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हिमाचल के जंगलों में इस मशरूम की खोज में उमड़ी भीड़, मार्केट में 8000 रुपये किलो है रेट

हिमाचल के जंगलों में इस मशरूम की खोज में उमड़ी भीड़, मार्केट में 8000 रुपये किलो है रेट

सैंज घाटी के शैनशर गांव के रहने वाले राहुल ठाकुर का कहना है कि उन्हें इस सीजन की 'गुच्छी' की पहली फसल मिली है. वह आगे कहते हैं कि पिछले तीन दिनों से लगातार बारिश के कारण, उन्होंने लगभग 4 किलो ‘गुच्छी’ इकट्ठा कर ली है. हाल की बारिश के बाद लोगों ने गुच्छी की कटाई के लिए जंगलों का रुख करना शुरू कर दिया है.

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क्यों इतनी महंगी होती है गुच्छी. (सांकेतिक फोटो) क्यों इतनी महंगी होती है गुच्छी. (सांकेतिक फोटो)

हिमाचल प्रदेश की घाटी इलाकों में इस साल मोरल मशरूम की बंपर उत्पादन की उम्मीद है, जिसे आमतौर पर 'गुच्छी' के नाम से जाना जाता है. कहा जा रहा है कि हाल ही में हुई बारिश के बाद, कुल्लू के ग्रामीणों ने 'गुच्छी' की तलाश में जंगलों का दौरा करना शुरू कर दिया है. खास बात यह है कि 'गुच्छी' की खेती नहीं की जाती है. यह वसंत ऋतु के दौरान बारिश होने पर  प्राकृतिक रूप से खुद उगती है. इसका रेट भी सामान्य मशरूम से बहुत ज्यादा होता है. अभी मार्केट में गुच्छी 8000 रुपये किलो बिक रही है.

द ट्रिब्यून की रिपोर्ट के मुताबिक, सर्दियों के दौरान नम और आर्द्र मौसम की स्थिति इस खाद्य कवक के विकास को बढ़ावा देती है. सैंज घाटी के शैनशर गांव के रहने वाले राहुल ठाकुर का कहना है कि उन्हें इस सीजन की 'गुच्छी' की पहली फसल मिली है. वह आगे कहते हैं कि पिछले तीन दिनों से लगातार बारिश के कारण, उन्होंने लगभग 4 किलो ‘गुच्छी’ इकट्ठा कर ली है. हाल की बारिश के बाद लोगों ने गुच्छी की कटाई के लिए जंगलों का रुख करना शुरू कर दिया है.

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सेहत के लिए है फायदेमंद

'गुच्छी' की सब्जी स्वादिष्ट होने के साथ-साथ सेहत के लिए फायदेमंद भी होती है. माना जाता है कि इसमें औषधीय गुण भी होते हैं. इसे बाजार में ऊंचे दाम पर बेचा जाता है. लोग इसे जंगलों से काटकर बाजार में बेचकर अच्छी खासी कमाई करते हैं. यह अत्यधिक कीमत वाला व्यंजन दुनिया भर के कई महंगे होटलों में भी उपलब्ध है. 'गुच्छी' अक्सर कुल्लू के संपन्न परिवारों के घरों में परोसी जाती है.

मार्केट में इतनी है कीमत

सूखी 'गुच्छी', जो आमतौर पर जंगलों में कठिन शिकार के लिए जानी जाती है, लगभग 8,000 रुपये प्रति किलोग्राम के हिसाब से बेची जाती है. 'गुच्छी' व्यापार से जुड़े उद्यमी अमित सूद कहते हैं कि घाटी में लगभग 4 से 5 टन 'गुच्छी' का उत्पादन होता है. यह मध्य और निचले हिमालयी क्षेत्रों में छायादार वन क्षेत्रों, बगीचों, आंगनों और घास के मैदानों में प्राकृतिक रूप से उगती है. यह प्रजाति हिमाचल प्रदेश के कई जिलों जैसे कुल्लू, मंडी, शिमला, सिरमौर और चंबा के ऊपरी इलाकों में प्राकृतिक रूप से पाई जाती है.

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इन जंगलों में होता है गुच्छी का उत्पादन

कुल्लू में मणिकरण घाटी, सैंज घाटी, मनाली और बंजार क्षेत्रों के जंगलों में 'गुच्छी' बहुतायत में पाई जाती है. इस क्षेत्र की उपज की काफी मांग है और इस दुर्लभ जंगली मशरूम का कारोबार हर साल कुल्लू में करोड़ों रुपये का होता है. यह क्षेत्र के लोगों को आय का व्यावसायिक रूप से उत्पादक वैकल्पिक स्रोत प्रदान करता है. हालांकि, पिछले एक दशक में इस जंगली सब्जी की मात्रा में कमी आई है.