MS धोनी भी करते हैं सोयाबीन और मटर की इस किस्म की खेती, जानिए क्या है खासियत

MS धोनी भी करते हैं सोयाबीन और मटर की इस किस्म की खेती, जानिए क्या है खासियत

ICAR-रिसर्च कॉम्प्लेक्स द्वारा रांची में बनाई गई सोयाबीन और स्नो पी यानी मटर की बनाई गई कुछ खास किस्में किसानों के बीच तेज़ी से पॉपुलर हो रही हैं. बता दें कि इन किस्मों की खेती दिग्गज क्रिकेटर महेंद्र सिंह धोनी भी उगाते हैं.

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MS धोनी भी करते हैं सोयाबीन और मटर की इस किस्म की खेती, जानिए क्या है खासियतसोयाबीन और मटर की खास किस्म

रांची के ICAR-रिसर्च कॉम्प्लेक्स एक एक साइंटिस्ट ने कहा कि किसानों को सोयाबीन और स्नो पी यानी मटर की दो किस्मों से फायदा हो रहा है. दरअसल, ICAR-रिसर्च कॉम्प्लेक्स द्वारा रांची में बनाई गई ये किस्में किसानों के बीच तेज़ी से पॉपुलर हो रही हैं. साथ ही ये किस्में अपने स्वाद और हाई न्यूट्रिशनल वैल्यू के लिए नेशनल और इंटरनेशनल लेवल पर पहचान बना रही हैं. हॉर्टिकल्चर एंड वेजिटेबल साइंस के प्रिंसिपल साइंटिस्ट आर एस पान ने कहा कि ये बेहतर किस्में रांची के प्लांडू में मौजूद सेंटर में लगभग तीन दशकों से हो रही लगातार रिसर्च का नतीजा है. बता दें कि इन किस्मों की खेती दिग्गज क्रिकेटर महेंद्र सिंह धोनी भी उगाते हैं.

ये है सोयाबीन और मटर की किस्म

साइंटिस्ट आर एस पान ने कहा कि सोयाबीन की किस्म 'स्वर्ण वसुंधरा' और मटर की किस्म 'स्वर्ण तृप्ति' को पूरे देश में पहचान मिली है. किसानों के बीच इनकी पॉपुलैरिटी लगातार बढ़ रही है. किसानों को न्यूट्रिशनल और रोजी-रोटी की सुरक्षा देने के लिए झारखंड और दूसरे राज्यों में सोयाबीन की यह किस्म लाई गई थी. आर एस पान ने कहा कि फसल स्टैंडर्ड, नोटिफिकेशन और बागवानी फसलों की किस्मों को जारी करने पर सेंट्रल सब-कमेटी की सिफारिश के आधार पर, यह किस्म अब 14 राज्यों के किसानों को सप्लाई की जा रही है.

इन राज्यों में हो रही इस वैरायटी की खेती

उन्होंने कहा कि झारखंड, आंध्र प्रदेश, बिहार, कर्नाटक, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश, ओडिशा, हिमाचल प्रदेश और छत्तीसगढ़ में किसानों ने सोयाबीन की इस किस्म को अच्छा रिस्पॉन्स दिया है. साइंटिस्ट ने कहा कि 'स्वर्ण वसुंधरा' अब झारखंड की एक जानी-मानी पहचान बन गई है, और इसका प्रमोशन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भारत से दालों में आत्मनिर्भरता हासिल करने की अपील से मेल खाता है. उन्होंने कहा कि सोयाबीन की इस किस्म को बनाने का मुख्य उद्देश्य सभी उम्र के लोगों में पोषक तत्वों की कमी को दूर करना था.

लोगों के लिए फायदेमंद है ये किस्म

पान ने कहा कि सोयाबीन का असली जर्मप्लाज्म वर्ल्ड वेजिटेबल सेंटर, ताइवान से इंपोर्ट किया गया था, और बाद में रांची में सिलेक्शन और एक्सपेरिमेंटल खेती के जरिए इसे बेहतर बनाया गया. यह प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, लिपिड, ज़रूरी फैटी एसिड और मिनरल का सोर्स है. इसके अलावा, इसमें आइसोफ्लेवोंस भी होते हैं, जो एंटी-कैंसर कंपाउंड हैं, और ऑस्टियोपोरोसिस (घुटने का दर्द) और दिल से जुड़ी बीमारियों से परेशान लोगों के लिए फायदेमंद है.

साइंटिस्ट ने कहा कि इसे -20 डिग्री सेल्सियस पर एक साल तक फ्रोजन सोयाबीन के रूप में भी रखा जा सकता है. सोयाबीन से सोया मिल्क, दही, पनीर, रसगुल्ला और दूसरे वैल्यू-एडेड प्रोडक्ट बनाने के लिए पुणे और पश्चिम बंगाल में प्रोसेसिंग यूनिट लगाई गई हैं.

