पंजाब में हाईब्रिड चावल की खेती बैन, फिर भी किसानों के बीच सुपरहिट हैं ये दो किस्‍में, जानें क्‍यों 

पंजाब में हाईब्रिड चावल की खेती बैन, फिर भी किसानों के बीच सुपरहिट हैं ये दो किस्‍में, जानें क्‍यों 

पंजाब के किसान  7501 और 7301 जैसी 'सावा' किस्मों की खेती कर रहे हैं. यह किस्‍में नर्सरी अवधि सहित 125 से 130 दिनों में पक जाती हैं. किसानों की मानें तो इन किस्मों को अपने छोटे फसल चक्र के कारण करीब 35 किलोग्राम कम बीज की जरूरत होती है. ऐसे में पानी की भी अच्छी बचत होती है. किसानों की मानें तो हाइब्रिड किस्में पारंपरिक किस्मों की तुलना में ज्‍यादा फायदा देती हैं.

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पंजाब में हाईब्रिड चावल की खेती बैन, फिर भी किसानों के बीच सुपरहिट हैं ये दो किस्‍में, जानें क्‍यों बैन के बाद भी क्‍यों किसानों के बीच पॉपुलर हैं चावल की दो किस्‍में

पंजाब सरकार ने भूजल के गिरते स्‍तर और खराब मिलिंग रिकवरी का हवाला देते हुए हाइब्रिड चावल की खेती को बैन कर दिया है. हालांकि पंजाब सरकार के दावों को एफएसआईआई ने खारिज कर दिया है. संगठन का कहना है कि हाइब्रिड किस्में अधिक उपज देती हैं, पानी बचाती हैं और पराली जलाने को कम करती हैं. यह बात सच है कि बैन के बाद भी किसान हाइब्रिड किस्‍मों के लिए ज्‍यादा उत्‍सुक रहते हैं. किसानों का भी कहना है कि हाइब्रिड किस्‍में उन्‍हें ज्‍यादा फायदा देती है और उनकी आय में भी इजाफा करती हैं. जानें आखिर हाइब्रिड किस्‍मों के लिए किसानों के आकर्षण की असली वजह क्‍या है. 

पानी की बचत का दावा 

पंजाब के किसान  7501 और 7301 जैसी 'सावा' किस्मों की खेती कर रहे हैं. यह किस्‍में नर्सरी अवधि सहित 125 से 130 दिनों में पक जाती हैं. किसानों की मानें तो इन किस्मों को अपने छोटे फसल चक्र के कारण करीब 35 किलोग्राम कम बीज की जरूरत होती है. ऐसे में पानी की भी अच्छी बचत होती है. किसानों की मानें तो हाइब्रिड किस्में पारंपरिक किस्मों की तुलना में ज्‍यादा फायदा देती हैं. साथ ही इसे पकने में कम समय लगता है और उपज भी ज्‍यादा मिलती है. 

प्रति एकड़ 14 हजार तक का फायदा! 

पंजाब कृषि विश्वविद्यालय (पीएयू) की तरफ से कई छोटी और मध्यम अवधि की किस्में विकसित की गई हैं फिर भी किसान हाइब्रिड धान के बीज को ही प्राथमिकता देते हैं. उनका कहना है कि हाइब्रिड किस्‍में अभी भी पारंपरिक किस्‍मों की तुलना में बेहतर प्रदर्शन करती हैं. एक किसान बलदेव सिंह के हवाले से एक मीडिया रिपोर्ट में लिखा गया है, 'ये किस्में तेजी से पकती हैं और पानी की बचत करती हैं. लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि बाकी किस्मों की तुलना में प्रति एकड़ 5-6 क्विंटल अधिक उपज देती हैं.; 

किसान की मानें तो उन्‍हें प्रति एकड़ औसतन 35-36 क्विंटल और कभी-कभी इससे भी ज्‍यादा उपज मिलती है. इसका मतलब है कि उन्‍हें साफतौर पर प्रति एकड़ 13,000 से 14,000 रुपये की ज्‍यादा कमाई हिोती है.  

मिलर्स को होता है नुकसान 

साल 2024-25 के खरीफ विपणन सत्र के दौरान पंजाब भर में चावल मिलर्स ने हाइब्रिड चावल की किस्मों को मानने से इनकार कर दिया. इन मिलर्स ने तर्क दिया है कि इन किस्मों का आउट टर्न रेशियो (OTR) चावल मिलिंग प्रक्रिया की दक्षता का एक उपाय, FCI की तरफ से अनिवार्य किए गए से कम था. जबकि FCI ने न्यूनतम 67 फीसदी OTR तय किया है. मिलर्स ने दावा किया कि हाइब्रिड चावल की किस्मों का OTR 60 फीसदी से 63 फीसदी के बीच था. मिलर्स का कहना है कि इस कमी की वजह से उन्‍हें आर्थिक नुकसान उठाना पड़ता है. 

2019 में भी लगा था बैन 

साल 2024 में पंजाब सरकार को काफी विरोध के बाद मिलर्स को इन किस्मों को स्टोर करने के लिए राजी करना पड़ा. साल 2019 में भी पंजाब कृषि विभाग ने हाइब्रिड धान के बीजों की बिक्री पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया था. हालांकि, यह बैन कम समय के लिए था और बाद में इसमें बदलाव करके उन हाइब्रिड बीजों की बिक्री की मंजूरी दे दी गई जिन्हें पंजाब में खेती के लिए केंद्र द्वारा आधिकारिक तौर पर अधिसूचित किया गया था. 

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