पंजाब में इस खरीफ सीजन में धान की रोपाई कुल अनुमानित क्षेत्रफल के केवल 35 फीसदी पर ही पूरी हो पाई है. इसने राज्य के कृषि विशेषज्ञों को नई परेशानी में डाल दिया है. पंजाब कृषि विश्वविद्यालय (पीएयू), लुधियाना ने किसानों से रोपाई में तेजी लाने की अपील की है क्योंकि कम अवधि वाली किस्मों के लिए आदर्श समय 10 जुलाई तक खत्म हो जाएगा. राज्य में इस बार धान की रोपाई 15 दिन पहले यानी 1 जून से जारी है.
अखबार हिंदुस्तान टाइम्स ने पीएयू के कुलपति डॉ. एसएस गोसल के हवाले से लिखा है, 'विश्वविद्यालय के अधिकारियों की तरफ से जुटाई गई जानकारी के अनुसार, राज्य सरकार की तरफ से 1 जून से रोपाई की मंजूरी दी गई थी लेकिन इसके बावजूद किसानों ने रोपाई में देरी की है.' उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय ने 23,000 क्विंटल कम अवधि के धान के बीज बेचे हैं. यह करीब तीन लाख एकड़ भूमि को कवर करने के लिए काफी हैं. विश्वविद्यालय किसानों को सलाह दे रहा है कि वे फसल उत्पादकता को बनाए रखते हुए पानी के बेहतर संरक्षण के लिए जुलाई के मध्य तक रोपाई पूरी कर लें.
इस साल, पंजाब में धान की खेती 31 लाख हेक्टेयर (लगभग 76 लाख एकड़) में होने की उम्मीद है. इसमें प्रीमियम सुगंधित बासमती किस्म के लिए 7 लाख हेक्टेयर (17 लाख एकड़) का महत्वपूर्ण लक्ष्य है जो कुल क्षेत्रफल का 22 फीसदी है. हालांकि,रोपाई में देरी ने चिंता बढ़ा दी है, खासकर मानसून के मौसम के करीब आने के साथ इस देरी से विशेषज्ञ खासे परेशान हैं.
कृषि वैज्ञानिकों के विरोध और नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) में इस फैसले के खिलाफ याचिकाओं के बावजूद राज्य सरकार ने 1 जून से ही धान की रोपाई शुरू करने की अनुमति दे दी थी. सरकार का यह फैसला इस सोच पर आधारित था कि बुवाई का समय अपेक्षित बारिश के साथ मेल खाने के लिए पहले ही तय कर दिया जाएगा. चावल की सीधी बुवाई (डीएसआर) की भी 15 मई से अनुमति दी गई थी, लेकिन किसानों ने इस टाइम टेबल का पूरी तरह से पालन नहीं किया है.
सरकार ने फरीदकोट, बठिंडा, फिरोजपुर, मुक्तसर और फाजिल्का के लिए 1 जून से रोपाई शुरू करने की अनुमति दी थी. गुरदासपुर, पठानकोट, अमृतसर और बाकी जिलों के लिए यह क्रमशः 5 जून और 9 जून को शुरू हुआ. हालांकि, जल्दी शुरू होने के बावजूद, रोपाई की गति धीमी बनी हुई है. हालांकि लगातार बढ़ते पारे ने भी किसानों को खासा परेशान किया था. धान की बुवाई का सीजन शुरू हुआ तो मजदूर चिलचिलाती धूप में धान की बुवाई करने से कतराने लगे थे. इसके अलावा मजदूरी की लागत में भी इजाफा हुआ जिसने रोपाई को प्रभावित किया.
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