प्याज महंगा हो रहा है तो देश को महाराष्ट्र के खरीफ सीजन के प्याज याद आ रहा है. क्योंकि महाराष्ट्र देश का सबसे बड़ा प्याज उत्पादक प्रदेश है. यही नहीं जहां आमतौर पर ज्यादातर प्रदेशों में साल में एक ही बार प्याज की फसल होती है, वहां महाराष्ट्र में एक साल के दौरान तीन फसल ली जाती है. इसीलिए देश में प्याज की कीमतें यहीं के उत्पादन से तय होती हैं. यहां खरीफ, खरीफ के बाद और रबी सीजन में इसकी पैदावार होती है. किसान संजय ने बताया कि खरीफ सीजन में प्याज की बुआई जून-अगस्त महीने में की जाती है, जो सितंबर-अक्टूबर में तैयार हो जाती है. इसी सीजन का प्याज इस साल मॉनसून की बारिश न होने की वजह से एक महीने से अधिक लेट है. इसीलिए दाम इतने बढ़ गए हैं.
इस बार खरीफ सीजन वाली प्याज की अच्छी आवक 20 नवंबर से 10 दिसंबर तक हो सकती है. इसके आने के बाद दाम में एक बार फिर बड़ी गिरावट हो सकती है. महाराष्ट्र के नासिक, कोल्हापुर, सोलापुर पुणे, अहमदनगर और धुले आदि जिलों में इसकी सबसे ज्यादा खेती होती है. लेकिन नासिक इसकी खेती के लिए सबसे ज्यादा फेमस है. इसी जिले के लासलगांव में एशिया की सबसे बड़ी मंडी है. यहां प्याज की सबसे ज्यादा नीलामी होती है.
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प्याज के दूसरे सीजन को लेट खरीफ कहते हैं, जिसकी बुवाई में बुआई अगस्त-सितंबर के महीने में की जाती है. यह प्याज दिसम्बर तक मार्केट में आ जाती है. प्याज की तीसरी फसल रबी फसल है. इसमें दिसंबर-जनवरी में बुआई होती है जबकि फसल की कटाई मार्च से लेकर मई तक होती है. महाराष्ट्र के कुल प्याज उत्पादन का 65 फीसदी रबी सीजन में ही होता है. रबी सीजन का प्याज की स्टोर किया जाता है. जबकि खरीफ और लेट खरीफ सीजन का प्याज स्टोर करने लायक नहीं होता. महाराष्ट्र कांदा उत्पादक संगठन के अध्यक्ष भारत दिघोले का कहना है कि अगर महाराष्ट्र के किसान कम दाम से परेशान होकर प्याज की खेती बंद कर देंगे तो देश में 100 से 150 रुपये किलो पर प्याज बिकेगा. क्योंकि उसे भी दूसरे देशों से मंगवाना पड़ेगा.
महाराष्ट्र में प्याज़ की साल में तीन बार खेती होती है. इस वजह देश में इसके दाम काबू में रहते हैं. वरना उपभोक्ताओं को इसकी ज्यादा कीमत चुकानी पड़ती. इसका अंदाजा आप खरीफ सीजन के प्याज लेट होने से लगा सकते हैं. एक ही सीजन का प्याज लेट होने से दाम इतना बढ़ गया. लेकिन उससे भी बड़ी चिंता की बात यह है कि कम दाम से परेशान राज्य के किसान अब प्याज की खेती कम कर रहे हैं. वो प्याज की जगह मक्का और सोयाबीन जैसी फसलें लेना चाहते हैं. क्योंकि प्याज तो दो रुपये किलो भी बेचना पड़ता है जबकि मक्का और सोयाबीन का दाम कभी इतना कम नहीं होता.
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