भारत मेंथा का सबसे बड़ा उत्पादक देश है. नकदी फसलों में शामिल मेंथा यानी पिपरमिंट की खेती की बाजार में हमेशा मांग रहती है. वर्तमान समय में इसकी खेती सबसे अधिक उत्तर प्रदेश में की जा रही है. सीएसआईआर-केंद्रीय औषधीय एवं सगंध पौधा संस्थान, लखनऊ इसकी खेती को बढ़ावा देने के लिए लगातार प्रयास कर रहा है. मेंथा की बढ़ती मांग की वजह से यह आज के समय में शुद्ध मुनाफे वाले सौदा बनता जा रहा है. ऐसे में आइए जानते हैं कैसे करें मेंथा की खेती.
मेंथा, जिसे पुदीना या पेपरमिंट भी कहा जाता है. यह औषधीय गुणों वाला एक पौधा है. जिसकी खेती भारत में बड़े पैमाने पर की जाती है. वैसे तो इसे पूरे देश में किसान उगाते हैं, लेकिन राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, गुजरात और पंजाब जैसे राज्यों में इसकी खेती बड़े पैमाने पर होती है.
मेंथा की खेती सबसे ज्यादा इसकी सुगंधित पत्तियों और तेल के लिए की जाती है. पूरी दुनिया में मेंथा ऑयल की खपत करीब 9500 मीट्रिक टन है. मेंथा ऑयल उत्पादन में भारत दुनिया में पहले स्थान पर है. इसका तेल एक हजार रुपये प्रति लीटर से भी ज्यादा बिकता है. जिस वजह से इसकी खेती फायदे का सौदा है. मेंथा की मांग दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है. ऐसे में किसान मेंथा की खेती से मोटा मुनाफा कमा सकते हैं.
मेंथा की खेती से अधिक कमाई के लिए मेंथा की उन्नत किस्मों के चयन के साथ-साथ सही समय पर बुआई, मिट्टी, सिंचाई और कीट प्रबंधन की सही जानकारी होना जरूरी है. ऐसे में आइए जानते हैं इसके बारे में.
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मेंथा की खेती लगभग सभी प्रकार की मिट्टी में की जा सकती है. इसकी खेती के लिए मिट्टी में पर्याप्त कार्बनिक पदार्थ होना चाहिए, अच्छी जल धारण क्षमता होनी चाहिए और अच्छी जल निकासी व्यवस्था भी आवश्यक है. तभी जाकर किसान इसकी खेती से अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं.
मिट्टी का PH मान 6.5-7.5 होना चाहिए. मेंथा की खेती बलुई दोमट और चिकनी दोमट मिट्टी में नहीं करनी चाहिए, क्योंकि इसमें जड़ें ठीक से विकसित नहीं हो पाती हैं. मेंथा की अच्छी फसल के लिए 22-32 डिग्री सेल्सियस का तापमान उपयुक्त होता है जबकि इसकी कटाई के समय तेज धूप होनी चाहिए.
मेंथा की बुआई के लिए सबसे पहले खेत को अच्छी तरह से तैयार कर लें. इसके लिए मिट्टी पलटने वाले हल से 2 से 3 बार गहरी जुताई करें और बुआई से पहले मिट्टी में प्रति हेक्टेयर 15 से 20 टन सड़ी हुई गोबर की खाद या कम्पोस्ट डालकर अच्छी तरह मिला देना चाहिए. फसल को दीमक से बचाने के लिए नीम की खली 10 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की दर से मिट्टी में मिला दें. इसके बाद छोटी-छोटी क्यारियां बनाकर पौधे रोपें. उनके बीच 30-40 सेमी की दूरी रखें. मेंथा के पौधों को नर्सरी में तैयार किया जाता है और फिर खेत में लगाया जाता है.
मेंथा की खेती का सही समय जनवरी से लेकर फरवरी तक का होता है. यह वो समय होता है जब सर्दी का मौसम खत्म होता है और गर्मी की शुरुआत होती है. यानी मध्य जनवरी से फरवरी तक का समय मेंथा की बुआई के लिए सबसे अच्छा समय होता है.
मेंथा की फसल से अधिक उपज यानी तेल प्राप्त करने के लिए किसानों को इसकी कुछ उन्नत किस्मों का चयन करना चाहिए. इसकी कुछ उन्नत किस्में हैं - सिम कोशी जिससे प्रति हेक्टेयर 140-150 लीटर तेल प्राप्त किया जा सकता है, सिम क्रांति जिससे 170 से 210 लीटर तेल मिलता है, कुशल किस्म भी 177-194 लीटर तेल देती है. इन सबके अलावा मेंथा की अन्य उन्नत किस्में भी हैं- कालका, कोसी, हिमालय, गोमती, सिम सरयू, सक्षम, संभव, डमरू आदि.
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