रबीनामा: जलवायु परिवर्तन के कारण भारत में कम बारिश और सूखा लगातार बढ़ रहा है, क्योंकि हमारी 60 प्रतिशत कृषि अभी भी बारिश पर निर्भर है. किनोवा अपने देश के लिए नई फ़सल है. किनोवा जलवायु परिवर्तन के दौर में बेहद लाभकारी सिद्ध हो रही है. इसकी खेती कर कई किसान लाभ कमा रहे हैं. इसके बेहद पौष्टिकारक बीज चावल, गेहूं और सूजी की तरह अनाज के रूप में इस्तेमाल होते हैं. इसमें काफी मात्रा में पोटैशियम, मैग्नीशियम, प्रोटीन, फाइबर और विटमिन बी पाया जाता है. इसके चमत्कारी गुणों को देखते हुए संयुक्त राष्ट्र संघ ने इसे पौष्टिक अनाजों की श्रेणी में शामिल किया है. फिलहाल बाजार में इसकी मांग बढ़ती जा रही है. किनोवा सुपरफूड और जलवायु प्रतिरोधी होने के साथ कम लागत में ज्यादा मुनाफा देनी वाली फसल के रूप में अपनी पहचान बना रही है. इसकी खेती अपने देश के किसानों के लिए फायदे का सौदा साबित हो सकती है. रबीनामा में जानेंगे किनोवा की खेती कैसे फायदेमंद है.
दरअसल किनोवा फ़सल का वानस्पतिक नाम चिनोपोडियम क्विनवा है. उच्चारण दोष के कारण इसे किनोवा कहते हैं. भारत में इसकी खेती बहुत कम होती है. इसीलिए सिर्फ़ हैदराबाद और दिल्ली में इसका बाज़ार है, जहां से इसे विदेशों में निर्यात किया जाता है. लेकिन जैसे-जैसे इसे उपजाने वाले किसान बढ़ेंगे, जाहिर है इसकी मार्केट बढ़ेगी क्योंकि बेहद आसान खेती वाली इस फ़सल की उपज का अंतरराष्ट्रीय भाव आपको हैरान कर सकता है. इंटरनेशनल मार्केट में किनोवा की क़ीमत 1000 से 1200 रुपये प्रति किलो तक है. अपने देश मे 150 रुपये से लेकर 200 रुपये किलो तक असानी से दाम मिल जाते हैं. इसका उपयोग नाश्ते में, भोजन में पॉपकॉर्न की तरह, आटे के रूप में, सलाद और ब्रेड, नूडल्स और पास्ता बनाने के लिए उपयोग किया जाता है. इसके बीजों को अंकुरित करके खाया जा सकता है.
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किनोवा आनुवंशिक विविधता से समृद्ध होने के कारण इसे न केवल कई जलवायु में उगाया जा सकता है, बल्कि कम उपजाऊ ऊसर भूमि में खेती की जा सकती है. इसीलिए संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) ने किनोवा की खेती को बढ़ावा देने की सिफारिश की है. खेती के लिए पानी की कमी एक वैश्विक चुनौती है जिसमें किनोवा सबसे ज्यादी फिट बैठती है.
दूसरी तरफ इसके खाने से कुपोषण की समस्या कम होगी और कई शारीरिक फायदे हैं. किनोवा का खाने में उपयोग करके ब्लड शुगर को कम किया जा सकता है. यह ऑक्सीडेटिव तनाव को भी कम कर सकता है. कोलेस्ट्रॉल को भी कम करने में मदद कर सकता है. कुपोषण से लड़ने में सहायक हो सकता है. यह ग्लूटेन-मुक्त आहार का एक अच्छा विकल्प हो सकता है. वजन कम करने में मदद कर सकता है और सूजन को भी कम कर सकता है.
