मांग के अनुरूप प्राकृतिक रबर (NR) उत्पादन में गिरावट ने कीमतों को काफी उछाल दिया है. जरूरत के मुकाबले घरेलू उत्पादन लगभग 5.5 लाख टन कम है. जबकि, आयात चुनौतियों ने भी इसकी कीमत में उछाल को बल दिया है. उत्पादन में गिरावट की वजह मौसम की बेरुखी और बाढ़-बारिश से बागानों को भारी नुकसान है. विपरीत मौसम और आउट सीजन के चलते बढ़ी कीमतों का फायदा रबर उत्पादकों को नहीं मिल पा रहा है. दूसरी ओर भारतीय रबर बोर्ड ने किसानों से अतिरिक्त रबर निकालने की अपील की है, ताकि इंडस्ट्री की मांग को पूरा किया जा सके.
प्राकृतिक रबर का उत्पादन 2022-23 सीजन में 8.39 लाख टन से 2023-24 में मामूली रूप से बढ़कर 8.57 लाख टन तक दर्ज किया गया. जबकि, खपत 13.5 लाख टन से बढ़कर 14.16 लाख टन हो गई है. इन स्थितियों ने अधिक सीमा शुल्क और आयात चुनौतियों को बढ़ा दिया है. इसके नतीजे में प्राकृतिक रबर की कीमतें बढ़ रही हैं और इस पर निर्भर इंडस्ट्री पर भी दबाव बढ़ रहा है. अखिल भारतीय रबर उद्योग संघ (AIRIA) के अनुसार भारत में प्राकृतिक रबर का उत्पादन 2022-23 सीजन की तुलना में बढ़कर 2023-24 में 8.57 लाख टन हो गया है. लेकिन, रबर की खपत में भी तेज बढ़ोत्तरी हुई है. अभी भी जरूरत से 5.5 लाख टन रबर कम है. कहा गया कि भारत ऐतिहासिक रूप से कम घरेलू उत्पादन के चलते आयात पर निर्भर है.
AIRIA की ओर से कहा गया कि प्राकृतिक रबर आयात पर 25 फीसदी सीमा शुल्क लगता है, जो काफी अधिक है. जबकि, विदेशी बाजार में रबर की पर्याप्त उपलब्धता नहीं होना भी चुनौती बना हुआ है. अभी चीन रबर का स्टॉक कर रहा है और रबर का अच्छा सोर्स बांग्लादेश उथल-पुथल में है. ऐसे में प्राकृतिक रबर की कीमतों में तेज इजाफा हुआ है. दस्ताने और गुब्बारे बनाने के लिए इस्तेमाल होने वाले लेटेक्स रबर पर कुल 75 फीसदी शुल्क लगता है. इसके कच्चे माल की कमी है. लेकिन, विदेश से आने वाले गद्दे, गुब्बारे या सर्जिकल दस्तानों पर केवल 10 फीसदी का बहुत कम शुल्क लगता है, जो स्थानीय मैन्यूफैक्चरिंग के बजाय इन उत्पादों के आयात को प्रोत्साहित करता है.
रिपोर्ट के अनुसार रबर बोर्ड के कार्यकारी निदेशक एम वसंतगेसन ने पिछले सप्ताह कहा था कि भारी बारिश के चलते पारंपरिक क्षेत्रों में रबर की कटाई के दिनों में भारी कमी आई है. कई रबर उत्पादक समय पर पेड़ों की सुरक्षा नहीं कर पाए हैं. रबर निकालने का सही समय ठंड का मौसम होता है, जिसे आने में अभी कुछ माह का वक्त लगेगा. दूसरी ओर मॉनसूनी बारिश और तूफान के चलते रबर बागानों को भारी नुकसान पहुंचा है.
इन चुनौतियों को लेकर AIRIA और ऑटोमोटिव टायर मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन (ATMA) ने सरकार से संपर्क किया है. स्थानीय प्राकृतिक रबर उत्पादन को बढ़ावा देने के प्रयास चल रहे हैं, जिसमें केरल के साथ ही दूसरे सबसे बड़े रबर उत्पादक त्रिपुरा को भी शामिल किया जा रहा है. भारतीय रबर बोर्ड ने रबर किसानों से अतिरिक्त रबर उत्पादन की अपील की है.
वर्तमान में प्राकृतिक रबर की कीमत 247 रुपये प्रति किलोग्राम है जो 1 अप्रैल 2024 को 182 रुपये प्रति किलोग्राम थी. प्राकृतिक रबर की कीमतें 15 वर्षों में सर्वाधिक पहुंच गई हैं. भारी मानसून के चलते रबर उत्पादन गतिविधियों में कमी और आयात में कमी से रबर की उपलब्धता पर संकट बना हुआ है. यह स्थिति प्राकृतिक रबर पर निर्भर इंडस्ट्री को प्रभावित कर रही है. वर्तमान में प्राकृतिक रबर का लगभग 70 फीसदी उत्पादन का इस्तेमाल टायर इंडस्ट्री करती है. बाकी 30 फीसदी का इस्तेमाल छोटे और सूक्ष्म कंपनियों के जरिए किया जाता है.
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