हिमाचल प्रदेश ने इस बार धान खरीद के मामले में कमाल कर दिया है. कहा जा रहा है कि प्रदेश में धान की खरीद लक्ष्य से अधिक हुई है. किसानों से 22,897 मीट्रिक टन धान की खरीदी हुई है. जबकि, सरकार ने धान खरीद के लिए 22,000 मीट्रिक टन लक्ष्य निर्धारित किया था. खास बात यह है कि कांगड़ा, ऊना, सिरमौर और सोलन में 10 खरीद केंद्रों के माध्यम से 22897 मीट्रिक टन धान की खरीदी की गई है. वहीं, इस सफलता से सरकार के साथ- साथ किसान भी खुश हैं.
जानकारी के मुताबिक, इस बार हिमाचल प्रदेश में 3,746 किसानों ने धान बेचने के लिए खरीद पोर्टल पर अपना पंजीकरण करवाया था, जिन्हें कुल 50.4 करोड़ रुपये का भुगतान किया गया है. हालांकि, प्रदेश में खरीदा गया धान मांग के मुकाबले बहुत कम है. हिमाचल प्रदेश में हर महीने 15,000 मीट्रिक टन से अधिक चावल की जरूरत होती है. यह मांग राज्य सरकार द्वारा खरीदी गई धान की मात्रा से छह से सात गुना अधिक है. साल 2017- 18 से 2020- 21 तक धान का उत्पादन 1.15 लाख मीट्रिक टन से 1.40 लाख मीट्रिक टन के बीच रहा है.
कृषि विभाग के अतिरिक्त निदेशक, रघबीर सिंह ने कहा कि अधिकांश धान का उपयोग किसान खुद के लिए करते हैं. उन्होंने कहा कि हमारे किसानों की जोत बहुत छोटी है. ऐसे में धान की बीक्री सिर्फ वही किसान करते हैं, जिनके पास बहुत अधिक जमीन है और उनके खेत पैदावार जरूरत से ज्यादा होती है. वहीं, नूरपुर स्थित एक किसान ने कहा कि खासकर राज्य के सीमावर्ती इलाकों के किसान उपज का एक हिस्सा पंजाब और हरियाणा के व्यापारियों को बेच देते हैं. पंजाब से व्यापारी हमारे पास आते हैं और एमएसपी से थोड़ी कम दर पर उपज ले जाते हैं. उन्होंने कहा कि किसान उपज बेचते हैं, क्योंकि उन्हें तुरंत भुगतान मिल जाता है. साथ ही किसान उपज को खरीद केंद्रों तक ले जाने और अन्य औपचारिकताएं पूरी करने की परेशानी से बच जाते हैं.
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रघबीर सिंह ने कहा कि प्रदेश में किसान अब धान की खेती में कम रूचि ले रहे हैं. इसके चलते पिछले कुछ वर्षों में धान के रकबे में गिरावट दर्ज की जा रही है. साल 2013-14 में लगभग 76,000 हेक्टेयर में किसान धान की खेती करते थे, जो साल 2021-22 में घटकर 62000 हेक्टेयर पर पहुंच गया है. उनके अनुसार, ऐसा इसलिए हो रहा है, क्योंकि किसान सब्जियों और बागवानी की तरफ रूख कर रहे हैं. इससे उन्हें अधिक कमाई भी हो रही है.
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