लोबिया एक महत्वपूर्ण नकदी फसल है. लोबिया की खेती मैदानी इलाकों में फरवरी से अक्टूबर तक सफलतापूर्वक की जाती है. लोबिया एक फलीदार पौधा है जिसकी पतली, लंबी फलियाँ होती हैं. इन फलियों का उपयोग कच्ची अवस्था में सब्जी के रूप में किया जाता है. लोबिया की इन फलियों को बोड़ा चौला या चौरा फलियों के नाम से भी जाना जाता है. लोबिया हरी फलियों, सूखे बीजों, हरी खाद और चारे के लिए पूरे भारत में उगाई जाने वाली एक वार्षिक फसल है. इस पौधे का उपयोग हरी खाद बनाने के लिए भी किया जाता है. इसलिए अधिक से अधिक किसान इसकी खेती करते हैं. अगर आप भी लोबिया की खेती करना चाहते हैं तो बारिश के तुरंत बाद बुवाई कर दें.
लोबिया की खेती के लिए दोमट मिट्टी उपयुक्त होती है. खेत समतल और उचित जल निकासी वाला होना चाहिए. खेत को एक बार मिट्टी पलटने वाले हल से और फिर दो बार देशी हल या कल्टीवेटर से जोतना चाहिए. बारिश शुरू होते ही जुलाई में लोबिया की बुवाई करें. बुवाई में देरी करने से पैदावार कम होती है क्योंकि फूल आने की अवधि कम हो जाती है.
खरीफ सीजन के लिए लंबी अवधि वाली किस्में अच्छी होती हैं. लोबिया की मुख्य किस्में पूसा सुकोमल, पूसा 578, पूसा संपदा, पूसा फल्गुनी, पूसा दो फसली, पूसा बरसाती, टाइप 2 और हरे चारे के लिए टीए-2 और यूपीसी-4200 आदि हैं.
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लोबिया की बुवाई के लिए 20-25 किलोग्राम (अनाज और सब्जी के लिए) और हरे चारे के लिए 30-40 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर पर्याप्त होता है. पंक्तियों के बीच 45 से 60 सेमी की दूरी पर बुवाई करने पर अधिकतम उपज प्राप्त होती है. इसके लिए देशी हल या सीड ड्रिल का प्रयोग किया जाता है. बुवाई से पहले बीजों को 2 ग्राम थीरम प्रति किलोग्राम की दर से उपचारित करना चाहिए और उसके बाद लोबिया के बीजों को विशिष्ट राइजोबियम कल्चर से उपचारित करना चाहिए.
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बुवाई के कुछ दिनों बाद तक नाइट्रोजन की आवश्यकता को पूरा करने के लिए बुवाई के समय 15-20 किलोग्राम नाइट्रोजन/हेक्टेयर देना चाहिए. फास्फोरस और पोटाश की मात्रा मिट्टी में पोषक तत्व परीक्षण के अनुसार देनी चाहिए. इसी तरह 50-60 किलोग्राम फास्फोरस और पोटाश प्रति हेक्टेयर देने से अच्छी उपज प्राप्त होती है. बुवाई से पहले जुताई के समय समस्त पोषक तत्व 6-7 सेमी गहराई पर देने से अधिक उपज प्राप्त होती है. अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए फसल को प्रारम्भिक 25 से 30 दिन तक खरपतवार मुक्त रखना आवश्यक है. इसके लिए कम से कम दो बार निराई-गुड़ाई करनी चाहिए. यदि खरपतवारों को हाथ से नियंत्रित नहीं किया जा सकता हो तो फ्लूक्लोरालिन 1 किलोग्राम सक्रिय तत्व प्रति हेक्टेयर 800-1000 लीटर पानी के साथ बुवाई से पहले देने से खरपतवारों पर अच्छा नियंत्रण होता है.
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