सोयाबीन और गेहूं के प्रमुख उत्पादक मध्य प्रदेश में अब किसानों को कपास की आधुनिक खेती के गुर भी सिखाए जा रहे हैं. मध्य प्रदेश महाराष्ट्र से सटा हुआ है जहां पर किसान बड़े पैमाने पर कपास की खेती होती है. इसलिए अब यहां के किसान भी कपास की आधुनिक तकनीक से खेती के लिए जोर दे रहे हैं. इसी सिलसिले में खंडवा जिले में कपास की हाई डेंसिटी (उच्च घनत्व) पौधरोपण तकनीक पर कार्यशाला का आयोजन किया गया. जिसमें कपास उत्पादन में वृद्धि के लिए उच्च घनत्व पौधरोपण तकनीक एवं मार्केटिंग पर पर किसानों को जानकारी दी गई. यह बताया गया कि कैसे हाई डेंसिटी पौधरोपण तकनीक से उत्पादन बढ़ जाता है और किसानों को फायदा मिलता है. इसकी अध्यक्षता कलेक्टर अनूप कुमार सिंह ने की.
कृषि वैज्ञानिक डॉ. डीके श्रीवास्तव ने बताया कि परम्परागत रूप से की जा रही खेती में कपास फसल को कतार से कतार की दूरी 90 से 100 सेमी तथा पौधे से पौधे की दूरी 60 सेमी रखी जाती है, जिसमें पौधों की संख्या 10 हजार से 20370 पौधे प्रति हेक्टेयर आती है. उन्होंने बताया कि उच्च घनत्व पौधरोपण तकनीक में कतार से कतार की दूरी 90 सेमी तथा पौधे से पौधे की दूरी 10 से 15 सेमी रखी जाती है, जिसमें पौधों की संख्या लगभग 75,925 से 1,12,962 पौधे प्रति हेक्टेयर आती है. इसलिए जिसमें परम्परागत रूप से की जाने वाली खेती की तुलना में उच्च घनत्व पौधरोपण तकनीक से 25 से 30 प्रतिशत अधिक उत्पादन प्राप्त होता है.
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डॉ. श्रीवास्तव ने कार्यशाला में उपस्थित किसानों एवं अन्य सदस्यों द्वारा तकनीक से संबंधित सभी सवालों के जवाब दिए. संयुक्त संचालक ,संचालनालय किसान कल्याण तथा कृषि विकास विभाग, श्री जी. एस. चौहान द्वारा कार्यशाला में उपस्थित कृषकों को जैविक कपास तकनीक से कपास उत्पादन करने वाले किसानों को जैविक प्रमाणीकरण हेतु लगने वाले शुल्क में 80 प्रतिशत छूट की सुविधा तथा लागत 3 वर्ष तक जैविक कपास उत्पादन करने वाले किसानों को 2000 रुपये प्रति हेक्टेयर प्रति वर्ष विभाग के माध्यम से सुविधा दिलाए जाने का आश्वासन भी दिया गया.
अंत में कलेक्टर सिंह ने जिले में कपास उत्पादन में वृद्धि हेतु आवश्यक कदम उठाये जाने एवं जैविक उत्पाद का विभागीय अमले द्वारा कृषकों में प्रचार प्रसार कराये जाने के निर्देश उप संचालक कृषि को दिए. कार्यशाला में अधिष्ठाता, कृषि महाविद्यालय खंडवा डॉ. डी. एच. रनाडे, संयुक्त संचालक, इंदौर ,आलोक कुमार मीणा, वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं प्रमुख डॉ. डी.के. वाणी, वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक डॉ. डी.के. श्रीवास्तव, उप संचालक कृषि, परियोजना संचालक आत्मा उपस्थित थे.
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