पूसा-44 पर बैन लगाए जाने के बाद इस साल पंजाब में कम अवधि वाली धान की किस्म पीआर 126 के रकबे में बढ़ोतरी आई है. कृषि विभाग के आंकड़ों के अनुसार, जल्दी पकने वाली पीआर 126 के तहत रकबा 2022 में 5.59 लाख हेक्टेयर से बढ़कर 2023 में 11.50 लाख हेक्टेयर हो गया और इस बार इसमें और वृद्धि होने की संभावना है. एक अधिकारी ने कहा कि 2023 के दौरान, कई बीज उत्पादक एजेंसियों के माध्यम से किसानों को पीआर 126 के 44,852.20 क्विंटल प्रमाणित बीज उपलब्ध कराए गए और इस वर्ष अब तक 58,999.44 क्विंटल प्रमाणित बीज उपलब्ध कराए गए हैं.
द टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, कृषि निदेशक जसवंत सिंह ने कहा कि कम अवधि वाले धान के पक्ष में बदलाव के तहत, पीआर 126 और बासमती की बुवाई उन क्षेत्रों में की गई है, जहां पिछले साल तक लंबी अवधि वाली पूसा 44 की खेती की जाती थी. उन्होंने कहा कि इस सीजन में 26 जून तक धान की खेती नहीं हुई. इसकी वजह यह है कि किसान पीआर-126 या बासमती बोने का इंतजार कर रहे थे. हालांकि पीआर 130 और पीआर 131 जैसी अन्य किस्में भी हैं, लेकिन ये मध्यम अवधि की हैं और आमतौर पर पकने में 130-140 दिन लगते हैं.
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एक अन्य अधिकारी ने कहा कि पीआर 126 पंजाब कृषि विश्वविद्यालय (पीएयू), लुधियाना द्वारा विकसित एक जल्दी पकने वाली चावल की किस्म है जो रोपाई के लगभग 93 दिनों में पक जाती है. हाल के वर्षों में पंजाब में भूजल की कमी को लेकर चिंताओं के कारण, इस किस्म को प्राथमिकता दी जा रही है, क्योंकि यह पूसा 44 जैसी अन्य लंबी अवधि वाली किस्मों की तुलना में 25 फीसदी कम पानी की खपत करती है और लंबी अवधि वाली किस्मों के बराबर उपज देती है.
खरीफ 2022-23 सीजन के दौरान, पीआर 126 से 4,533 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर उपज और 2,534 हजार टन उत्पादन का अनुमान है. अगले साल, इसे लगभग दोगुने क्षेत्र में उगाया गया और प्रति हेक्टेयर 4,716 किलोग्राम उपज और 5,423 हजार टन उत्पादन हासिल किया गया. खास बात यह है कि पीआर 126 किस्म को राज्य में 2016 में लॉन्च किया गया था.
धान की सामान्य किस्में जैसे पूसा 44 एक किलोग्राम चावल के लिए 5,000 से 6,000 लीटर पानी की खपत करती हैं, लेकिन पीआर 126 और 121 जैसी कम पानी की खपत वाली किस्में समान उपज के लिए केवल 4,000 लीटर पानी का उपयोग करती हैं. यही वजह है कि पीएयू होशियारपुर, जालंधर, फिरोजपुर और तरनतारन जैसे जिलों में पीआर 130 और पीआर 131 जैसी मध्यम अवधि की किस्मों को भी बढ़ावा दे रहा है.
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