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Paddy variety: धान की नई प्रजाति तैयार, मिथेन गैस के उत्सर्जन में आएगी कमी, घटेगी यूरिया की खपत

Paddy variety: धान की नई प्रजाति तैयार, मिथेन गैस के उत्सर्जन में आएगी कमी, घटेगी यूरिया की खपत

अंतरराष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान के द्वारा धान की एक खास प्रजाति को तैयार की गई है. इस प्रजाति को पीआर -126 नाम दिया गया है. इस प्रजाति की सबसे खास बात है कि इसमें अधिक पैदावार के साथ-साथ सीधी बुवाई करने से मिथेन गैस के उत्सर्जन में कमी आएगी. वहीं यूरिया की खपत में भी गिरावट होगी.

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झारखंड में धान खरीद का लक्ष्य पूरा नहीं कर पाई सरकार (सांकेतिक तस्वीर) झारखंड में धान खरीद का लक्ष्य पूरा नहीं कर पाई सरकार (सांकेतिक तस्वीर)

अंतरराष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान के द्वारा धान की एक खास प्रजाति को तैयार किया गया है. इस प्रजाति को पीआर-126  नाम दिया गया है. इस प्रजाति की सबसे खास बात है कि इसमें अधिक पैदावार के साथ-साथ सीधी बुवाई करने से मिथेन गैस के उत्सर्जन में कमी आएगी. वहीं यूरिया की खपत में भी गिरावट होगी. इरी के आंतरिक महानिदेशक डॉ. अजय कोहली ने अंतरराष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान के वाराणसी केंपस का दौरा किया. वहीं उन्होंने बताया कि सीधी बुवाई से मिथेन गैस के उत्सर्जन में कमी आती है. धान की पीआर-126  प्रजाति को विशेष तौर पर तैयार किया गया है. कंबोडिया और पंजाब में इसका ट्रायल भी हो चुका है. 1 साल के भीतर ही किसानों के बीच या प्रजाति आ जाएगी. 

120 दिन में तैयार होगी धान की ये प्रजाति 

धान की वैसे तो देश में कई प्रजातियां हैं लेकिन अंतरराष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान के द्वारा धान की एक खास प्रजाति को तैयार किया गया है. इस प्रजाति को पीआर-126 नाम दिया गया है. इस प्रजाति के अब तक के ट्रायल में पाया गया है कि इसकी उपज 120 दिन में तैयार हो जाती है जबकि अन्य प्रजातियों की उपज 135 से 150 दिन में होती है. वहीं इसमें पानी की कम खपत होती है. संस्थान के महानिदेशक डॉ. अजय कोहली ने बताया कि वियतनाम और कंबोडिया में इस प्रजाति पर 2020 से ही शोध चल रहा है. 2023 में परिणाम आ गए हैं. भारत में 40 प्रकार की प्रजातियों पर प्रयोग हो रहा है. धान की इस प्रजाति से न सिर्फ उत्पादन बढ़ेगा बल्कि पानी की भी बड़ी बचत होगी. 

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कम होगा मिथेन गैस का उत्सर्जन

धान की नर्सरी लगाने से लेकर रोपाई और पूरी खेती तक लगभग 39 प्रतिशत मिथेन गैस निकलती है. मिथेन गैस के उत्सर्जन से पर्यावरण को नुकसान पहुंच रहा है बल्कि इससे विश्व के कई देशों में धान की खेती को भी कम कर दिया गया है. वहीं अंतरराष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान के द्वारा धान की सीधी बुवाई से मिथेन गैस के उत्सर्जन को कम करने में सफलता मिली है. इरी सार्क के निदेशक डॉ. सुधांशु सिंह ने बताया कि धान की सीधी बुवाई से 50 परसेंट तक नाइट्रोजन के उपयोग को कम किया जा सकता है. वह भी बिना उपज को कम किए.

श्रीलंका में 80 से 90 परसेंट तक और वियतनाम में 70 परसेंट सीधी बुवाई हो रही है जबकि भारत में यह आंकड़ा अभी केवल 25 प्रतिशत है. इसे बढ़ाने की अपार संभावनाएं हैं. 60 वर्षों में देश में 15000 से अधिक धान की प्रजातियां विकसित हुई हैं लेकिन उपयोग महत्व डेढ़ सौ से कम प्रजातियों का हो रहा है. इरी के सहयोग से धान की कई प्रजातियों पर देश के 126 कृषि विज्ञान केंद्रों पर शोध चल रहा है जिसमें उत्तर प्रदेश के 24 केवीके  के शामिल हैं. काला नमक की दो किस्म पर भी काम हो रहा है जो जल्द ही किसानों के बीच आएंगे. 

चावल से ही मिलेगा 40 फ़ीसद प्रोटीन

डायबिटीज के मरीजों को चावल खाना मना होता है. चिकित्सक उनको सलाह देते हैं कि चावल खाने से उनके ब्लड में शुगर की मात्रा बढ़ जाएगी. इसको ध्यान में रखते हुए इरी ने लो जीआई वाला विशेष किस्म तैयार की है जो 2 वर्षों के भीतर किसान के बीच आ जाएगी. संस्थान के निदेशक ने बताया कि लो जीआई के साथ धान में प्रोटीन बढ़ाने पर भी जोर दिया गया है. बांग्लादेश में चावल से ही 40 परसेंट प्रोटीन की ज़रूरतें पूरी हो जाती हैं. भारत में अभी 7 से 8 परसेंट प्रोटीन वाली चावल की प्रजाति चलन में है. जल्द इसे बढ़ाकर 14 से 15 फ़ीसदी करने की तैयारी है.