MS धोनी भी उगाते हैं ये वैरायटी

उन्होंने कहा कि लोकल किसानों को इससे सीधा फायदा हो रहा है. रांची जिले के नागरी का एक किसान बड़े पैमाने पर 'स्वर्ण वसुंधरा' की खेती कर रहा है और पुणे और दूसरी जगहों पर एग्रो प्रोडक्ट सप्लाई कर रहा है. एक और किसान, एमलीन कंडुलना भी फसल से कई वैल्यू-एडेड प्रोडक्ट बना रही हैं. इसके अलावा क्रिकेटर एम एस धोनी के एग्रीकल्चर एडवाइजर के तौर पर काम कर रहे डॉ. रौशन कुमार ने कहा कि MS धोनी भी स्वर्ण वसुंधरा की खेती की है, जो ज्यादा पैदावार वाली बेहतर सोयाबीन की वैरायटी है. इस खरीफ सीजन में ट्रायल के लिए ICAR, प्लांडू से एक किलो बीज फार्म पर लाया गया था. फसल लगभग 3-4 महीने में पक गई और बहुत अच्छी पैदावार हुई. अगले साल से हम निश्चित रूप से इसे बड़े पैमाने पर इसे उगाएंगे. इस सोयाबीन का स्वाद पिछली वैरायटी से बेहतर है.

किसानों को हो रही बंपर कमाई 

रौशन कुमार ने बताया कि महेंद्र सिंह धोनी ने अपनी फार्म पर 1 किलो स्वर्ण तृप्ति बीज भी उगाया गया था. वहीं, नागरी के किसान अनिल महतो ने भी 50 डिसमिल ज़मीन पर स्वर्ण वसुंधरा की खेती की. किसान अनिल महतो ने कहा कि उन्होंने 10 किलो बीज 1,500 रुपये में खरीदा और खर्च था जुताई पर 5,000 रुपये, क्यारी तैयार करने पर 5,000 रुपये, मल्चिंग पर 6,500 रुपये, खाद और फर्टिलाइजर पर 2,500 रुपये, और मजदूरी (80 लोग) पर 20,000 रुपये. कुल मिलाकर, लगभग 60,000 रुपये इन्वेस्ट हुए. वहीं, रौशन को बाजार में उपज बेचने के बाद 1,50,000 रुपये कमाई और 90,000 रुपये का नेट प्रॉफिट हुआ.

रांची जिले के एक किसान रूपेश पाहन ने कहा कि इस साल मई में उन्होंने 63 डेसिमल (0.63 एकड़) ज़मीन पर स्वर्ण वसुंधरा की खेती की. बीज की क्वालिटी बहुत अच्छी है, वो पिछले दो सालों से यह वैरायटी उगा रहा  है और 80,000 का नेट प्रॉफिट कमा रहे हैं. इसके अलावा रांची ज़िले के ठाकुरगांव के एक और किसान भोला ओरांव ने कहा कि वह इस साल पहली बार स्वर्ण वसुंधरा की खेती कर रहे हैं.

उन्होंने कहा कि बीज की क्वालिटी बहुत अच्छी है और पैदावार पिछली वैरायटी से बहुत ज्यादा है. भोला ने इसे लगभग 70 डिसमिल ज़मीन पर उगाया, जिसमें कुल लागत लगभग 50,000 था, और भोला ने 1,50,000 का नेट प्रॉफिट कमाया. उन्होंने बताया कि उनके साथ गांव के पांच और किसान भी इस साल स्वर्ण वसुंधरा उगा रहे हैं.

वैरायटी को बनाने का मुख्य मकसद

डॉ. पान ने कहा कि सोयाबीन की इस वैरायटी को बनाने का मुख्य मकसद सभी उम्र के लोगों में न्यूट्रिशन की कमी को दूर करना था. 'स्वर्ण तृप्ति' एक नई वैरायटी है, और इसकी मुलायम फलियों को सलाद में पूरा खाया जा सकता है, सैंडविच में इस्तेमाल किया जा सकता है या सब्जियों के साथ पकाया जा सकता है. उन्होंने कहा कि इसमें प्रोटीन और मिनरल भरपूर होते हैं. दोनों वैरायटी को उनके न्यूट्रिएंट्स के लिए टेस्ट और जांचा गया है. हम उन्हें किसानों के बीच पॉपुलर बना रहे हैं, और जैसे-जैसे किसानों को उनके न्यूट्रिशनल फायदों और आर्थिक क्षमता का एहसास हो रहा है, उन्हें धीरे-धीरे अपनाया जा रहा है. (PTI)

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