टमाटर की फसलों पर लगते हैं ये रोग, जानिए इसे दूर करने का सही तरीका

टमाटर की फसलों पर लगते हैं ये रोग, जानिए इसे दूर करने का सही तरीका

टमाटर की फसलों में लगने वाले है ये 5 प्रमुख रोग. इसके कारण उत्पादन में भारी गिरावट आ जाती है. इसके चलते किसानों को अधिक नुकसान उठाना पड़ता है. जानिए इन रोगों के लक्षण और नियंत्रण के उपाय.

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टमाटर की फसलों पर लगते हैं ये रोग, जानिए इसे दूर करने का सही तरीका जानिए टमाटर की फसलों पर लगने वाले रोगों के बारे में

टमाटर की फसल यदि आप लेते हैं तो टमाटर की नर्सरी डालने से लेकर और फल आने तक कोई ना कोई रोग लगता ही रहता है और उसके लिए तरह-तरह के उपाय भी किए जाते हैं. उपाय बहुत से भाई रासायनिक तरीके से करते हैं तो बहुत से किसान भाई जैविक तरीके से करते हैं. लेकिन जब तापमान कम होता है या मौसम ठंडा हो जाता है तब वातावरण में आर्द्रता अधिक आ जाती है. जिसके कारण उत्पादन में 20 से 30 प्रतिशत तक कमी आ जाती है. इसके अलावा बेमौसमी संकर किस्मों का प्रयोग भी इसमें अहम भूमिका निभाता है. ऐसे में टमाटर की फसल में रोग नियंत्रण के उपाय करना बेहद जरूरी हो जाता है ताकि उत्पादन प्रभावित न हो. इसके लिए जरूरी है कि समय पर रोगों के नियंत्रण के उपाय अपनाएं जाएं. 

जानिए टमाटर की फसलों को कीटों से बचाने का उपाए. इस समय बाजार में टमाटर की किमते आसमान छू रही हैं जिसके पीछे का कारण टमाटर की उत्पादन में भारी गिरावट बताया जा रहा हैं. किसानों का कहना हैं कि बेमौसमी बारिश और फसलों पर कीटों और रोगों का अटैक बताया जा रहा हैं. जानिए टमाटर की फसलों पर लगाने वाले रोगों से मुक्त रखने के उपाय के बारे में. 

आर्द्र गलन रोग

टमाटर में यह रोग फफूंद राइजोक्टोनिया एवं फाइोफ्थोरा कवकों के मिले जुले संक्रमण से होता है. इससे प्रभावित पौधे का निचला तना गल जाता है. शुरुआत में बीमारी के लक्षण कुछ जगहों में दिखाई पड़ते हैं और 2 से 3 दिनों में पूरी पोधों में फैल जाते हैं. टमाटर के पौधे भूरे और सूखे धब्बों के साथ पीली-हरी दिखाई पड़ती है. पौधे अचानक ही सूख जाते हैं तथा जमीन पर गिर कर सड़ जाते हैं.

नियंत्रण के उपाय :  किसान इस रोग के नियंत्रण के लिए टमाटर के बीजों को थायरम या केप्टान 3 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज दर से उपचारित करके बोना चाहिए. इसके अलावा रोगी पौधों को खेत से निकालकर नष्ट कर दें तथा खेत में जल निकास उत्तम व्यवस्था रखें.

अगेती झुलसा रोग

टमाटर की फसल में यह रोग अल्टरनेरिया सोलेनाई नामक कवक से होता है. प्रभावित पौधों की पत्तियों पर छोट काले रंग के धब्बे दिखाई पड़ते हैं, जो बड़े होकर गोल छल्लेनुमा धब्बों में परिवर्तित हो जाते हैं. फल पर धब्बे शुष्क धंसे हुए और गहरे होते है. इन धब्बों के बढऩे के साथ ही पत्तियां गिर जाती हैं. यह रोग पौधे के सभी भागों में लग सकता है.

