देश में इथेनॉल का उत्पादन करने के लिए डिस्टिलरी आमतौर पर चीनी के शीरे का उपयोग करती हैं, जो चीनी का सह-उत्पाद है. देश केवल गन्ने की फसल का उपयोग करके ईंधन में 20 प्रतिशत इथेनॉल सम्मिश्रण का लक्ष्य हासिल नहीं कर सकता है. इसलिए, भारतीय खाद्य निगम के पास उपलब्ध मक्का, टूटे खाद्यान्न (डीएफजी) और चावल जैसे खाद्यान्नों से भी इथेनॉल बनाने की अनुमति है. इसलिए अब यह किसी एक फीडस्टॉक या फसल पर निर्भर नहीं है क्योंकि पहले यह गुड़ और गन्ने पर निर्भर था. इसके बाद फिर इसे चावल, मक्का और अन्य अनाजों तक बढ़ा दिया गया. लेकिन सरकार द्वारा गैर-बासमती सफेद चावल के निर्यात पर प्रतिबंध लगाने के बाद इथेनॉल उत्पादन के लिए सब्सिडी वाला चावल जारी करना बंद कर दिया है. केंद्र सरकार ने पहले ही स्पष्ट कर दिया था कि इथेनॉल उत्पादन के लिए चावल का उपयोग करने की व्यवस्था केवल अस्थायी आधार पर होगी. इसलिए अन्य विकल्प तलाशने होंगे.
2025 तक ईंधन में 20 प्रतिशत इथेनॉल मिश्रण के सरकार के लक्ष्य को हासिल करने के लिए लगभग 1016 करोड़ लीटर इथेनॉल की जरूरत होगी. अन्य उपयोगों के लिए लगभग 334 करोड़ लीटर इथेनॉल की जरूरत होगी. इसके लिए लगभग 1700 करोड़ लीटर इथेनॉल उत्पादन क्षमता की जरूरत होगी, क्योंकि प्लांट 80 प्रतिशत दक्षता पर संचालित होता है. एक अनुमान के मुताबिक, इतना इथेनॉल उत्पादन करने के लिए लगभग 165 मिलियन मीट्रिक टन अनाज की जरूरत होगी. विश्व स्तर पर, मक्का इथेनॉल उत्पादन के लिए एक प्राथमिक फीडस्टॉक है. दुनिया भर में सालाना उत्पादित 10,000 करोड़ लीटर इथेनॉल का 73 प्रतिशत मक्के से बनता है. विश्व में इथेनॉल बहुत कम मात्रा में चावल से तैयार किया जाता है. ऐसे में दूसरे विकल्प के रूप में मक्के की फसल किसी भी अन्य फसल से बेहतर लगती है.
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मक्के के भुट्टे से इथेनॉल उत्पादन की संभावना के बारे में अब चीनी उद्योग द्वारा बहुत रुचि के साथ बात की जा रही है. हालांकि कई चीनी मिलों ने पहले ही अनाज आधारित डिस्टिलरी शुरू कर दी है. लेकिन हाल ही में एफसीआई ने स्थापित डिस्टिलरी को अनाज की आपूर्ति में कटौती शुरू कर दी है. हमारे देश में मक्का संभावित रूप से बेहतर विकल्प हो सकता है, क्योंकि अमेरिका में मक्का की लगभग 45 प्रतिशत फसल का उपयोग इथेनॉल उत्पादन के लिए किया जाता है. लेकिन हमारे देश में इथेनॉल उत्पादन के लिए फीडस्टॉक के रूप में मक्के का उपयोग अभी भी नहीं बढ़ा है.
