Potato Farming: इन खादों से मिलेगी आलू की बंपर पैदावार, रोग से बचाव का उपाय भी जानिए

Potato Farming: इन खादों से मिलेगी आलू की बंपर पैदावार, रोग से बचाव का उपाय भी जानिए

आजकल मौसम में अचानक बदलाव देखने को मिल रहा है. वहीं, मौसम में लगातार बदलाव और तापमान में गिरावट के कारण इस समय आलू की फसल में कई तरह की बीमारियां लगने की आशंका है. अगर समय रहते इन बीमारियों पर काबू नहीं पाया गया तो किसानों को भारी नुकसान उठाना पड़ता है. दरअसल, जब आसमान में बादल छाए रहते हैं तो आलू की फसल में फंगल इंफेक्शन की आशंका बढ़ जाती है. ऐसे में आइए जानते हैं आलू में लगने वाले रोग और उससे बचाव का तरीका.

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Potato Farming: इन खादों से मिलेगी आलू की बंपर पैदावार, रोग से बचाव का उपाय भी जानिएआलू की खेती से जुड़ी जानकारी

आलू हमारे देश में एक प्रमुख नकदी फसल है. इसका इस्तेमाल हर घर के किचन में किसी न किसी रूप में किया जाता है. आलू में स्टार्च, प्रोटीन, विटामिन सी और खनिज पदार्थ की मात्रा अधिक पाई जाती है. अधिक उपज देने वाली किस्मों की समय पर बुआई, संतुलित मात्रा में उर्वरकों का उपयोग, उचित कीटनाशकों और उचित जल प्रबंधन के माध्यम से अधिक आलू पैदा करके किसानों की आय बढ़ाई जा सकती है. ऐसे में आइये जानते हैं आलू की खेती से जुड़ी सभी जानकारी.

आलू की खेती में खाद का इस्तेमाल

आलू की खेती से बंपर पैदावार लेने के लिए किसान खाद और उर्वरक का मिलाजुला प्रयोग कर सकते हैं. इसमें प्रति बीघा 20 किलो डीएपी, 14 किलो म्यूरेट ऑफ पोटाश, 21 किलो यूरिया, 2 किलो जिंक सल्फेट, चार किलो फेरस सल्फेट, 01 से 1.5 किलो बोरेक्स, एक किलो फोरेट 10 जी, दो किलो सल्फर और 20 क्विंटल तक गोबर की खाद का प्रयोग किया जा सकता है. इसमें ध्यान ये रखें कि यूरिया को बुवाई के बाद तीन हिस्सों में बांटकर क्रमश: 20 दिन, 40 दिन और 55 दिन में छिड़काव जरूर करें.

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आलू में चेचक रोग और बचाव

आलू में चेचक आम रोग है. इस रोग पर काबू पाने के लिए खेत में किसी भी तरह के सड़े अवशेष न रखें जैसे कि घास-फूस या गोबर आदि. रोग से बचाव के लिए बीच का उपचार भी जरूरी है. रोग से बचाव के लिए आलू के बीज का उपचार तीन प्रतिशत बोरिक एसिड से करना चाहिए. अगर बीज खराब हो तो उसे बदल दें. ऐसा बीज लगाएं जिसमें चेचक न लगा हो. मिट्टी का उपचार ट्राईकोडर्मा से करें. इसके लिए पांच किलो ट्राईकोडर्मा को दो से तीन क्विंटल गोबर की खाद में मिलाकर 10 से 12 दिन के लिए रखें. बीमारी फैलने पर पूरे एक हेक्टेयर क्षेत्रफल में इसे फैला दें. इससे मिट्टी का उपचार बेहतर होगा.

आलू में झुलसा रोग की समस्या

झुलसा रोग दो प्रकार का होता है. अगेती झुलसा रोग और पछेती झुलसा रोग. आलू की फसल में अगेती झुलसा रोग के कारण निचली एवं पुरानी पत्तियों पर छोटे अंडाकार भूरे धब्बे दिखाई देने लगते हैं. धीरे-धीरे इसका प्रभाव पत्तियों और कंद दोनों पर दिखाई देने लगता है. इस रोग से प्रभावित कंदों में धब्बों के नीचे का गूदा भूरा एवं सूखा हो जाता है, जबकि पिछेती झुलसा रोग आलू की फसल का सबसे गंभीर रोग है. इस रोग का प्रकोप पत्तियों, तनों एवं कंदों पर होता है. जब तापमान 10 से 20 डिग्री सेल्सियस हो और आसमान में बादल हों तो इस रोग के होने की संभावना सबसे अधिक होती है.

आलू में झुलसा रोग से बचाव का तरीका

आलू में यह रोग दिखाई देते ही ब्लिटॉक्स-50 या मैंकोजेब में से 600-800 ग्राम मात्रा को 200 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति एकड की दर से छिड़काव करें. 15 दिन के अंतराल पर छिड़काव दोहराएं. यह आलू का सबसे विनाशकारी रोग है. पछेती झुलसा रोग का मुख्य कारण फाइटोफ्थोरा इन्फेस्टैन्स नामक कवक है. इस रोग को पछेती झुलसा, झुलसा, महामारी तथा झुलसा आदि नामों से भी जाना जाता है.

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