नागपुर नहीं... मेघालय में है संतरे का राजा, यहां जानिए इसकी पूरी कहानी

नागपुर नहीं... मेघालय में है संतरे का राजा, यहां जानिए इसकी पूरी कहानी

मेघालय में नवंबर महीने में आप जाएं तो हर तरफ आपको सुनहरे पीले रंग से अटे बाजार दिखेंगे. ये रंग खासी मंदारिन का होता है. इसे हाथ में लें तो आपको एक अलग ही खुशबू मिलेगी, जो किसी अन्य प्रदेश के संतरे में नहीं होती. यही वजह है कि यह संतरा आज निर्यात के मामले में अव्वल बन रहा है. विदेशों से इसकी खूब मांग आ रही है. इस संतरे की एक खासियत ये भी है कि नवंबर से लेकर मार्च अंत तक इसकी आवक बनी रहती है.

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नागपुर नहीं... मेघालय में है संतरे का राजा, यहां जानिए इसकी पूरी कहानीबहुत खास है मेघालय का खासी मेंडरिन संतरा

Khasi Mandarin Orange: मेघालय की पहचान है ये संतरा. मेघालय की शान है ये संतरा. मेघालय से निकला यह फल अब दुनिया के कई देशों में भारत की शोभा बढ़ा रहा है. इसका नाम है खासी मेंडरिन (Khasi Mandarin). आम धारणा यही है कि नागपुर का संतरा सबसे खास होता है. लेकिन सच्चाई ये है कि मेघालय के खास मेंडरिन को संतरे का राजा कहा जाता है. यह देखने और खाने दोनों मायनों में अहमियत रखता है. इसका फल सामान्य संतरे की तुलना में अंदर से टाइट होता है, लेकिन अंदर रस की भरमार होती है. हालांकि छिलका उतारने के लिए काफी मेहनत करनी पड़ती है.  

हाल के समय में इस संतरे का निर्यात तेज हुआ है. इसी महीने इस संतरे (Khasi Mandarin) की एक बड़ी खेप दुबई भेजी गई जिसका जिक्र मेघालय सरकार के मुख्यमंत्री कोनराड संगमा ने किया. एक ट्वीट में इस निर्यात की जानकारी देते हुए उन्होंने बताया कि जिरांग एफपीसी से खासी मेंडरिन की खेप दुबई भेजी गई है.

जानिए इसकी खासियत

अब इस संतरे (Khasi Mandarin) की खासियत जान लेते हैं. मेघालय में नवंबर महीने में आप जाएं तो हर तरफ आपको सुनहरे पीले रंग से अटे बाजार दिखेंगे. ये रंग खासी मंदारिन का होता है. इसे हाथ में लें तो आपको एक अलग ही खुशबू मिलेगी जो किसी अन्य प्रदेश के संतरे में नहीं होती. यही वजह है कि यह संतरा आज निर्यात के मामले में अव्वल बन रहा है. विदेशों से इसकी खूब मांग आ रही है. इस संतरे की एक खासियत ये भी है कि नवंबर से लेकर मार्च अंत तक इसकी आवक बनी रहती है.

मेघालय में ही इसकी बागवानी

उत्तर-पूर्व भारत का हिस्सा इंडो-बर्मा बायोडायवर्सिटी की गोद में बसा है. दुनिया में कुल 25 ऐसे बायोडायवर्सिटी हॉटस्पॉट हैं जिनमें एक इंडो-बर्मा का भी नाम है. इन इलाकों में होने वाली फसल, बागवानी सबसे मशहूर मानी जाती है. इसमें भी मेघालय का नाम सबसे खास है जहां खासी मेंडरिन संतरा पैदा होता है. वैसे भी मेघालय को साइट्रस फल जैसे संतरा, किन्नू, नींबू आदि की पैदावार का प्राइमरी जीन सेंटर माना जाता है. इसी में सबसे खास है खासी मेंडरिन (Khasi Mandarin Orange) जिसका बायलॉजिकल नेम है साइट्रस रेटिकुलाटा ब्लैंको. यह फल रुटेशिया फैमिली का है.

पूरे उत्तर-पूर्व की शान है संतरा

कहा जाता है कि मेघालय की धरती का यह पहला फल है जिसे लोगों ने विदेशों में नाम चमकाया है. मेघालय में इस संतरे का और भी कई नाम है. खासी में इसे सोह नियामत्रा या सोह मिंत्रा कहते हैं. असमी में इसे कोमोला या हुमोपतिरा कहते हैं और बंगाली में इसे कोमला कहते हैं. खासी मेंडरिन मेघालय के अलावा असम और अन्य उत्तर-पूर्व राज्यों में उगाया जाता है. इस फल में सबसे अधिक पोषक तत्व पाए जाते हैं, स्वाद में यह खास है और रंग में बेहद अहम. एक प्रमुख बात ये भी है कि दुनिया में संतरे के कुछ किस्म हैं जिनमें खासी मंदारिन भी एक है. तभी इसे संतरे का राजा कहा जाता है.

GI टैग वाला संतरा

मेघालय राज्य खासी मेंडरिन (Khasi Mandarin Orange) का सबसे बड़ा उत्पादक है. यहां इसे सबसे बड़े व्यावसायिक फल का दर्जा प्राप्त है. इसकी बागवानी खासी पहाड़ी की दक्षिणी ढलानों पर की जाती है. इस फल को ज्योग्राफिकल आइडेंटिफिकेशन यानी कि GI टैग भी मिला हुआ है. जीआई टैग मिलने से यह फल देश और विदेश में मेघालय की शान लगातार बढ़ा रहा है. इस फल ने खासी क्षेत्र में लोगों की रोजी-रोटी कमाने में बड़ी भूमिका निभाई है और इससे सामाजिक-आर्थिक स्थितियां मजबूत हुई हैं. खासी मेंडरिन के पौधे छोटे, बिल्कुल सीधे और सदाबहार होते हैं. पौधा लगाने के 3 से 5 साल बाद फल आने शुरू हो जाते हैं. हालांकि पौधा जब 8 साल का हो जाए तो फल पूरी तरह से आने लगते हैं.

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