किसान, रबी सीजन में अधिक मुनाफे की उम्मीद करते हुए गेहूं की सबसे ज्यादा खेती करते हैं. वही गेहूं की खड़ी फसल में कई ऐसे रोग लगते हैं, जिससे किसानों को भारी नुकसान हो जाता है. हालांकि, गेहूं की खेती में सही बीज के चुनाव, खेत की तैयारी, बुवाई के सही तरीके और कीट एवं रोगों के प्रबंधन का अगर किसान ध्यान रखें तो अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं. ऐसे में आइए आज गेहूं की फसल में लगने वाले प्रमुख रोगों के बारे में विस्तार से जानते हैं-
गेहूं में लगने वाले इन रोगों में भूरा, काला और पीला रतुआ प्रमुख रोग हैं. आमतौर पर गेहूं की फसल में इन तीनों रोगों का प्रकोप सबसे ज्यादा देखने को मिलता है. इससे उपज में काफी गिरावट दर्ज की जाती है और किसानों को इसका खामियाजा नुकसान के तौर पर झेलना पड़ता है. हालांकि, सही समय पर इन रोगों की पहचान कर किसान भाई प्रबंधन कर लें, तो इससे होने वाले नुकसान से बचा जा सकता है-
पीला रतुआ रोग एक फफूंदजनित रोग है. यह रोग पत्तियों को पीले रंग में बदल देता है. दरअसल, इस रोग के होने पर गेहूं के पत्तों पर पीले रंग का पाउडर बनने लगता है, जिसे छूने से पाउडरनुमा पीला पदार्थ निकलता है और कई बार हाथ भी पीले हो जाते हैं. अगर इस रोग को सही समय पर नियंत्रित नहीं किया जाए तो बाद में ये हवा और पानी के माध्यम से पूरे खेत व क्षेत्र में फैल जाता है.
पीला रतुआ रोग के लक्षण दिखाई देते ही फसल में फफूंदनाशक प्रोपिकोनाजोल का छिड़काव करें. इसकी मात्रा 200 मि.ली. प्रति एकड़ के हिसाब से 200 लीटर पानी में घोल कर बनाएं और स्प्रे करें. कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार फसल पर नियमित निगरानी रखें, खासकर उन फसलों की जो पेड़ों के आसपास बोये गए हों.
गेहूं के सभी रतुआ रोगों में भूरा रतुआ रोग समान्य रूप से सभी जगह पाया जाने वाला रोग है. इसका प्रकोप लगभग गेहूं उगाने वाले सभी क्षेत्रों में होता है. यह रोग 15 से 25 डिग्री सेल्सियस तापमान के साथ नमीयुक्त जलवायु में विस्तार करता है. सामान्यतः भूरा रतुआ से फसलों का नुकसान 10% से कम होता है, लेकिन अनुकूल पारिस्थितियों में 30% तक नुकसान हो सकता है.
भूरा रतुआ रोग से बचने के लिए फसल चक्र अपनाएं. अनुशंसित फफूंदनाशक का छिड़काव करें. इसके साथ ही रोग प्रतिरोधी किस्मों की खेती करें. खेत को खरपतवार से मुक्त रखें. बीज का उपचार करें, इसके लिए कार्बेन्डाजिम 50 घुलनशील चूर्ण का 2 ग्राम प्रति किलोग्राम की दर से बीज का उपचार कर बुवाई करें.
काला या तना रतुआ रोग एक समय में पूरे विश्व में गेहूं की फसल में लगने वाला सबसे बड़ा रोग था. काला रतुआ रोग को लगने के लिए 20 डिग्री सेल्सियस से ऊपर का तापमान और नमी रहित जलवायु की आवश्यकता होती है.
गेहूं की नए किस्मों की बुवाई करें. एक ही किस्म की बुवाई ज्यादा क्षेत्र में नहीं करें. फसल का लगातार निरीक्षण करते रहें और वृक्षों के आसपास उगाई गई गेहूं की फसल पर ज्यादा ध्यान दें. काला रतुआ रोग के लक्षण नजर आते ही अनुशंसित फफूंदनाशक को स्प्रे करें.
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