हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल शिव प्रताप शुक्ला शुक्रवार को सोलन जिले के नौनी स्थित डॉ. वाईएस परमार बागवानी एवं वानिकी विश्वविद्यालय में एक कार्यक्रम में शामिल हुए. यहां उन्होंने प्राकृतिक खेती (नेचुरल फार्मिंग) से सतत खाद्य प्रणालियों को सक्षम बनाने के विषय पर दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन को संबोधित किया. राज्यपाल ने कहा कि हिमाचल प्रदेश के किसान प्राकृतिक खेती में गहरी रुचि दिखा रहे हैं और यह भी बहुत ही खुशी की बात है कि अन्य राज्य भी इस खेती को अपनाने के लिए आगे आ रहे हैं. गुजरात के राज्यपाल आचार्य देवव्रत भी इस अवसर पर विशेष अतिथि और बतौर मुख्य वक्ता मौजूद थे.
शिव प्रताप शुक्ला ने देशभर में प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए नौनी विश्वविद्यालय के योगदान को सराहा और प्रदेश में प्राकृतिक खेती में क्रांति लाने वाले आचार्य देवव्रत की भूमिका की भी सराहना की. राज्यपाल ने कहा, "इस प्रणाली की बढ़ती लोकप्रियता इस तथ्य से स्पष्ट है कि 3,584 पंचायतों के लगभग 1.94 लाख किसान 34,342 हेक्टेयर जमीन पर प्राकृतिक रूप से अलग-अलग फसलों की खेती कर रहे हैं."
राज्यपाल ने कहा कि नीति आयोग ने भी प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए हिमाचल प्रदेश के मॉडल पर आधारित 'राष्ट्रीय प्राकृतिक खेती मिशन' शुरू किया है. यह हिमाचल जैसे छोटे राज्य के लिए गर्व की बात है कि देशभर से कृषि वैज्ञानिक, शोधार्थी, पर्यटक, किसान और कृषि अधिकारी हिमाचल में स्थापित मॉडल खेतों का दौरा कर प्राकृतिक खेती के बारे में जानकारी हासिल कर रहे हैं.
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राज्यपाल ने कहा कि केंद्र सरकार प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए लगातार कोशिश कर रही है. केंद्र सरकार ने इस सिस्टम को 'परंपरागत कृषि विकास योजना' से जोड़ा है और इसके क्रियान्वयन के लिए दिशा-निर्देश जारी किए गए हैं. राज्यपाल ने कहा कि वित्तीय वर्ष 2024-25 में हर पंचायत में 10 नए किसानों को जोड़कर लगभग 36,000 नए किसानों को इस प्रणाली से जोड़ा जाएगा और पोर्टल के माध्यम से उन्हें प्राकृतिक खेती में प्रमाणित किया जाएगा. किसानों को सशक्त बनाने और उनके उत्पादों के बेहतर मार्केटिंग के लिए 10 नए किसान-उत्पादक संघ बनाए जाएंगे.
वहीं, आचार्य देवव्रत ने हिमाचल प्रदेश के किसानों को प्राकृतिक खेती अपनाने के लिए बधाई दी और प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों के प्रयासों को सराहा. उन्होंने विभिन्न विश्वविद्यालयों की ओर से प्राकृतिक खेती के विषय में किए गए शोध के सकारात्मक परिणामों का जिक्र किया और कहा कि खेती की यह प्रणाली अगली पीढ़ियों के लिए जरूरी है. उन्होंने ग्लोबल वार्मिंग के बुरे प्रभावों और उत्पादन बढ़ाने के लिए यूरिया व डीएपी के बहुत ज्यादा उपयोग से होने वाले नुकसानों को लेकर भी सचेत किया.
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