कृषि वैज्ञानिको के अनुसार किनोवा में मिट्टी और जलवायु परिस्थितियों को सहन करने की क्षमता होती है. यह फसल 08 डिग्री नीचे से लेकर 36 डिग्री सेल्सियस तक के गर्म मौसम को आसानी से सहन कर सकती है. हाल के वर्षों में भारत ने अपनी सूखा प्रतिरोधी प्रकृति और व्यापक अनुकूलनशीलता के कारण विभिन्न जलवायु और कम उपजाऊ, बंजर, क्षारीय मिट्टी में भी ज्यादा उपज हासिल की है. इसके साथ इसे उच्च पोषण के कारण पौष्टिक भोजन के रूप में मान्यता दी गई है और अपने देश में पहले से ही स्वस्थ आहार व्यंजनों का हिस्सा बन गया है. इसके अलावा, इस फसल की कम संसाधन के साथ उच्च शुद्ध रिटर्न देने की क्षमता है. संसाधन-विहीन या कम उपजाऊ भूमि में किनोवा की खेती लाभकारी है.
आईसीएआर-भारतीय मृदा एवं जल संरक्षण संस्थान क्षेत्रीय केंद्र कोटा के अनुसार किनोवा रबी मौसम में उगाई जाती है. किनोवा की अच्छी पैदावार के लिए 15 अक्टूबर से लेकर 30 नवंबर तक बुवाई कर देनी चाहिए. प्रति एकड़ 1.5 से 02 किलो ग्राम बीज दर का उपयोग करना चाहिए. बुवाई से दो-तीन दिन पहले खेत की सिंचाई कर देनी चाहिए, ताकि अंकुरण आसानी से हो सके. किनोवा के बीज बहुत छोटे होते हैं, इसलिए इन्हें 2 से 5 सेंटीमीटर की गहराई पर बोना चाहिए. किनोवा की खेती के लिए में अच्छी तरह जुताई करके मिट्टी को भुरभुरा बना लेना चाहिए और उसमें मेंड़ बनाकर उसमें बीज बो देना चाहिए, ताकि जलभराव से फसल को नुकसान न हो. अच्छी उपज के लिए प्रति एकड़ 40 किलोग्राम नाइट्रोजन, 20 किलोग्राम फास्फोरस और 20 किलोग्राम पोटाश का प्रयोग भी बहुत फायदेमंद होता है.
किनोवा के पौधे जब 5-6 इंच के हो जाएं, तब पौधे से पौधे के बीच की दूरी 10 से 14 इंच बना लेनी चाहिए. किनोवा के पौधे में कीट-रोगों से लड़ने की जबर्दस्त क्षमता होती है. इसलिए कीट-रोग प्रबंधन पर खर्च नहीं आता है. किनोवा की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यह कम पानी की स्थिति में भी अच्छी तरह उगता है. किनोवा के उचित अंकुरण सुनिश्चित करने के लिए बुवाई से पहले एक सिंचाई करनी चाहिए. बुआई के 55 दिन बाद दूसरी सिंचाई कंरे. किनोवा को फसल पकने तक दो से तीन सिंचाई की जरूरत होती है.
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किनोवा की कटाई आमतौर पर 100-110 दिनों में की जाती है. पूर्ण विकसित फसल के पौधों की ऊंचाई 4-5 फीट होती है. इसके बीज ज्वार के बीज की तरह होते हैं. जब फसल पक जाती है तो उसका रंग पीला या लाल हो जाता है और पत्तियां झड़ जाती हैं. बालियों को हाथ से कुचलने पर बीज आसानी से अलग हो जाते हैं. अगर कटाई के समय बारिश होती है, तो पके हुए बीजों के केवल 24 घंटों के भीतर अंकुरित होने का खतरा होता है. इसलिए फसल पकते ही काट लेना चाहिए. किनोवा से एक एकड़ में 12 से 15 क्विंटल उपज लिया जा सकता है. इसकी खेती पर लागत खर्च की बात की जाए तो प्रति एकड़ 6 से 7 हजार रुपये आता है. अपने देश में किसानों को आसानी से 150 से लेकर 200 रुपये किलो तक भाव मिल जाता है. इस तरह एक एकड़ खेत से 2 लाख से अधिक की आमदनी प्राप्त कर सकते हैं.
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