नियंत्रण के उपाय : इस रोग से रोगग्रस्त पौधों को जलाकर नष्ट कर देना चाहिए ताकि अन्य पौधों में यह रोग नहीं फैल पाए। टमाटर के बीजों को बोने से पहले केप्टान 75 डब्ल्यू पी 2 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से बीजोपचार करना चाहिए. वहीं फसल में रोग के लक्षण दिखाई दे तो मैंकोजेब 75 डब्ल्यू पी का 2.5 किलोग्राम प्रति हेक्टर की दर से 10 दिन के अन्तराल पर छिडक़ाव करना चाहिए. इसके अलावा फसल चक्र अपनाकर भी इस रोग को काफी हद तक नियंत्रित किया जा सकता है. 

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पिछेती झुलसा रोग

टमाटर फसल में यह रोग फाइरोफ्थोरा इनफेस्टेन्स नामक कवक से होता है. शुरुआत में पत्तियों पर जलीय अनियमित आकार के धब्बे बनते है, जो बाद में भूरे से काले धब्बों में बदल जाते है. टमाटर की फसल में यह रोग पौधे की किसी भी अवस्था में लग सकता है. पौधे के किसी भी भाग पर भूरे बैंगनी या काले रंग के धब्बे दिखाई पड़ते है. वातावरण में लगातार नमी रहने पर इस रोग का प्रकोप बढ़ जाता है. फलों के डंठल भी ग्रसित हो कर काले रंग के हो जाते हैं.

नियंत्रण के उपाय :  पिछेती झुलसा रोग से फसल को बचाने के लिए स्वस्थ रोगरहित पौध का उपयोग करना चाहिए. रोग प्रभावित पौधों को खेत से निकालकर नष्ट कर दें. इसके अलावा प्रभावित फसल पर मेटालेक्सिल 4 प्रतिशत+मैंकाजेव 64 प्रतिशत डब्ल्यू पी 25 ग्राम प्रति लीटर की दर से छिडक़ाव करें.

उकटा रोग

टमाटर फसल में यह रोग फ्यूजियम ओक्सीस्पोरम लाइकोपर्सिकी नामक कवक से होता है। इसमें रोगी पौधे की निचली पत्तियां पीली पडक़र झुलस जाती है. पौधे मुरझा जाते हैं। पौधों की बढ़वार रूक जाती हैं व फल भी नहीं लगते हैं. मुख्य तने के संवहन तंतु के साथ भूरी धारियां देखी जा सकती है.

नियंत्रण के उपाय : बीजों को बोने से पहले बेसिलम सबटिलीस या ट्राइकोडर्मा हरजिएनम 10 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें इसके अलावा उक्त बायोएजेन्ट में 2.5 किलोग्राम को 50 किलोग्राम गोबर की खाद में मिलाकर प्रति हेक्टर बुवाई पूर्व भूमि में मिलाएं। वहीं पौध रोपण से 30 दिन बाद कार्बेन्डाजिम 25 प्रतिशत + मैंकोजेब 50 प्रतिशत डब्ल्यू एस 0.1 प्रतिशत की दर से खेत में छिडक़ाव करें.

पर्ण कुंचन रोग

यह रोग टमाटर फसल में पर्ण कुंचन विषाणु द्वारा होता है और सफेद मक्खी के द्वारा फैलाया जाता है. इस रोग से ग्रसित पौधों में पत्तियां मुड़ जाती हैं और फूल व फल छोटे तथा कम संख्या में लगते हैं. इस रोग से ग्रसित पौधों में टहनियों का आकार छोटा होने से पौधे भी छोटे हो जाते हैं. पुरानी पत्तियों के किनारे मोटे और अन्दर की ओर मुड़े हुए दिखाई पड़ते हैं.

नियंत्रण के उपाय :  रोगवाहक कीट को नष्ट करने के लिए ईमिडाक्लोक्रिड 17.8 एस एल 1 मिलीलीटर प्रति 3 लीटर पानी या थायामिथाक्सॉम 25 डब्ल्यू पी 0.4 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिडक़ाव करें.

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