भारत में धान की खेती सदियों से की जा रही है. भारत में धान की खेती और धान की खपत दोनों ही बहुत अधिक है. यहां के ज्यादातर किसान धान की खेती पर निर्भर हैं. इतना ही नहीं इसे प्रमुख खाद्यान्न फसल भी माना जाता है. लेकिन जलवायु परिवर्तन के कारण धान की खेती अब एक चुनौती बनती जा रही है. धान की खेती में पानी का सबसे अधिक उपयोग होता है. ऐसे में घटता जलस्तर न सिर्फ किसानों के लिए बल्कि सरकार के लिए भी चिंता का विषय है. ऐसे में इस चुनौती को कम करने के लिए कृषि वैज्ञानिकों द्वारा कई तकनीकें विकसित की गई हैं. आपको बता दें कि किसानों के लिए एक ऐसी कोटिंग तैयार की गई है, जिसे बीज पर लगाने से पानी का खर्च 70 फीसदी तक कम हो सकता है. आइये जानते हैं क्या है ये लेप और कैसे करता है काम.
नैनीताल जिले के गौलापार निवासी प्रगतिशील किसान ने करनाल अनुसंधान केंद्र के कृषि वैज्ञानिक डॉ. वीरेंद्र लाठर की तकनीक को अपनी पंद्रह बीघे भूमि में आजमाया और लागत में कमी के साथ-साथ लगभग 90 प्रतिशत पानी की बचत हुई. खेती में हमेशा नए प्रयोग करने वाले प्रगतिशील किसान ने उत्तराखंड में पहली बार इस तकनीक को आजमाकर कम पानी में धान की खेती का सफल उदाहरण पेश किया है. राज्य में कुल कृषि क्षेत्र का 56 प्रतिशत भाग पर्वतीय कृषि के अंतर्गत आता है, लेकिन पहाड़ों में केवल 13 प्रतिशत भाग में ही सिंचाई सुविधा उपलब्ध है, शेष 87 प्रतिशत भाग असिंचित है, जिसके कारण पहाड़ों में धान का उत्पादन बहुत कम होता है. धान उत्पादन की यह तकनीक कम पानी वाले क्षेत्रों के किसानों के लिए वरदान साबित हो सकती है.
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किसानों ने वर्षा आधारित धान बीज पंत-12 में गोंद कतीरा तकनीक का प्रयोग किया. आमतौर पर पंत-12 बीज पहाड़ी क्षेत्रों के लिए विकसित किया गया है, जहां सिंचाई संसाधनों की कमी है. किसानों ने अपने 15 बीघे खेत में करीब 40 किलो बीज बोए. जिसमें धान की सीधी बुआई की इस नई तकनीक में प्राकृतिक (हाइड्रो जेल) गोंद, कतीरा और गुड़ का उपयोग किया गया. गोविंद वल्लभ पंत कृषि विश्वविद्यालय के अनुसंधान निदेशक ने उन्हें पंत-12 बीज बोने के साथ हाइड्रो जेल तकनीक का उपयोग करने की सलाह दी थी, जिसके बाद उन्होंने करनाल अनुसंधान केंद्र के कृषि वैज्ञानिक डॉ. वीरेंद्र लाठर से संपर्क किया और इस तकनीक से परिचित कराया. इसे बारीकी से समझा और अपने मार्गदर्शन में इसका प्रयोग किया.
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किसान फसल से अधिक उत्पादन के बजाय लागत कम करने के लिए नई तकनीक विकसित करके अपनी आय बढ़ा सकते हैं. प्रगतिशील किसान का मानना है कि जब भी कोई किसान बिना लागत निकले बंपर फसल पैदा करता है तो इसी सोच को साकार करने के लिए वह नई तकनीक विकसित कर एक हेक्टेयर में धान की फसल बोता है. जिसमें मात्र छह हजार रुपये खर्च हुए, जबकि आम तौर पर एक हेक्टेयर की बुआई में 30-32 हजार रुपये का खर्च आता है. वर्षा आधारित यह तकनीक 90 प्रतिशत पानी और 90 प्रतिशत मानव श्रम बचाती है. गौंड कतीरा लेपित तकनीक पहाड़ी किसानों के लिए वरदान साबित होगी. गोंद कतीरा की खेती पंजाब, राजस्थान और हरियाणा में कम पानी वाले स्थानों पर की जा रही है.
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