आजकल ज्यादातर लोग सब्जियों की खेती करने लगे हैं. सब्जियों की फसल कम समय में ही तैयार हो जाती है जिससे आप जल्दी लाभ कमा सकते हैं. हालांकि सब्जियों की खेती करने वाले किसान हर बार फायदे में नहीं रहते हैं. कई बार मौसम की मार झेलनी पड़ती है तो कई बार पौधों के मैनेजमेंट में गलती हो जाती है जिसके कारण ना सिर्फ पौधों की ग्रोथ पर असर पड़ता है बल्कि मनमुताबिक पैदावार भी नहीं मिलती है. इस खबर में बैंगन की खेती पर चर्चा करने जा रहे हैं. बैंगन की फसल में कौन सी समस्या आती है और उसे कैसे दूर किया जा सकता है, आइए समझ लेते हैं.
बैंगन की खेती जुलाई-अगस्त, दिसंबर-फरवरी और अप्रैल के महीने में यानी कि तीनों सीजन में की जा सकती है. लेकिन कुछ लोग बताते हैं कि उनके पौधे तो बड़े हो जाते हैं लेकिन उसमें कई बार फूल नहीं आते हैं, फूल आ भी गए तो कम आते हैं या फिर झड़ जाते हैं. इन सब के अलावा फलों के आकार को लेकर भी चिंता जताते हैं. फलों का साइज छोटा होता है या फिर टेढ़े-मेंढ़े फल आते हैं. आइए जान लेते हैं कि इस समस्या को कैसे दूर किया जा सकता है.
बैंगन की खेती करने वाले किसानों को खेती से पहले पौधों की आवश्यकताओं को समझ लेना चाहिए. अगर आप ऑर्गेनिक तरीके से बैंगन उगाते हैं तो इसके अधिक फायदे हैं. खेत की अच्छी बारीक जुताई के बाद इसमें लगभग 10 क्विंटल एकड़ के हिसाब से वर्मी कंपोस्ट का छिड़काव कर दीजिए. अब पूरे खेत में कतारबद्ध तरीके से क्यारियां बनाएं और एक-एक फिट की दूरी पर ही पौध रोपें. बुवाई के 30 दिन बाद 4-5 क्विंटल वर्मी कंपोस्ट का छिड़काव फिर से करें.
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पौधों को कीट और रोग से बचाना भी बहुत जरूरी है. अगर पौधों में किसी तरह के कीटों का प्रकोप है तो इसमें आप नीम की पत्तियों से बना जैविक कीटनाशक ही डालें. इन सब के अलावा अगर खेत के किसी पौधे में आपको संक्रमण रोग दिखें तो फौरन उस पौधे को काटकर अलग कर दें ताकि स्वस्थ पौधों में किसी तरह का संक्रमण ना फैलने पाए.
बैंगन के खेतों की सिंचाई कब करना ये जानना बहुत जरूरी होता है. आपको बता दें कि शुरुआत में पर्याप्त नमी बना कर रखें. जब पौधे एक महीने के हो जाएं तो हफ्ते में 2 बार की सिंचाई भी पर्याप्त मानी जाती है, गर्मी के दिनों में 3 बार सींचें. अगर मिट्टी की नमी जल्दी सूख जाती है तो कई बार हफ्ते में चार बार भी सींचना पड़ता है. सिंचाई के लिए ड्रिप इरिगेशन तकनीक का इस्तेमाल करना चाहिए. पानी बहा कर सिंचाई करने से बचें, अगर यही एक तरीका है तो हफ्ते में 2 बार की सिंचाई पर्याप्त है ध्यान रहे जलजमाव ना हो.
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