मूंगफली की पैदावार बढ़ाती है नीम की खली, खेत की अंतिम जुताई के समय इतनी दें खाद

मूंगफली की पैदावार बढ़ाती है नीम की खली, खेत की अंतिम जुताई के समय इतनी दें खाद

मूंगफली चूंकि खरीफ की फसल है, इसलिए इसे आमतौर पर सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है. सिंचाई आमतौर पर वर्षा पर निर्भर करती है. अगर फसल को जल्दी बोना है, तो एक सिंचाई की आवश्यकता होती है. अगर पौधों में फूल आने के समय सूखे की स्थिति है, तो उस समय सिंचाई आवश्यक है.

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मूंगफली की पैदावार बढ़ाती है नीम की खली, खेत की अंतिम जुताई के समय इतनी दें खादनीम की खली करें इस्तेमाल

मूंगफली भारत की प्रमुख तिलहनी फसल है. इसे गुजरात, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और कर्नाटक राज्यों में सबसे अधिक उगाया जाता है. मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और पंजाब जैसे अन्य राज्यों में भी इसे एक महत्वपूर्ण फसल माना जाता है. राजस्थान में इसकी खेती लगभग 3.47 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में की जाती है जिससे लगभग 6.81 लाख टन उत्पादन होता है. इसकी औसत उपज 1963 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर (2010-11) है. भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के अंतर्गत अनुसंधान संस्थानों और कृषि विश्वविद्यालयों ने मूंगफली की उन्नत किस्में, रोग नियंत्रण, निराई और खरपतवार नियंत्रण आदि जैसी उन्नत तकनीकें विकसित की हैं. ऐसे में मूंगफली की खेती कर रहे किसानों के लिए नीम की खली काफी फायदेमंद है. यह मूंगफली की पैदावार को बढ़ाने में मदद करती है. आइए जानते हैं कब और कैसे दें खाद.

नीम की खली करें इस्तेमाल

नीम की खली के प्रयोग से मूंगफली के उत्पादन पर अच्छा प्रभाव पड़ता है. किसान पैदावार बढ़ाने और फसलों को कीटों से बचाने के लिए भी इसका इस्तेमाल करते हैं. ऐसे में नीम की खली का इस्तेमाल अंतिम जुताई के समय प्रति हेक्टेयर 400 किलोग्राम नीम की खली देनी चाहिए. नीम की खली दीमक को नियंत्रित करती है और पौधों को नाइट्रोजन तत्व की आपूर्ति करती है. नीम की खली के प्रयोग से उपज में 16 से 18 प्रतिशत की वृद्धि होती है और दाना मोटा होने के कारण तेल प्रतिशत भी बढ़ता है. दक्षिण भारत के कुछ स्थानों पर अधिक उत्पादन के लिए जिप्सम का भी प्रयोग किया जाता है.

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फसलों में कब करें सिंचाई

मूंगफली चूंकि खरीफ की फसल है, इसलिए इसे आमतौर पर सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है. सिंचाई आमतौर पर वर्षा पर निर्भर करती है. अगर फसल को जल्दी बोना है, तो एक सिंचाई की आवश्यकता होती है. अगर पौधों में फूल आने के समय सूखे की स्थिति है, तो उस समय सिंचाई आवश्यक है. फलियों के विकास और दाने बनने के समय मिट्टी में पर्याप्त नमी की भी आवश्यकता होती है. ताकि फलियां बड़ी और भरी हुई बनें. इसलिए वर्षा की मात्रा के अनुसार सिंचाई की आवश्यकता हो सकती है. मूंगफली की फलियां जमीन के अंदर विकसित होती हैं. इसलिए अगर खेत में लंबे समय तक पानी भरा रहता है, तो इसका फलियों के विकास और पैदावार पर बुरा असर पड़ सकता है. इसलिए अगर बुवाई के समय खेत समतल नहीं है, तो बीच-बीच में कुछ मीटर की दूरी पर हल्की नालियां बना देनी चाहिए. ताकि बारिश का पानी खेत के बीच में न रुके और बारिश होते ही अनावश्यक अतिरिक्त पानी बाहर निकल जाए.

खरपतवार नियंत्रण

इस फसल के उत्पादन में निराई-गुड़ाई और खरपतवार नियंत्रण बहुत जरूरी है. मूंगफली के पौधे छोटे होते हैं. इसलिए, वे आमतौर पर बरसात के मौसम में खरपतवारों से ढक जाते हैं. ये खरपतवार पौधों को बढ़ने नहीं देते. खरपतवारों से बचने के लिए कम से कम दो बार निराई-गुड़ाई की जरूरत होती है. पहली बार फूल आने के समय और दूसरी बार 2-3 हफ्ते बाद जब खूंटे जमीन में जाने लगें. इसके बाद निराई-गुड़ाई नहीं करनी चाहिए. जिन खेतों में खरपतवारों की ज्यादा समस्या हो, वहां पेंडीमेथालिन नामक 3 लीटर खरपतवारनाशक को 500 लीटर पानी में घोलकर बुवाई के 2 दिन के अंदर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए.

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