पपीते का उत्पादन करने वाला भारत प्रमुख देश है. इसकी मांग वर्ष भर रहती है, इसलिए यह किसानों के लिए फायदे का सौदा है. लेकिन इसमें लगने वाले रोग एवं कीटों के कारण उत्पादन में कमी होने लगी है. इस नुकसान को कम करने और उत्पादन एवं उत्पादकता बनाए रखने और बढ़ाने के लिए कीटों से पौधों को बचाने का मैनेजमेंट बहुत जरूरी है. वरना पपीते की खेती फायदे की बजाय नुकसान का कारण बन जाएगी. पपीते की खेती में कई रोग और कीट लगते हैं लेकिन सफेद मक्खी इसके लिए बेहद खतरनाक मानी जाती है. ऐसे में इस कीट के प्रभावी प्रबंधन के लिए इंतजाम करना बहुत जरूरी है, ताकि इसकी खेती में नुकसान न हो.
आईए जानते हैं कि सफेद मक्खी है क्या. दरअसल, यह एक छोटी कीट है. इसके वयस्क और निम्फ दोनों पौधे की पत्तियों के नीचे की सतह से रस चूसते हैं. अधिक प्रकोप होने पर पत्तियां पीली होकर झड़ जाती हैं. जब इनकी आबादी अधिक होती है तो बड़ी मात्रा में शहद का स्राव करती हैं और पत्ती की सतहों पर फफूंदी के विकास को बढ़ावा देती हैं. इससे पौधों के प्रकाश संश्लेषण प्रक्रिया में बाधा पहुंचती है. इससे पौधे कमजोर हो जाते हैं एवं फल भी आकर्षक नहीं रहते हैं.
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पानी के छींटे वयस्कों को विस्थापित करने में भी उपयोगी हो सकते हैं.
इसके अलावा सफेद मक्खी की आबादी को कम करने के लिए मक्का, ज्वार या बाजरा जैसी लंबी सीमा वाली फसलें लगाएं.
पीले चिपचिपे जाल का प्रयोग करें, इससे इनके प्रकोप में कमी आएगी.
प्रबंधन के लिए पौधों पर 5 प्रतिशत नीम के बीज की गिरी का अर्क या मूंगफली का तेल 1-2 प्रतिशत लगाएं.
इसके अलावा अधिक प्रकोप की अवस्था में सफेद मक्खी के नियंत्रण के लिए डायफेनथूयोरॉन 50% डब्ल्यू.पी. 240 ग्राम प्रति एकड़ 200 लीटर पानी का छिड़काव करें. या फिर एसिटामाप्रिड 40 ग्राम प्रति एकड़ 200 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें. कीटनाशकों का 10 से 15 दिनों के अंतराल पर अदल बदल कर छिड़काव कर सकते हैं.
पपीता एक उष्ण कटिबंधीय फल है. इसका उच्च पोषण और औषधीय मूल्य के साथ व्यावसायिक महत्व भी है. लेकिन कई बार इस फसल पर कीटों के प्रकोप से किसानों का बहुत आर्थिक नुकसान होता है. खासकर सफेद मक्खी जैसे कीटों के कारण अधिक फसल का बर्बाद हो जाता है. आईसीएआर के कृषि वैज्ञानिक स्वाति साहा, के चन्द्रशेकर और सुजान सिंह कुशवाह का कहना है कि किसानों के लिए रोगों और कीटों के प्रबंधन के लिये प्रतिरोधी किस्मों की खेती एक अच्छा विकल्प है. अधिकांश किस्में कई रोगों और कीटों के प्रति संवेदनशील होती हैं.
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