आम एक बेहद लोकप्रिय फल है. इसके मीठे और सुगंधित फलों के लिए भारत में व्यापक रूप से खेती की जाती है. आम में बस दो खूबियां होनी चाहिए, एक मीठे हों और दूसरा अधिक मात्रा में हों. दुनियाभर में आम की 1500 से ज्यादा किस्में हैं, इनमें से भारत में 1000 किस्में उगाई जाती हैं. ऐतिहासिक रूप से आम की किस्में, अधिकांश आनुवंशिक सुधार आकस्मिक अंकुरों का परिणाम रही हैं. वैज्ञानिकों के अनुसार आम को दो तरह से तैयार किया जाता है. बीजू आम को सीधे गुठली से उगाया जाता है जबकि एक कलमी आम शीर्ष पर एक अच्छे फल वाले आम के तने और नीचे एक मजबूत जड़ प्रणाली को एक साथ जोड़कर बनाया जाता है. क्या आप जानते हैं कि इन दोनों में क्या अंतर है और सेहत की नजर से कौन सही है.
बागवानी वैज्ञानिक संजय कुमार सिंह, देवेन्द्र पाण्डेय, अंजू वाजपेयी, शिवपूजन और कुलदीप श्रीवास्तव के अनुसार उत्तर प्रदेश एवं बिहार की कई बीजू आम की किस्मों का प्रयोग चूसकर खानेवाले, काटकर खानेवाले एवं अचार बनाने के रूप में किया जाता है. इन स्वादिष्ट आमों का बड़े पैमाने पर सर्वेक्षण, एकत्र कर, पुनर्मूल्यांकन कर नए विकसित किस्म के रूप में या प्रजनन के लिए उपयोग में लाया जा सकता है या सीधे बाजार में भी बेचा जा सकता है.
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फल, लकड़ी और पत्तों के लिहाज से बीजू आम का कोई प्रतियोगी नहीं है. यह भी है कि बीजू आम डायबिटिक मरीजों के लिएकाफी फायदमंद होता है.
बीजू आम को सीधे गुठली से उगाया जाता है जबकि एक कलमी आम शीर्ष पर एक अच्छे फल वाले आम के तने और नीचे एक मजबूत जड़ प्रणाली को एक साथ जोड़कर बनाया जाता है.
कलमी (ग्राफ्टेड) का पेड़ बीजू (अंकुर) वाले आम के पेड़ की तुलना में जल्दी फल देता है.
कलमी के पेड़ मजबूत एवं उन्नत जड़ प्रणाली पर उगाए जाते हैं ताकि बीजू पेड़ की तुलना में विभिन्न प्रकार की मृदा के अनुकूल हो सकें.
बीजू आम के बगीचे की लागत आमतौर पर कम होती है तथा ग्राफ्टेड पेड़ की तुलना में बड़े आकार के होते हैं.
बीजू आम बहुत ही रसीला, मीठा, रेशेयुक्त, छोटे आकार के, ज्यादातर गुच्छों में फलने वाले, अधिक उत्पादन देने वाले, रोगरोधी होने के साथ-साथ कीटों के प्रकोप के प्रति काफी हद तक सहिष्णु होते हैं.
यदि आप जल्दी फल चाहते हैं तो कलमी आम का पेड़ चुनें, यदि आप सस्ता विकल्प चाहते हैं तो बीजू आम का पेड़ चुनें.
कलमी पौधे से पता चल जाता है कि हमें कौन सा फल मिलेगा जबकि गुठली से जनित पौधे माता-पिता से भिन्न होते हैं.
बीजू आम के पेड़ों का एक प्रमुख उपयोग ग्राफ्टिंग (कलम बांधने में) मूलवृंत (रूट स्टॉक) के रूप में होता है, क्योंकि उनके पास एक मजबूत जड़ प्रणाली होती है जो उन्हें आदर्श बनाती है.
बिहार के दीघा का मालदह (यानी लंगड़ा), भागलपुर का जर्दालु और बक्सर के चौसा आम की लोकप्रियता देश-विदेश में फैली हुई है. दरभंगा को बिहार के आम की राजधानी कहा जाता है. मुख्य रूप से मालदह (यानी लंगड़ा) आम, जर्दालु, बम्बइया, बीजू, बेतिया का मिठुआ (जर्दा) आम किस्मों की खूब बिक्री इस सीजन में होती है. वहीं देर समय में बाजार में शुकुल, सीपिया, बथुआ (कंचन) सहित अन्य कई प्रकार के आम धड़ल्ले से बिकते रहे हैं.
देश में लगभग 200 प्रकार के आम में से बिहार के मुख्य बाजारों में 20 किस्में ही आती हैं. इनमें बीजू की किस्मों की संख्या नगण्य होती है लेकिन बिहार की कई दुर्लभ किस्में बीजू आम के रूप में मौजूद हैं. जैसे कृष्ण भोग, दुर्गाभोग, सूर्यापूरी, घिवही, शाज्मनिया, लटकम्पू, डलमा, मधुकुपिया, बारामासी आदि. बिहार में बहुत से विशिष्ट बीजू जीनोटाइप उपलब्ध हैं, इनके चयन में किसान एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं और ब्रीडर की मदद से वे स्थानीय जर्मप्लाज्म को बनाए रखने का रास्ता भी खोल सकते हैं.
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