न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर खरीफ धान की खरीद 2025-26 सीजन के लिए तेजी से शुरू हो चुकी है. इस बार फसल की जल्दी आवक के चलते अब तक 89 लाख टन धान की खरीद की जा चुकी है, जो पिछले साल की तुलना में 96 परसेंट अधिक है.
पंजाब, जो केंद्रीय भंडार में सबसे बड़ा योगदान करता है, वहां अब तक 32 लाख टन धान की खरीद हो चुकी है, जो पिछले वर्ष के मुकाबले 224 परसेंट ज्यादा है. पंजाब में एमएसपी पर खरीद इस बार सामान्य तिथि 1 अक्टूबर से पहले 15 सितंबर से शुरू कर दी गई थी. राज्य से इस बार 170 लाख टन धान का योगदान होने की संभावना है.
हरियाणा में अब तक 44 लाख धान की खरीद हुई है, जो पिछले साल की तुलना में 41 परसेंट अधिक है. वहीं, तमिलनाडु में सरकार द्वारा 9 लाख टन धान खरीदा गया है, जो कि पिछले वर्ष के मुकाबले दोगुना है.
उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर में भी एमएसपी पर खरीद शुरू हो चुकी है. अक्टूबर-नवंबर के दौरान पंजाब, हरियाणा, यूपी और तमिलनाडु में धान की आवक होती है, जबकि आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, ओडिशा, छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में दिसंबर-जनवरी में फसल बाजार में आती है.
सरकार ने इस बार 2025-26 खरीफ सीजन के लिए 460 लाख टन चावल की खरीद का लक्ष्य रखा है, जो कि पिछले वर्ष से थोड़ा कम है. 2024-25 में एफसीआई और राज्य एजेंसियों ने कुल 559 लाख टन चावल की खरीद की थी.
वर्तमान में केंद्र सरकार के भंडार में 440 लाख टन से अधिक चावल का स्टॉक है, जो अक्टूबर 1 की आवश्यक बफर स्टॉक (10.25 एमटी) से तीन गुना से अधिक है. इसमें से 90 लाख टन चावल अभी मिलरों से प्राप्त होना बाकी है.
सरकार द्वारा हाल ही में धान का एमएसपी 3 परसेंट बढ़ाकर 2,369 रुपये/क्विंटल किया गया है. एफसीआई और राज्य एजेंसियां किसानों से एमएसपी पर धान खरीदकर मिलरों को देती हैं, जहां से उसे चावल में बदला जाता है. धान से चावल बनने का अनुपात 67 परसेंट है.
हरियाणा और पंजबा में अधिक बारिश होने के बावजूद धान की फसल अच्छी हुई है. हरियाणा की कई मंडियों में धान की आवक इतनी अधिक है कि नया नियम जारी किया गया है. मंडी प्रशासन ने कहा है कि दूसरे राज्यों से धान की आवक नहीं होनी चाहिए. अगर ऐसा होता है तो धान लाने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी. हालांकि धान में नमी को लेकर किसानों को थोड़ी चिंता जरूर है क्योंकि उनकी उपज को लौटाया जा रहा है.
Copyright©2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today