आमतौर पर देखा जाता है कि जब मंडियों में किसी फसल की आवक कम होती है तब उसका दाम ज्यादा मिलता है. इसी तरह जब आवक ज्यादा होती है तब उसका दाम कम हो जाता है. लेकिन आजकल सोयाबीन के साथ इन दोनों में से कोई फार्मूला लागू नहीं हो रहा है. मंडियों में बहुत कम आवक के बावजूद किसानों को उसका दाम नहीं मिल पा रहा है. वरोरा शेगांव मंडी में 11 अप्रैल को सिर्फ 54 क्विंटल सोयाबीन बिकने के लिए आया था. इसके बावजूद यहां न्यूनतम दाम सिर्फ 2300 रुपये क्विंटल रहा. जबकि एमएसपी 4600 रुपये है. ज्यादातर मंडियों में सोयाबीन 4000 रुपये क्विंटल के दाम पर बिक रही है।
किसान इस साल की शुरुआत से ही सोयाबीन को घाटे पर बेच रहे हैं. इस साल दाम इतना कम है कि वो पछता रहे हैं कि उन्होंने सोयाबीन की खेती क्यों की. सोयाबीन प्रमुख तिलहन फसल है, इसे दलहन में भी गिना जाता है. दोनों फसलों की कमी भी है फिर भी इसका दाम कम होने से किसान हैरान हैं. किसानों का कहना है कि आयात शुल्क कम होने के कारण आयात ज्यादा हो रहा है, इसलिए यहां के सोयाबीन की कीमत नहीं रह गई है.
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महाराष्ट्र सोयाबीन का प्रमुख उत्पादक है. कभी यह पहले तो कभी दूसरे नंबर पर रहता है. इसलिए यहां काफी किसानों की आजीविका इसी की खेती से चलती है. किसानों का कहना है कि उन्हें 2021 और 2022 में सोयाबीन का दाम ठीक मिला था, उसके बाद दाम गिर गया. वर्ष 2021 में तो 11 हजार रुपये का दाम मिला था. लेकिन अब 4600 रुपये क्विंटल का एमएसपी भी नसीब नहीं हो रहा है. इससे परेशानी बढ़ गई है. पिछले साल भी दाम नहीं मिला और इस साल भी बहुत बुरे हालात हैं. इसलिए अब कुछ किसान सोयाबीन को आगे के लिए स्टोर कर सकते हैं.
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