किस्में उगाई जाती हैं. कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु, सिक्किम और अन्य राज्यों में रोपण के लिए कई आशाजनक किस्मों के एवोकैडो लाए गए थे. इसकी खेती ने पिछले कुछ समय में अत्यधिक लोकप्रियता हासिल की है.
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भारत में इसका उत्पादन बहुत सीमित है. एवोकैडो के व्यावसायिक बगीचे लगभग न के बराबर हैं. देश के विभिन्न हिस्सों में प्रचलित कृषि जलवायु परिस्थितियां अधिक क्षेत्रों को एवोकैडो के अंतर्गत लाने के लिए अनुकूल प्रतीत होती हैं. वर्तमान में, वृक्षारोपण भलीभांति व्यवस्थित नहीं हैं और वे तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक और पूर्वोत्तर हिमालयी राज्यों जैसे दक्षिणी उष्णकटिबंधीय राज्यों में बिखरे हुए हैं. इन क्षेत्रों में हर साल लगभग 7000 टन एवोकैडो का उत्पादन हो सकता है. उत्पादन तेजी से बढ़ रहा है क्योंकि अधिक से अधिक क्षेत्रों को इसकी खेती के तहत लाया जा रहा है.
इसकी सभी तीन बागवानी प्रजातियां यानी उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय परिस्थितियों के अनुकूल हैं. ये प्रजातियां वेस्ट इंडियन, ग्वाटेमाला एवं मैक्सिकन हैं. भारत में इनका परीक्षण भी किया गया है. दुनिया के विभिन्न हिस्सों में एवोकैडो की 100 से अधिक किस्में उगाई जाती हैं. आईए इनकी प्रमुख किस्मों के बारे में जानते हैं. ग्रीन टाइप, पर्पल, टीकेडी-1, नाबाल, लिंडा, पुयेवला, गॉट-फ्राइड फ्यूरेट, पोलक, वाल्डिन, अर्का सुप्रीम, हैस यहां की प्रमुख किस्में हैं.
यह 'बी' प्रकार की किस्म है. यह इजराइल से फुर्ट (मैक्सिकन / ग्वाटेमाला क्रॉस) के अंकुर के रूप में उत्पन्न हुई थी और 1947 में वहां इसकी खेती की गई थी परिपक्व पेड़ 6 डिग्री सेल्सियस को चार घंटो तक सहन कर सकते हैं. फल की त्वचा चिकनी, पतली और हरी होती है जो आसानी से नहीं उतरती गूदा बहुत हल्का हरे रंग का होता है.
यह 'बी' प्रकार की किस्म है और यह कठोर होने के साथ 3°C तक से भी कम तापमान सहन करती है. पेड़ का आकार बड़ा होता है. फल मध्यम एवं नाशपाती आकार के हरे चमड़ेदार और छीलने में आसान तथा त्वचा वाले होते हैं. मलाईदार गूदे में हल्का तथा भरपूर स्वाद और 18 प्रतिशत तेल होता है. पके फल का छिलका हरे रंग का होता है.
यह 'ए' प्रकार की किस्म है और वर्ष 2020 में सेंट्रल हॉर्टिकल्चरल एक्सपेरिमेंट स्टेशन (आईआईएचआर), चेहल्ली द्वारा इसे विकसित किया गया था. यह एक उच्च उपज वाली अच्छी गुणवत्ता वाले फलों की किस्म है. इस किस्म का फूल व्यवहार प्रकार 'ए' व श्रेणी के अंतर्गत आता है. इसमें फैलने वाले प्रकार की वृद्धि की आदत के साथ नियमित फल और उच्च उपज देने वाले अंकुर चयन के भी फायदे हैं. फल 7.8 ओब्रिक्स टीएसएस के साथ आयताकार होते हैं. एक पूर्ण विकसित पेड़ से लगभग 175-200 किग्रा/ फल का उत्पादन होता है. इसमें फल का औसत वजन 367-428 ग्राम 20 प्रतिशत वसा और 0.45 प्रतिशत फाइबर होता है.
यह 'ए' प्रकार की किस्म है और यह फैलने वाले प्रकार की वृद्धि के साथ स्थानीय संग्रह से एक आशाजनक नियमित फल देने एवं उच्च उपज देने वाली पौध है. एक पूर्ण विकसित पेड़ 150-200 किग्रा फल देता है और फल का औसत वजन 450-600 ग्राम होता है. गूदे की प्राप्ति 80 प्रतिशत होती है. फल मोटे आधार वाले समचतुर्भुज होते हैं. टीएसएस 6.5 से 8.0 ओब्रिक्स और वसा की मात्रा लगभग 12 से 14 प्रतिशत है.
भारत में, एवोकैडो को आमतौर पर बीजों के माध्यम से लगाया जाता है. इसके बीजों की जीवनक्षमता काफी कम (2 से 3 सप्ताह) होती है. परिपक्व फलों से लिए बीजों को सीधे नर्सरी या पॉलीथीन बैग में बोया जाता है. अंकुर वाले वृक्षों को फल लगने में अधिक समय लगता है और उपज और फल की गुणवत्ता अत्यधिक परिवर्तनशील होती है.
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