scorecardresearch
पंजाब में किसान किन्नू की खेती से बना रहे हैं दूरी, अब इन फसलों को उगाकर कर रहे बंपर कमाई

पंजाब में किसान किन्नू की खेती से बना रहे हैं दूरी, अब इन फसलों को उगाकर कर रहे बंपर कमाई

किसान राज कुमार ने कहा कि मैं 15 एकड़ में किन्नू उगा रहा था, मुझे लेकिन घाटे का सामना करना पड़ा. इसके बाद मैंने नाशपाती उगाना शुरू कर दिया. उन्होंने कहा कि इसके एक पौधे की कीमत 100 रुपये है और मैंने एक एकड़ में 100 पौधे बोये हैं.

advertisement
किन्नू की खेती में किसानों को नहीं हो रहा फायदा. (सांकेतिक फोटो) किन्नू की खेती में किसानों को नहीं हो रहा फायदा. (सांकेतिक फोटो)

पंजाब के बठिंडा जिले में सिंचाई के अभाव में किन्नू उत्पादक किसानों के सामने मुश्किलें खड़ी हो गई हैं. साथ ही अपनी उपज की मार्केट में अच्छी कीमत न मिलने से वे लागत भी नहीं निकाल पा रहे हैं. ऐसे में परेशान किसानों ने किन्नू की खेती से दूरी बनानी शुरू कर दी है. अब वे दूसरी बागवानी फसलों की तरफ रूख कर रहे हैं, ताकि लागत के मुकाबले अधिक से अधिक मुनाफा कमाया जा सके. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, पंजाब में किन्नू 47,000 हेक्टेयर में उगाया जाता है. फाजिल्का के अलावा, किन्नू होशियारपुर, मुक्तसर, बठिंडा और कुछ अन्य जिलों में भी उगाया जाता है.

हिन्दुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, फाजिल्का जिले के अबोहर बेल्ट के बागवान धीरे-धीरे नाशपाती और अन्य फलों की ओर रुख कर रहे हैं. एक प्रमुख फल व्यापारी, सुरिंदर चराया का कहना है कि पिछले 3-4 वर्षों में, लगभग 4,000 एकड़ किन्नू क्षेत्र को पंजाब कृषि विश्वविद्यालय (पीएयू) द्वारा अनुशंसित नाशपाती की किस्म "पत्थरनख" से बदल दिया गया है, जिसकी मांग है पश्चिम बंगाल और पड़ोसी राजस्थान में भी है. चराया ने कहा कि दो महीने की शेल्फ लाइफ वाला नाशपाती एक उच्च व्यावसायिक फल है और इसे कोल्ड स्टोर में रखा जा सकता है और ऑफ सीजन के दौरान भी बेचा जा सकता है.

ये भी पढ़ें- Cotton Price: कम उत्पादन के अनुमानों के बावजूद कपास का दाम स्थ‍िर, असमंजस में क‍िसान

नाशपाती की खेती करेंगे किसान

बागवानी विभाग के उप निदेशक, गुरशरण सिंह ने कहा कि पिछले तीन वर्षों से अबोहर क्षेत्र में वृद्धि का रुझान देखा गया है, जहां किन्नू उत्पादकों ने नाशपाती की ओर रुख करना शुरू कर दिया है, जबकि कुछ आड़ू की खेती में भी रुचि दिखा रहे हैं. उन्होंने कहा कि पहले, नाशपाती की खेती अमृतसर और तरनतारन में लोकप्रिय थी, लेकिन अबोहर के अर्ध-शुष्क क्षेत्र के लिए फलों के विविधीकरण की आवश्यकता थी, जो केवल खट्टे फलों की खेती पर ध्यान केंद्रित कर रहा है.

आड़ू की खेती शुरू

साल 2021 और 2022 में, किन्नू उत्पादकों को सिंचाई के लिए नहर के पानी की खराब उपलब्धता, कीटों के हमले और प्रतिकूल मौसम के कारण वित्तीय नुकसान का सामना करना पड़ा और इससे उत्पादन प्रभावित हुआ. पिछले साल, इस क्षेत्र में बंपर उत्पादन हुआ था, लेकिन जलवायु परिस्थितियों के कारण आकार ख़राब हो गया और सर्दियां बढ़ने से फलों की मांग कम हो गई, जिससे मांग में भारी गिरावट आई. निहालखेड़ा गांव के प्रगतिशील बागवान राजिंदर कुमार उन पहले किसानों में से थे, जिन्होंने पिछले लगभग एक दशक में किन्नू से नाशपाती और फिर आड़ू की खेती शुरू की, उन्होंने इसे एक लाभकारी बदलाव बताया.

ये भी पढ़ें-  पंजाब में 100 लाख टन के पार पहुंची गेहूं की खरीद, फिर भी चिंता में क्यों हैं अधिकारी

उन्होंने कहा कि किन्नू के पेड़ों की देखभाल में लगभग पूरा एक साल लगता है, जबकि आड़ू के बागों को केवल छह महीने तक निरंतर देखभाल की आवश्यकता होती है, जिससे श्रम लागत इनपुट पर काफी बचत होती है. अच्छी देखभाल से आड़ू के पेड़ की उम्र 50-60 साल तक होती  है. साथ ही इसके ऊपर कीटों के हमले भी नहीं होते हैं. डंगरखेड़ा के एक अन्य किसान राज कुमार ने पिछले साल दो एकड़ जमीन में नाशपाती की खेती शुरू की. वे इससे बंपर उत्पदान और कमाई की उम्मीद कर रहे हैं.

क्या कहते हैं किसान

राज कुमार ने कहा कि मैं 15 एकड़ में किन्नू उगा रहा था, मुझे लेकिन घाटे का सामना करना पड़ा. इसके बाद मैंने नाशपाती उगाना शुरू कर दिया. उन्होंने कहा कि पथरनख के एक पौधे की कीमत 100 रुपये है और मैंने एक एकड़ में 100 पौधे बोये हैं. नाशपाती का पेड़ छह साल बाद फल देना शुरू करता है और वैज्ञानिक सलाह के अनुसार, मैं बगीचे के पोषण के लिए सब्जियां उगा रहा हूं. भरत खेड़ा गांव के एक अन्य किसान बिराज लाल सहारण ने कहा कि 24 साल तक किन्नू उगाने के बाद, उन्होंने आखिरकार अन्य फलों की खेती करने का प्रयोग किया है.