व्यापारियों और विश्लेषकों का कहना है कि 2024 की शुरुआत से 15 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि के बाद, तंग बैलेंस शीट के कारण सितंबर तक शेष सीज़न के लिए कपास की कीमतें मजबूत रहने की संभावना है. विश्लेषकों की मानें तो अगर यही ट्रेंड जारी रहा तो फिर भारत का कपास निर्यात साल 2022-23 (अक्टूबर-सितंबर) के सीजन में 15.5 लाख गांठ (170 किलोग्राम) के निचले स्तर से बढ़ सकता है. आईसीई पर कपास वायदा वर्तमान में डेढ़ साल के उच्चतम स्तर पर कारोबार कर रहा है. व्यापारी इसके पीछे सट्टा खरीद को बड़ी वजह बता रहे हैं.
प्राकृतिक फाइबर की मांग निरंतर बनी हुई है. अमेरिकी कृषि विभाग (यूएसडीए) ने अपनी विश्व बाजार और व्यापार रिपोर्ट में कहा कि इंटरकॉन्टिनेंटल एक्सचेंज (आईसीई), न्यूयॉर्क पर मार्च 2023 अनुबंध के साथ जनवरी में कपास वायदा चार महीने में अपने उच्चतम स्तर पर पहुंच गया. यह करीब 88 यूएस सेंट प्रति पाउंड पर बंद हुआ. एक्सचेंज की रिपोर्ट के मुताबिक उपलब्ध आपूर्ति के तहत जनवरी में अमेरिकी कपास की मजबूत विदेशी बिक्री से दिसंबर 2023 के बाद से कीमतों में लगभग 8 सेंट की बढ़ोतरी हुई है.
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भारत के व्यापारियों की मानें तो अंतरराष्ट्रीय कपास बाजार सट्टा बन गया है और वर्तमान में भारतीय कीमतों से ऊपर चल रहा है. इसकी वजह से भारतीय किसानों को पिछले साल की तरह अपनी उपज रोकनी पड़ सकती है. भारतीय कीमतें एक साथ बढ़ सकती हैं. हालांकि उन्हें यह नहीं मालूम कि वैश्विक कीमतें घटने के बाद उनमें कितनी गिरावट आएगी. उनका कहना है कि कपास में मौजूदा तेजी बहुत अधिक उतार-चढ़ाव के साथ अस्थिर दिख रही है. हेज फंड ICE पर बहुत अधिक सट्टा लगा रहे हैं.
कर्नाटक के रायचूर में बहुराष्ट्रीय और घरेलू कंपनियों के लिए कपास सोर्सिंग एजेंट्स की मानें तो बुनियादी मांग और आपूर्ति के साथ कोई संबंध नहीं दिखता है. वैश्विक स्तर पर, मूल्य रैली को बनाए रखने के लिए कोई दीर्घकालिक मांग नहीं है. कपास की बढ़ती कीमतों पर कताई मिलों द्वारा उठाई गई चिंताओं का समर्थन करते हुए, उन्होंने कहा कि कीमतों में वृद्धि कपड़ों की कीमतों को और अधिक नुकसान पहुंचाएगी. अपने ताजे साप्ताहिक निर्यात बिक्री डेटा में, यूएसडीए ने बताया कि चीन, वियतनाम और पाकिस्तान के प्राथमिक आयातक होने के साथ निर्यात में सप्ताह-दर-सप्ताह 11 प्रतिशत की वृद्धि हुई.
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