गेहूं और गन्ने की खेती साथ में कर सकते हैंउत्तर भारत में किसान अक्सर एक चक्र में फंस जाते हैं. पहले गेहूं की कटाई अप्रैल में करते हैं और उसके बाद गन्ने की बुवाई करते हैं. अप्रैल की इस देरी का नतीजा यह होता है कि 'बसंतकालीन गन्ने' की बुवाई समय पर नहीं हो पाती. कृषि वैज्ञानिकों का मानना है कि गेहूं के बाद अप्रैल-मई में लगाए गए गन्ने की पैदावार में 35 से 50 प्रतिशत तक की कमी आ जाती है. यह किसान की जेब पर भारी चोट है. लेकिन, गेहूं और गन्ना दोनों की बंपर पैदावार एक साथ ले सकते हैं, आइए जानते हैं कैसे.
इस नई और कारगर तकनीक का नाम है 'फरो रेज्ड बेड सिस्टम'. यह एक ऐसी आधुनिक तकनीक है, जिससे एक साथ दो फसलों से एक ही सीजन में 'डबल मुनाफा' मिल जाता है.
अब सवाल आता है कि यह सिस्टम काम कैसे करता है? इसके लिए एक खास मशीन आती है जिसे 'फरो इरीगेटेड रेज्ड बेड प्लांटर' या 'रेज्ड बेड मेकर कम फर्टी सीड ड्रिल' कहते हैं. इसकी कीमत लगभग 70,000 रुपये के आसपास होती है. यह ट्रैक्टर चालित मशीन खेत में करीब 50 सेंटीमीटर चौड़ी मेड़ (Bed) बनाती है और उसके बगल में सिंचाई के लिए नालियां बनाती है. इस विधि में गेहूं की बुवाई समतल जमीन पर छिड़ककर नहीं, बल्कि इन उभरी हुई मेड़ों पर की जाती है.
एक मेड़ पर मशीन के जरिये गेहूं की 2 या 3 कतारें लगाई जाती हैं. बीजों की गहराई 4 से 5 सेंटीमीटर रखी जाती है ताकि जमाव अच्छा हो. एक बहुत अहम बात यह है कि बुवाई करते समय मेड़ की दिशा 'उत्तर-दक्षिण' रखनी चाहिए. इस तकनीक की सबसे अच्छी बात है बीज की बचत. जहां सामान्य विधि में हम बोरे भर-भर के बीज डालते हैं, वहीं इस विधि में 25 प्रतिशत तक बीज की बचत होती है. यानी मात्र 30-32 किलोग्राम बीज एक एकड़ के लिए काफी होता है.
इस विधि का असली जादू गन्ने की बुवाई में देखने को मिलता है. इसमें आपको गेहूं काटने का इंतजार नहीं करना पड़ता. आपके पास दो विकल्प होते हैं. पहला तरीका यह है कि नवंबर-दिसंबर में जब आप बेड पर गेहूं बो रहे हों, उसी समय या उसके तुरंत बाद नालियों में (जिनके बीच की दूरी करीब 80 सेंटीमीटर होती है) गन्ने के टुकड़े लगा दें. इसमें हल्की सिंचाई करके गन्ने के टुकड़ों को पैर से गीली मिट्टी में दबा दिया जाता है.
दूसरा और सबसे लोकप्रिय तरीका है 'फरवरी बुवाई'. जब गेहूं की फसल खेत में खड़ी हो, तब फरवरी के महीने में जब आप गेहूं की सिंचाई करें, तो उसी समय गन्ने की बुवाई कर दें. तरीका बहुत देसी और आसान है—गेहूं में सिंचाई शाम के समय करें. अगले दिन जब नालियों की मिट्टी फूल जाए और उसमें हल्का पानी या कीचड़ हो, तब गन्ने के दो या तीन आंखों वाले टुकड़ों को उन नालियों में डाल दें और चलते-चलते पैरों से जमीन में दबाते जाएं.
इससे गन्ने को नमी मिल जाती है और वह गेहूं के साथ-साथ उगना शुरू हो जाता है. जब तक आप अप्रैल में गेहूं काटेंगे, तब तक गन्ना काफी बड़ा और मजबूत हो चुका होगा. इसे ही कहते हैं 'सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे'—गेहूं भी पूरा मिला और गन्ना भी समय पर लग गया.
फरो रेज्ड बेड विधि न केवल पैदावार बढ़ाती है, बल्कि खेती के खर्च को भी आधा कर देती है. भारत-गंगा के मैदानी इलाकों में जहां पानी की समस्या हो रही है, वहां यह विधि वरदान है. चूंकि इसमें पानी पूरे खेत में भरने के बजाय सिर्फ नालियों (Furrows) में दिया जाता है, इसलिए 30 से 40 प्रतिशत पानी की बचत होती है. खाद भी सीधा जड़ों के पास दी जाती है, जिससे उसकी बर्बादी नहीं होती.
इसके अलावा, मौसम की मार से बचने में भी यह विधि कारगर है. अगर अचानक भारी बारिश हो जाए, तो समतल खेतों में पानी भर जाने से फसल गल जाती है. लेकिन इस विधि में पौधा मेड़ पर होता है और एक्स्ट्रा पानी नालियों के जरिए खेत से बाहर निकल जाता है, जिससे फसल सुरक्षित रहती है. साथ ही, मेड़ पर मिट्टी भुरभुरी रहती है जिससे जड़ों में हवा का संचार अच्छा होता है. खरपतवार निकालना और अन्य मशीनी काम करना भी इसमें आसान होता है.
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