मक्का एक ऐसी फसल है जिसकी खेती अपने देश में तीनों मौसमों में की जाती है. वहीं, यह चावल और गन्ने की तरह ज्यादा पानी की जरूरत वाली फसल नहीं है. वर्तमान में, अनाज आधारित डिस्टिलरी टूटे हुए चावल जैसे टूटे खाद्यान्न (डीएफजी) का उपयोग करके या भारतीय खाद्य निगम के चावल का उपयोग करके खाद्यान्न से इथेनॉल का उत्पादन कर रही हैं. इथेनॉल उत्पादन के लिए कई फीडस्टॉक का उपयोग करने से फीडस्टॉक सुरक्षा सुनिश्चित रहेगी. किसी एक फीडस्टॉक की उपलब्धता पर कोई दबाव नहीं रहेगा. इसमें मक्का आधारित इथेनॉल उत्पादन अधिक किफायती है.
देश में मक्के का उत्पादन लगातार हो रहा है. लेकिन मक्के की मांग कम होने के कारण किसानों को उनकी उपज का उचित दाम नहीं मिल पाता है. मक्के से इथेनॉल उत्पादन से मक्के की मांग बढ़ेगी और किसानों को बेहतर कीमत मिलेगी. वर्तमान में निर्यात बढ़ने के कारण मक्के की कीमतें ज्यादा हैं. लेकिन आम तौर पर मक्के का बाजार मूल्य न्यूनतम समर्थन मूल्य से नीचे रहता है. जिससे इस फसल के लिए खेती का क्षेत्रफल कम हो जाता है.
इथेनॉल उत्पादन के लिए मक्का के उपयोग से बेहतर कीमतें और मक्के की निरंतर मांग सुनिश्चित होगी. इससे इस फसल की खेती बढ़ेगी. ये धान की तुलना में कम पानी की खपत करने वाली फसल है. इसके अलावा, डिस्टिलरी भी बाजार में फीडस्टॉक की उपलब्धता के बारे में आश्वस्त रहेंगी. देश में मक्का उत्पादन में प्रगति लाने से निश्चित रूप से इससे डिस्टिलरी मालिक और किसान दोनों के लिए फायदेमंद रहेगा. साथ ही जल और पर्यावरण के संरक्षण में भी बहुत मदद मिलेगी.
इसके लिए गन्ना क्षेत्र की तर्ज पर, डिस्टिलरी को मक्का किसानों का सपोर्ट करने के लिए मक्का की न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद सुनिश्चित करने की जरूरत है. मक्का से इथेनॉल बनाने की रणनीति से किसानों, डिस्टिलरी और समग्र उद्योग के लिए उच्च लाभ मिलना सुनिश्चित किया जा सकता है. अनाज आधारित डिस्टिलरी के माध्यम से ईंधन के लिए इथेनॉल की जरूरतों को पूरा किया जा सकता है.
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भारत में मक्के का उत्पादन पूरे वर्ष होता है. मक्का एक प्रमुख खरीफ फसल है जिसके 85 फीसदी क्षेत्र में खेती की जाती है. चावल और गेहूं के बाद मक्का भारत में तीसरी सबसे अहम अनाज की फसल है. यह देश के कुल अनाज उत्पादन का लगभग 10 प्रतिशत है. इसमें कर्नाटक, मध्य प्रदेश, बिहार, तमिलनाडु, तेलंगाना, महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश भारत के प्रमुख मक्का उत्पादक राज्य हैं. भारत में भी 60 प्रतिशत का उपयोग पोल्ट्री और अन्य पशु आहार में किया जाता है. मक्के का केवल 20 फीसदी भाग ही भोजन में प्रयोग किया जाता है. देश में लगभग 350 लाख टन मक्के का उत्पादन होता है.
बिहार जैसे राज्य में मक्के का कुल क्षेत्रफल,6.73 लाख हेक्टेयर है और उत्पादकता 52.29 क्विंटल/हेक्टेयर है. बिहार राज्य में कुल मक्का रकबा का लगभग 50 फीसकी रबी सीजन में होता है. बिहार में मक्के से इथेनॉल उत्पादन के पर्याप्त अवसर उपलब्ध हैं. इथेनॉल उत्पादन बढ़ाना राष्ट्रीय प्राथमिकता है. इसलिए इस पहलू पर भी सोचने की जरूरत है.
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