scorecardresearch
कभी नुकसान में नहीं जाएगी बेबी कॉर्न की खेती, बस इन 4 पॉइंट्स का रख लें ध्यान

कभी नुकसान में नहीं जाएगी बेबी कॉर्न की खेती, बस इन 4 पॉइंट्स का रख लें ध्यान

उत्तर भारत में बेबी कॉर्न की बुआई दिसंबर और जनवरी महीने को छोड़कर पूरे साल की जा सकती है. उत्तर भारत में मार्च से मई तक बेबी कॉर्न की मांग अधिक रहती है. इसके लिए जनवरी के अंतिम सप्ताह में बुआई करना उपयुक्त रहता है. इसे दक्षिणी भारत में पूरे वर्ष उगाया जा सकता है.

advertisement
बेबी कॉर्न की खेती बेबी कॉर्न की खेती

दुनिया भर में मक्के की मांग लगातार बढ़ती जा रही है. मक्के का इस्तेमाल कई खाद्य उत्पादों को बनाने के लिए किया जाता है. खासकर स्नैक्स बनाने में मक्के का इस्तेमाल सबसे अधिक किया जा रहा है. आपको बता दें भारत में मक्का खरीफ और रबी दोनों ही सीजन में उगाया जाता है. हालाँकि, अगर आप बेबी कॉर्न की खेती करते हैं, तो भी आप भारी मुनाफा कमा सकते हैं. केंद्र और राज्य सरकारें भी किसानों को मक्के की खेती के लिए प्रोत्साहित कर रही हैं. इस खेती से किसान साल में तीन-चार बार कमाई कर सकते हैं. बेबी कॉर्न का उपयोग सलाद, सूप, सब्जी, अचार, पकौड़ा, कोफ्ता, टिक्की, बर्फी लड्डू हलवा, खीर आदि के रूप में किया जाता है. जिस वजह से इसकी मांग में काफी बढ़त देखी गई है. 

बेबी कॉर्न एक स्वादिष्ट और पौष्टिक भोजन है और पत्तियों में लिपटा होने के कारण यह कीटनाशकों के प्रभाव से मुक्त होता है. बेबी कॉर्न में फास्फोरस प्रचुर मात्रा में उपलब्ध होती है. इसके अलावा इसमें कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, कैल्शियम, आयरन और विटामिन भी उपलब्ध होते हैं. कोलेस्ट्रॉल मुक्त और फाइबर से भरपूर होने के कारण यह कम कैलोरी वाला आहार है जो कई रोगियों के लिए बहुत फायदेमंद है. 

कब करें इसकी बुवाई

उत्तर भारत में बेबी कॉर्न की बुआई दिसंबर और जनवरी महीने को छोड़कर पूरे साल की जा सकती है. उत्तर भारत में मार्च से मई तक बेबी कॉर्न की मांग अधिक रहती है. इसके लिए जनवरी के अंतिम सप्ताह में बुआई करना उपयुक्त रहता है. इसे दक्षिणी भारत में पूरे वर्ष उगाया जा सकता है. अत: बाजार में बेबी कॉर्न की मांग के समय को ध्यान में रखकर बुआई की जाए तो अधिक लाभ प्राप्त किया जा सकता है.

ये भी पढ़ें: Dragon Fruit Farming: तपती धूप में झुलस सकते हैं ड्रैगनफ्रूट के पौधे, बचाव के लिए यह उपाय करें किसान

बेबी कॉर्न की उन्नत किस्में

बेबी कॉर्न की खेती के लिए कम समय में पकने वाली मध्यम ऊंचाई की सिंगल क्रॉस संकर किस्में सर्वोत्तम रहती हैं. इसमें बीएल-42, प्रकाश, एचएम-4 और आजाद कमल शामिल हैं. कम पकने की अवधि वाली एकल संकर संकर किस्में, जिनमें रेशम निकलने की अवधि खरीफ में 70-75 दिन, वसंत ऋतु में 45-50 दिन और शीत ऋतु में 120-130 दिन होती है. उत्तर भारत में बेबी कॉर्न की बुआई फरवरी से नवंबर के बीच कभी भी की जा सकती है. बुआई मेड़ों के दक्षिणी भाग में करनी चाहिए तथा मेड़ से मेड़ तथा पौधे से पौधे की दूरी 60 सेमी × 15 सेमी रखनी चाहिए.

सफल खेती के लिए इन 4 बातों का रखें ध्यान

  • बेबीकॉर्न की खेती के लिए पर्याप्त उर्वरक वाली दोमट मृदा अच्छी मानी जाती है.
  • पलेवा यानी मिट्टी को लेवल करने के बाद मृदा पलटने वाले हल से दो तीन जुताई करके खेत की तैयारी करनी जरूरी है.
  • बेबीकॉर्न की संकर- प्रकाश व कम्पोजिट केसरी किस्मों के 16 किग्रा बीज को एक फीट अन्तर वाली पंक्तियों में और पौधों के बीच आठ इंच दूरी रखकर बोया जाना उपयुक्त माना जाता है.
  • इसके कच्चे भुट्टे का बाजार में काफी मांग है, खास कर, होटलों में सब्जी, सूप, सलाद व अचार बनाने में उपयोग किया जाता है.