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जीरे की फसल में कब बंद कर देनी चाहिए सिंचाई, अच्छी उपज के लिए इन बातों का ध्यान रखना जरूरी

जीरे की फसल में कब बंद कर देनी चाहिए सिंचाई, अच्छी उपज के लिए इन बातों का ध्यान रखना जरूरी

बुआई के तुरंत बाद हल्की सिंचाई कर देनी चाहिए. सिंचाई करते समय इस बात का ध्यान रखें कि पानी का बहाव तेज न हो, नहीं तो तेज बहाव के कारण बीज खराब हो जायेंगे. दूसरी हल्की सिंचाई बुआई के एक सप्ताह बाद जब बीज फूलने लगे तब करें.

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जीरा की खेती में सिंचाई की जरूरत जीरा की खेती में सिंचाई की जरूरत

चाहे तड़का लगाना हो या सब्जियों का स्वाद बढ़ाना हो, जीरा हर जगह काम आता है. मशालों में जीरे की मांग सबसे ज्यादा है. जीरे में कई औषधीय गुण होते हैं. पेट की कई समस्याओं के लिए जीरा किसी रामबाण से कम नहीं है. जीरे में आयरन, कॉपर, कैल्शियम, पोटैशियम, मैंगनीज, जिंक, मैग्नीशियम जैसे कई खनिज पाए जाते हैं. इतना ही नहीं जीरे की खेती से किसानों को अधिक मुनाफा भी मिलता है. जीरे की खेती करके किसान कम लागत में अधिक मुनाफा कमा सकते हैं. आइए जानते हैं जीरे की उन्नत खेती की विधि और इस दौरान ध्यान रखने योग्य बातों के बारे में ताकि किसान भाई इसकी खेती से लाभ उठा सकें. इसी कड़ी में आइए जानते हैं जीरे की अच्छी फसल के लिए क्या-क्या चीजें जरूरी हैं और खास कर सिंचाई कब बंद करनी चाहिए.

जीरे की फसल में सिंचाई की जरूरत

बुआई के तुरंत बाद हल्की सिंचाई कर देनी चाहिए. सिंचाई करते समय इस बात का ध्यान रखें कि पानी का बहाव तेज न हो, नहीं तो तेज बहाव के कारण बीज खराब हो जायेंगे. दूसरी हल्की सिंचाई बुआई के एक सप्ताह बाद जब बीज फूलने लगे तब करें. यदि दूसरी सिंचाई के बाद अंकुरण पूरा न हुआ हो या जमीन पर पपड़ी बन गई हो तो हल्की सिंचाई लाभकारी रहेगी. इसके बाद मिट्टी की संरचना और मौसम के आधार पर 15 से 25 दिन के अंतराल पर सिंचाई पर्याप्त होगी, लेकिन ध्यान रखें कि जमीन में ज्यादा समय तक पानी जमा न रहे. पकी हुई फसल में सिंचाई न करें अर्थात जब 50 प्रतिशत दाने पूरी तरह भर जाएं तो सिंचाई बंद कर दें. इस अवस्था के बाद सिंचाई करने से रोग का प्रकोप बढ़ने की संभावना रहती है, इसलिए अंतिम सिंचाई दाना बनते समय गहराई में करनी चाहिए ताकि आगे सिंचाई की आवश्यकता न पड़े.

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जीरे की खेती के लिए सही मिट्टी

जीरा की खेती के लिए बलुई, दोमट और दोमट मिट्टी अच्छी मानी जाती है. इसके अलावा जीरे की खेती उपजाऊ काली और पीली मिट्टी में भी बड़े पैमाने पर की जाती है. यदि खेत में जलभराव हो तो वहां जीरे की फसल न लगाएं. इसके लिए भूमि का पूरा समतल होना आवश्यक है.

जीरे की खेती में खाद की मात्रा

बुआई से 2 से 3 सप्ताह पहले मिट्टी में गोबर की खाद मिलाना लाभकारी होता है. यदि खेत में कीटों की समस्या हो तो फसल बोने से पहले उनकी रोकथाम के लिए आखिरी जुताई के समय खेत में क्विनालफॉस 1.5 प्रतिशत 20 से 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से मिलाना फायदेमंद होता है. यह भी खूब रही. ध्यान रखें कि यदि खरीफ की फसल में प्रति हेक्टेयर 10-15 टन गोबर की खाद डाली गई है तो जीरे की फसल के लिए अतिरिक्त उर्वरक की आवश्यकता नहीं होती है. अन्यथा 10 से 15 टन प्रति हेक्टेयर की दर से गोबर की खाद को जुताई से पहले खेत में बिखेर कर मिला देना चाहिए.

इसके अलावा जीरे की फसल में 30 किलोग्राम नाइट्रोजन, 20 किलोग्राम फास्फोरस और 15 किलोग्राम पोटाश उर्वरक प्रति हेक्टेयर दें. फास्फोरस पोटाश की पूरी मात्रा तथा नाइट्रोजन की आधी मात्रा बुआई से पहले जुलाई के आखिरी महीने में मिट्टी में मिला देनी चाहिए. नाइट्रोजन की शेष आधी मात्रा बुआई के 30 से 35 दिन बाद सिंचाई के साथ डालें. साथ ही अच्छी उपज के लिए उन्नत कृषि तकनीक अपनाकर प्रति हेक्टेयर 6-10 क्विंटल जीरे की उपज प्राप्त की जा सकती है.